One Nation One Election : वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए एक कदम आगे बढ़ी सरकार, जानिए किन पार्टियों ने किया इसका विरोध और क्या आ सकता है बदलाव

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Government takes a step forward for One Nation-One Election Government takes a step forward for One Nation-One Election

One Nation One Election :मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। संसद के शीतकालीन सत्र में बिल पेश किया जा सकता है। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा कर रही है और अब कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है।

32 पार्टियों ने किया था समर्थन

वन नेशन-वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनाई गई कमेटी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी। 191 दिन की चर्चा के बाद 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई। कमेटी ने 62 पार्टियों से संपर्क साधा था, जिनमें से 47 ने जवाब दिया। 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया जबकि 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया। वहीं, 15 पार्टियों ने जवाब नहीं दिया। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और सीपीएम ने एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी सहित 32 पार्टियों ने इसका समर्थन किया। कांग्रेस इसे अब भी अव्यवहारिक बता रही है।

जानिए कब टूटी एकसाथ चुनाव कराने की परंपरा

भारत में फिलहाल लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1971 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई लेकिन विपक्ष इसे सही नहीं बता रहा।

सत्तापक्ष ने किया स्वागत

कमेटी ने जो मुख्य सिफारिशें की है, वो भी जानते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो। सदन का कार्यकाल पूरे पांच साल का हो। हर पांच साल में आम चुनाव कराए जाएं। सरकार गिरती है तो मध्यावधि चुनाव कराए जाएं लेकिन ये चुनाव सदन के लिए बचे हुए कार्यकाल के लिए हो। सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट हो। पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ हो और दूसरे चरण में सभी चुनाव एक साथ हो। सत्ता पक्ष ने कैबिनेट के फैसले का स्वागत किया है।

जानिए किन राज्यों का घटेगा कार्यकाल

एक देश-एक चुनाव लागू करने पर कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटेगा। बिहार विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल पूरा होगा। बाद का साढ़े तीन साल का ही रहेगा। असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल 3 से सात महीने घटेगा। उसके बाद का कार्यकाल भी साढ़े तीन साल का होगा। 11 राज्य ऐसे हैं, जहां वोटिंग 2026 में करायी जा सकती है। ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड, जिनका मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा।

वहीं, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल मौजूदा कार्यकाल 13 से 17 महीने घटेगा। इसके बाद का कार्यकाल सवा दो साल रहेगा। इसके बाद देश की सभी विधानसभाओं का कार्यकाल जून 2029 में समाप्त होगा।

जानिए क्या होगा फायदा

बीजेपी और उसके सहयोगी दल वन नेशन-वन इलेक्शन के पक्ष में हैं तो विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है। सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना जनहित में होगा। इससे आर्थिक विकास तेज होगा और महंगाई नियंत्रित होगी। कैबिनेट ने इसे पास कर दिया है और अब संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाया जाएगा।