डायन के नाम पर दरिंदगी कब तक? : झारखंड में डायन के नाम पर दरिंदगी बार-बार, सियासत भी लगातार
![dayan-ke-name-par-jharkhand-me-darindagi](https://cms.kashishnews.com/Media/2022/January/14-Jan/CoverImage/COimg3d2d9700e829488f9fddcafce24dc06a30.png)
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झारखंड आजादी के साढ़े सात दशक बाद भी अंधविश्वास और काला जादू-टोना के मकड़जाल से बाहर नहीं निकल पाया है। भ्रांति, भ्रम और डायन होने के शक में अब तक सैकड़ों हत्या हो चुकी है और कई परिवारों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। पिछले 10 दिनों में ही झारखंड में डायन के नाम पर दरिंदगी की तीन घटनाएं हुईं, जिसमें हाल ही में सिमेडगा में एक महिला को जिंदा जलाने की कोशिश की गई। लेकिन गंभीर हालत में झुलसी महिला को समय रहते इलाज मिल गया और जान बच गई। घटना 12 जनवरी की रात की है, जब सिमडेगा में ठेठईटांगर थाना क्षेत्र के कुड़पानी गांव की रहने वाली झरियो को गांव के ही फुलरेंस ने डायन बताते हुए अपनी पत्नी की मौत का जिम्मेदार ठहरा दिया। इसके बाद फुलरेंस ने अपने साथियों के साथ मिलकर झरियो देवी पर पुआल और तेल डालकर ज़िंदा जलाकर मारने की कोशिश की। समय रहते पुलिस पहुंच गई और आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और महिला को अस्पताल में भर्ती कराया है, जहां उसकी हालत स्थिर बनी है।
वहीं इस घटना के बाद सियासत भी अपनी रफ्तार से चल पड़ी है। अस्पताल में भर्ती महिला से मिलने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी पहुंचे। महिला का हालचाल जाना और घटना के बहाने सरकार को निशाने पर लिया। सिमडेगा में पहले मॉब लिचिंग में ज़िंदा जलाकर हत्या और अब डायन के नाम पर दरिंदगी की घटना। विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका मिल गया, तो सत्तापक्ष बीजेपी के शासनकाल में डायनबिसाही की घटनाओं को गिनाकर पलटवार करने लगे।
सियासत अपनी जगह है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सत्ता में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार रहे, डायन के नाम पर दरिंदगी लगातार जारी है। 10 दिनों में डायन के नाम पर दरिंदगी की तीसरी घटना है। 10 दिन पहले गुमला के सिसई में डायन के नाम पर दरिंदगी हुई थी। महिला के दो बेटों की पिटाई की गई, एक की आंख फोड़ी गई। 3 दिन पहले खूंटी में डायन के शक में दंपत्ति की पीट-पीट कर हत्या की गई। डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में हर साल औसतन 50 लोगों की हत्याएं होती हैं। झारखंड में पिछले 5 साल में डायन के नाम पर 207 लोगों की हत्या की गई। झारखंड में 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या हुई। साल 2016 में 39 लोगों की हत्या, 2017 में 42 लोगों की हत्या , 2018 में 25 लोगों की हत्या , 2019 में 27 लोगों की हत्या डायन के शक में कर दी गई। 2020 में 28 , जबकि 2021 अक्टूबर तक 18 लोगों की हत्या डायन के नाम पर की गई।
वहीं5साल में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत4,560मामले दर्ज किए गए। यानीइन मामलों में किसी को जान से मारा गया, किसी को मारने की कोशिश हुई तो किसी को डायन के नाम पर प्रताड़ित किया। डायन अधिनियम के तहत 2015 में कुल 818 मामले दर्ज किए गए। 2016 में 688 मामले, 2017 में 668 मामले, 2018 में 567 मामले, 2019 में 978 मामले, 2020 में 841 मामले दर्ज हुए। यानी 2019 और 2020 में डायनबिसाही मामलों की संख्यातेजी से बढ़ी हैं। डायनबिसाही के पीछे जमीन हथियाने और अंधविश्वास मुख्य वजह मानी जाती है।
सवाल है कि डायन के नाम पर दरिंदगी रोकने की अब तक क्या कोशिश हुई। 2001 में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 लागू किया गया। वहीं डायन प्रथा के खिलाफ जागरुकता पर 1 करोड़ से ज्यादा खर्च किए जाते हैं। 2020-21 में जागरुकता पर 62 लाख 71 हज़ार खर्च किए गए। वहीं 2021-22 में जागरूकता पर 1 करोड़ 20 लाख रुपए खर्च किए गए। हालांकि कानून और जागरुकता के बजाए जरूरत ग्रामीण इलाकों में शिक्षा औऱ स्वास्थ्य पर ध्यान देने की है।
झारखंड के ग्रामीण इलाकों में अभी भी शिक्षा का प्रचार-प्रसार कम है। 2011 की जनगणना के मुताबिक साक्षरता दर 66.41 % के साथ झारखंड देश में 32वें नंबर पर है। भगत-ओझा के चलन के कारण भी डायन बिसाही की घटनाएं होती हैं और लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ओझाओं को और ज़्यादा बढ़ावा देती है। झारखंड के कुल खर्च का सिर्फ 4.82 % ही स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, जो देश में सबसे कम है। सरकारी अस्पतालों में बिस्तर की उपलब्धता भी झारखण्ड में काफी कम है। देश में औसतन 1,844 लोगों के लिए एक बिस्तर उपलब्ध है, जबकि झारखण्ड में औसतन 3,079 लोगों के लिए एक बिस्तर उपलब्ध है। झारखंड के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद लचर हैं, और शिक्षा कम है, इसीलिए बीमारी होने पर लोग ओझा-भगत का सहारा लेते हैं और उनके कहने पर भी डायनबिसाही की घटना को अंजाम देते हैं। ज़ाहिर है डायनबिसाही की घटनाओं पर सियासत तो हर बार होती है, लेकिन किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, ग्रामीण इलाकों में शिक्षा औऱ स्वास्थ्य को मजबूत करने की दिशा में ईमानदार कोशिश नहीं की गई, जिसका नतीजा है कि 21 वीं सदी में भी डायन के नाम पर दरिंदगी जारी है।