बदनाम गलियों से सुहाग का खोइंछा : जिन्हें समाज ने त्यागा, उन्होंने बुना प्रेम का धागा
मुजफ्फरपुर : रेड लाइट एरिया से आने वाली बेटियां जो खुद तो कभी अपने हाथ पीले ना कर सकीं लेकिन इनकी बनाई शगुन के खोइंछे की डिमांड इन दिनों मुजफ्फरपुर में काफी बढ़ गई है। जिन महिलाओं को परम्परा के नाम पर सामाजिक व्यवस्था में अलग-थलग किया जाता है, वही महिलाएं बिहार की लोक परम्परा का हिस्सा खोइंछे को डिजाइनर रूप देकर उसमें आधुनिकता के रंग भर रही हैं।
20 महिलाएं और लड़कियां सेल्फ हेल्फ ग्रुप जुगनू के नाम से कपड़ो के कतरन से खोइंछा दानी बना रही है। उनका कहना है कि अब पहनावा बदल गया है मगर हमारी लोक परम्पराएं नहीं बदलीं। आज भी घर से निकलते समय मां बेटियों को खोइंछा भर कर देती हैं। बाजार में ऑनलाइन पोटली तो बिकती है पर काफी महंगी किमतो पर जिसे लेकर हमने सोचा क्यों नहीं हम पारम्परिक खोइंछा बनाकर उसे डिजाइनर रूप दें।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में बड़े कपड़े की सिलाई के बाद बचे कपड़ों के कतरन से हमने बनाना शुरू किया। लोगों ने पसंद किया और मांग बढ़ी तो अब अलग कपड़ा लाकर बनाते हैं। अब यहां बने खोइंछे की मांग आसपास के जिलों में होने लगी है। मुजफ्फरपुर के रेड लाइट एरिया की महिलाओं का बनाया यह डिजायनर खोइंछा बेटी-बहुओं का मान बढ़ा रहा है। अब तो इस डिजाइन खोइंछा की मांग राज्य के बाहर भी होने लगी है।
इस इलाके की 20 से अधिक महिलाएं जुगनू से जुड़ी हैं और अन्य कपड़ों के साथ डिजायनर खोइंछा भी बना रही हैं। सिर्फ शादी ही नही बल्कि बेटी-बहू के मायके, ससुराल से जाने-आने के समय इस खोइंछा में धान, दूब, पान, सुपारी, चावल, हल्दी के गांठ के साथ बड़ों का आशीर्वाद भी भरकर मिल रहा है। आजीविका का साधन के साथ ही इस खोइंछा से इन महिलाओं को भी अलग पहचान मिल रही है।
वंचित बेटियों के लिए काम कर रही संस्था जुगनू की संस्थापक नसीमा खातून का कहना है कि इस समाज की महिलाओं के लिए समाज का नजरिया अलग होता है। बेटियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए जब उन्हें बुटिक के काम से जोड़ा गया तो महिलाओं ने खुद इसे बनाने की पहल की। महिलाएं कहती हैं कि हमारा आंचल खाली रह गया तो क्या हुआ, समाज की हर बेटी का आंचल सुख समृद्धि से भरा रहे, इसी कामना के साथ वह इसे बनाती हैं।