छात्रों को फ्लावर समझा है क्या? : तीन साल की डिग्री 5 साल में देंगे, आवाज़ उठाई तो लाठी से खामोश कर देंगे

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नाम-पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना

LLB के लिए चार साल में सिर्फ एक परीक्षा

5 साल का कोर्स 10 साल में होगा पूरा?

नाम-आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना

BTECH कोर्स का सेशन 1 साल लेट

परीक्षा के लिए बार-बार तारीख पे तारीख

नाम-बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा

तीन साल की डिग्री 5 साल में

ना एकेडमिक कैलेंडर, ना ही है परीक्षा कैलेंडर

नाम- तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय

तीन साल की डिग्री 4-5 साल में

नाम—BSEB यानी बिहार बोर्ड

2019 में हुई STET की परीक्षा

3 साल बाद भी सर्टिफिकेट नहीं मिला

बिहार के विश्वविद्यालयों में लेटलतीफी की ये बानगी है। जिसे देखकर ऐसा लगता है कि बिहार के छात्रों को सिस्टम और सरकार ने फ्लावर समझ लिया है। जी हां वही पुष्पा फिल्म वाला फ्लावर। फिल्म का हीरो भले ही कहे कि फ्लावर नहीं फायर है। लेकिन बिहार के सड़े सिस्टम ने तो इन छात्रों को फ्लावर ही मान लिया है। कोई बीटेक करना चाहे, कोई ग्रेजुएशन करना चाहे, कोई एलएलबी करना चाहे, या फिर कोई छात्र पीजी। बिहार के यूनिवर्सिटी ने कसम खा लिया है कि किसी भी कोर्स की ना परीक्षा तय समय पर लेंगे, परीक्षा ले लिए तो रिजल्ट समय पर नहीं देंगे। रिजल्ट दे दिए तो भी डिग्री समय पर नहीं देंगे। हालत ये है कि 3 साल की डिग्री 5 साल में भी मुश्किल से मिल पाती है। पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी को ही ले लीजिए। नाम में भले ही मौर्य साम्राज्य वाले पाटलिपुत्र हो, लेकिन यहां का साम्राज्य संभाल रहे मठाधीशों ने यहां के सिस्टम को इतना सड़ा दिया है कि एलएलबी के लिए 4 सालों में सिर्फ एक परीक्षा ही ले पाता है जबकि एलएलबी का कोर्स 5 सालों और तीन सालों में पूरा करना है। हालत ये है कि परीक्षा समय पर करवाने और रिजल्ट समय पर जारी करने की मांग के लिए छात्र पढ़ने के बजाए यूनिवर्सिटी में धरना देने को मजबूर हैं। मतलब छात्रों को पूरी तरह से फ्लावर समझ लिया है।

अब पटना में ही स्थित एक और यूनिवर्सिटी है आर्यभट्ट ज्ञान यूनिवर्सिटी। महान गणितज्ञ के नाम पर यूनिवर्सिटी है, लेकिन यहां के मठाधीशों की महानता ऐसी कि BTECH की परीक्षा की कोई एक तारीख तय ही नहीं कर पाते हैं। हर हफ्ते परीक्षा की तारीख अपने मन के मुताबिक बदल देते हैं, जबकि सेशन पहले से ही 1 साल लेट चल रहा है। हालत ये है कि हर दूसरे दिन यहां के छात्रों पर लाठियां बरसती हैं, फिर भी यहां के महान मठाधीश छात्रों से बात करना तो दूर उनकी समस्या सुनने के लिए गाड़ी से उतरना भी अपनी शान के खिलाफ मानते हैं। क्योंकि छात्रों को तो इन्होने फ्लावर समझा है। और अगर छात्रों ने फ्लावर से फायर बनने की थोड़ी सी हिमाकत की, तो पुलिस तो है ही लाठी बरसाकर वापस फ्लावर बनाने के लिए। सो यहां के छात्रों पर भी पुलिस ने लाठियां बरसानी शुरु कर दी। छात्रों को फ्लावर समझ लेने की एक और बानगी है। छात्र इन दिनों बिहार बोर्ड के गेट के आगे हर दूसरे दिन धरना देते हैं, ताकि इन्होने जो परीक्षा दी है, उसका सर्टिफिकेट मिल जाए। परीक्षा STET की थी, जो 2019 में ही ली गई। लेकिन पास होने के बाद भी अभी तक सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है।

1 करोड़ 73 लाख 843 छात्रों का भविष्य दांव पर

अब राजधानी पटना में विश्वविद्यालयों और बोर्ड का ये हाल है, तो बाकी ज़िलों के यूनिवर्सिटी में क्या हाल होगा समझना मुश्किल नहीं है। आंकड़ों में देखें तो बिहार के 1 करोड़ 73 लाख छात्रों की सुध लेने वाला कोई नहीं। दरअसल बिहार के सरकारी नियमित विश्वविद्यालयों में कॉलेजों की संख्या 985 है। सत्र 2019-20 में 985 कॉलेजों में कुल नामांकन एक करोड़ 73 लाख 843 रहा। लेकिन लेटलतीफी के कारण 1 करोड़ 73 लाख 843 छात्रों का भविष्य दांव पर है।

उच्च शिक्षा के मामले में फिसड्डी है बिहार

वैसे बिहार में उच्च शिक्षा की बदहाली NIRF रैकिंग में भी झलकती है। जिस बिहार में शिक्षा पर 35 हजार करोड़ यानी बजट का 20 फीसदी सालाना खर्च होता है। वो बिहार उच्च शिक्षा के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर फिसड्डी है। NIRF Ranking 2021 में बिहार के 2 ही शिक्षा संस्थानों को जगह मिली। ओवरआल टॉप शिक्षा संस्थान की लिस्ट में आईआईटी पटना को 51वीं रैंक मिली। टॉप इंजीनियरिंग संस्थानों में एनआईटी पटना को 72वीं रैंक मिली है। पटना विश्वविद्यालय ने NIRF रैकिंग के लिए अप्लाई ही नहीं किया था। लॉ की पढ़ाई वाले संस्थानों की सूची में भी बिहार से कोई संस्थान नहीं हैं। रिसर्च कैटेगरी में बिहार की लाज आईआईटी पटना (IIT Patna) ने बचाई। रिसर्च कैटेगरी में आईआईटी पटना 50 संस्थानों की लिस्ट में 47वें स्थान पर है। फॉर्मेसी में भी बिहार का कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं है। NIRF के कॉलेजों की रैंक में भी बिहार का से कोई कॉलेज नहीं है। मेडिकल की पढ़ाई से जुड़ी रैंक में कोई मेडिकल कॉलेज या संस्थान नहीं है। जबकि बिहार में पीएमसीएच, एनएमसीएच सहित दूसरे मेडिकल कॉलेज हैं।

मतलब सिस्टम ने ठान लिया है कि इन नौजवानों की जवानी ढल जाने तक इन्हें फ्लावर बनाते रहेंगे। जबकि सिस्टम चलाने वाले जब छात्र थे तब 74 में जेपी की अगुआई में सिस्टम के खिलाफ ही कभी फायर बने थे, और आज इंतजार कर रहे हैं सिस्टम के खिलाफ इन छात्रों के फ्लावर से फायर बनने का।



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