बिहार में खिलाड़ी खातिर का बा? : गर्व से तो नेता खूब कहेंगे ‘बिहारी सब पर भारी’, लेकिन मदद के नाम पर जमकर करेंगे हकमारी

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बिहार के ईशान किशन IPL में दूसरे सबसे महंगे भारतीय खिलाड़ी बने

बिहार के लाल ईशान किशन विश्व के सबसे बड़े और चर्चित क्रिकेट लीग IPL की बोली में इस बार के सबसे महंगे खिलाड़ी साबित हुए हैं। ईशान किशन IPL में दूसरे सबसे महंगे खिलाड़ी बने हैं। ईशान किशन को मुंबई इंडियंस ने 15.25 करोड़ में खरीदा है। युवराज सिंह के बाद सबसे महंगे भारतीय खिलाड़ी बने हैं ईशान किशन। इतने महंगे खिलाड़ी बनने के पीछे वजह है ईशान का शानदार प्रदर्शन। IPL में ईशान की स्ट्राइक रेट 138 है। ईशान ने IPL में अब तक 1452 रन बनाए हैं।

वैशाली के अनुनय नारायण को राजस्थान रॉयल्स ने 20 लाख में खरीदा है

वहीं बिहार के एक और लाल वैशाली के रहने वाले अनुनय नारायण सिंह की भी IPL में एंट्री हुई है। अनुनय को राजस्थान रॉयल्स ने बेस प्राइस 20 लाख में खरीदा है। ईशान किशन और अनुनय की सफलता पर बधाईयों की बाढ़ आ गई है। हर कोई बधाई देते हुए कह रहा है बिहारी सब पर भारी। राज्य के खेल और युवा मामलों के मंत्री आलोक रंजन भी ईशान और अनुनय को बिहारी बताकर गर्व कर रहे हैं। यकीनन ईशान और अनुनय पर गर्व होना भी चाहिए। लेकिन गर्व करने से पहले सरकार और मंत्री जी को खुद से सवाल करना चाहिए कि ईशान किशन या अनुनय के संघर्ष में बिहार के सिस्टम ने और सरकार ने कितना साथ दिया? इस सवाल का जवाब समझने के लिए हमारे संवाददाता गौतम पहुंचे राजधानी पटना के मोइनुलहक स्टेडियम।

1996 विश्वकप क्रिकेट के दो मैचों को होस्ट करनें वाला इंटरनेशनल मोइनुलहक स्टेडियम पानी माँग रहा है। अब उसकी हालत देखनें के बाद यकीन करना मुश्किल है कि क्या यहाँ कभी इंटरनेशनल मैच भी हुआ था।स्टेडियम के कोने-कोने की तस्वीर इसकी बदहाली की कहानी बयां कर रही है। दर्शकों के बैठने की जगह पर झाड़ उग आए हैं। स्टेडियम के चारों तरफ झाड़ियों के जंगल हैं। स्कोर बोर्ड की तस्वीर बताने के लिए काफी है कि यहां किए गए काम का स्कोर ज़ीरो ही है। वहीं मैदान में बेतरतीब तरीके से घास उगे हैं। जो बताने के लिए काफी है कि सियासत के मैदान पर दो-दो हाथ करने वाले नेताओं के लिए क्रिकेट का ये मैदान कोई मायने नहीं रखता है।

मोइनुल हक स्टेडियम बदहाली के आंसू बहा रहा है

ऐसे ही हालात में अपने खर्चे पर क्रिकेट की प्रैक्टिस करते कुछ नौजवान भी दिखे। ये वो नौजवान हैं, जिनमें ईशान किशन या धोनी बनने की चाहत और हुनर है, लेकिन इनकी हुनर को तराशने के लिए ना कोई सुविधा है, ना ही इनके खेल को निखारने के लिए कोई संसाधन। सोचिए राजधानी पटना में कहने को इंटरनेशन मोइनुल हक स्टेडियम की हालत ये है तो बिहार के बाकी जिलों और शहरों के स्टेडियम का हाल समझा जा सकता है। ज़रा समझिए खेल के नाम पर बिहार में किस तरह सिर्फ वादों और आश्वासन का सियासी खेल ही होता रहा है।

बिना संसाधनों के अपने खर्चे पर प्रैक्टिस करते युवा

जबकि बिहार ने देश को रमेश सक्सेना, रणधीर सिंह, सुब्रत बनर्जी, सबा करीम, कीर्ति आजाद, धोनी जैसे खिलाड़ी दिए। लेकिन 2002 के बाद बिहार क्रिकेट का अंधकार युग शुरु हो गया। BCCI ने बिहार के क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता रद्द कर दी। इसके बाद बिहार क्रिकेट गंदी राजनीति और भ्रष्टाचार का शिकार होती रही। जिसके कारण खिलाड़ियों का पलायन शुरु हो गया। महेंद्र सिंह धोनी जो पहले बिहार रणजी टीम से खेलते थे, विभाजन के बाद वो झारखण्ड टीम में चले गए। पटना के ईशान किशन को झारखंड से खेलना पड़ा। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को भी दिल्ली और झारखण्ड से ही खेलना पड़ा था। 16 साल बाद 2018 में बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता तो मिली। लेकिन फिर भी खिलाड़ियों को सुविधा और संसाधन नहीं मिले। रणजी टीम में खिलाड़ियों के चयन में भी धांधली के आरोप लग रहे हैं।

वहीं बिहार की सत्ता में बैठे नेताओं ने भी खेल और क्रिकेट को तवज्जो नहीं दी। खेल के नाम पर सिर्फ वादों का खेल खेलते रहे। मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के तहत ब्लॉक स्तर पर स्टेडियम बनाए जाने थे। 2008-09 में ही पूरे राज्य में कुल 345 स्टेडियम निर्माण की मंजूरी मिली। इसके लिए अब तक 1 अरब 72 करोड़ 13 लाख रुपए की मंजूरी मिली है। लेकिन14 साल बाद सिर्फ 165 स्टेडियम का ही निर्माण कार्य पूरा हो पाया है। इनमें भी ज्यादातर स्टेडियम की हालत बदहाल है। राज्य में सरकार की ओर से संचालित एक भी स्पोर्ट्स एकेडमी नहीं है। राजगीर में 2018 में स्पोर्ट्स एकेडमी की नींव रखी गई, लेकिन अब तक तैयार नहीं हुआ। राजगीर में खेल यूनिवर्सिटी बनाने की तैयारी चल रही है, लेकिन फिजिकल कॉलेज राजेन्द्र नगर 15 वर्षों से बंद है। राजगीर में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम बनाया जा रहा है, लेकिन पटना के मोइनुल हक स्टेडियम के लिए कुछ नहीं किया गया। मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के अंतर्गत हर साल हरेक खेल से पांच खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देनी है, लेकिन छह वर्षों से यह नियुक्ति प्रक्रिया बंद है। खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए संसाधन उपल्बध नहीं हैं। खेल प्रशिक्षकों का अभाव बिहार में है। सभी ज़िलों में जिला खेल पदाधिकारी तक नहीं हैं। केन्द्र सरकार की ओर से राज्य में स्थापित चार प्रशिक्षण केन्द्र बदहाल हैं।

बदहाली के इन सवालों पर खेल एवं युवा मामलों के मंत्री आलोक रंजन के पास सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं है। ज़ाहिर है बिहार का कोई लड़का किसी दूसरे राज्य से खेलने पर मजबूर होता है, तब उसे रोकने और उसका साथ देने के लिए सरकार का कोई नुमाइंदा आगे नहीं आता है, लेकिन अपनी मेहनत के दम पर अगर वो लड़का नाम कमाता है, तो क्रेडिट लेने के लिए सरकार और सत्ताधारी नेता तुरंत बेशर्मी से आगे आ जाते हैं। अभी भी ना जाने कितने ईशान किशन और धोनी मोइनुल हक स्टेडियम या गली मोहल्लों में गुम होंगे, जरूरत है उस हुनर को निखारने, तराशने और उनकी मदद करने की। तब जाकर हम सही मायने में उनपर गर्व करने के अधिकारी होंगे।



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