पहले हुए निराश, फिर जगी आस, फिर होना पड़ा निराश : लखनऊ में नहीं हुई दोस्ती, पटना की दोस्ती पर पड़ेगा असर?

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महज 5 दिनों के अंदर यूपी में बीजेपी से गठबंधन को लेकर जेडीयू निराश हुआ, फिर आस जगी, लेकिन आखिरकार फिर से निराश ही होना पड़ा। इन 5 दिनों में जेडीयू से गठबंधन को लेकर बीजेपी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन जेडीयू निराश होता रहा, आस जगता रहा और फिर निराश हो गई। अफसोस इस बात का कि बिहार में दोस्ती निभाने वाली बीजेपी ने यूपी में दोस्त बनाने को लेकर दो शब्द तक नहीं कही। हालांकि जेडीयू को शिकवा बीजेपी से नहीं है, वो तो आरसीपी सिंह के भरोसे के कारण यूपी में बीजेपी से गठबंधन की उम्मीद आखिरी वक्त तक पाले रहे। अब अपने ही अगर झूठी दिलासा देते रहे तो गैरों से क्या शिकायत करें।

तो क्या यूपी में बीजेपी से गठबंधन को लेकर आरसीपी सिंह ने जेडीयू को अंधेरे में रखा। क्या बीजेपी से गठबंधन को लेकर ईमानदार कोशिश आरसीपी सिंह ने नहीं की। ललन सिंह को तो यही शक है। बीजेपी से गठबंधन नहीं हुआ तो क्या लड़ना तो है, सो जेडीयू ने 51 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया और 26 सीटों की लिस्ट भी जारी कर दी।

वहीं जेडीयू के अकेले लड़ने के ऐलान पर बीजेपी ने कहा इसमें कौन सी नई बात है। वो तो पहले भी अकेले लड़ते रहे हैं। लेकिन बिहार में तो हम दोस्त हैं और रहेंगे। वहीं पटना लौटने पर ललन सिंह ने भी बीजेपी के सुर में सुर मिलाया और कहा कि बिहार से बाहर हम बाकी राज्यों में अलग-अलग चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इसका असर बिहार पर नहीं पड़ता है। वहीं आरजेडी को लग रहा है कि यूपी में दोस्ती नहीं हुई, तो अब बिहार की दोस्ती भी टूटनी तय है।

वैसे सियासत में दोस्ती और दुश्मनी का रिश्ता स्थायी नहीं होता है। ऐसे में देखना होगा लखनऊ में दोस्ती नहीं हो पाने का असर क्या लखनऊ से 500 किलोमीटर दूर पटना की दोस्ती पर कितना पड़ता है।


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