सियासत की आड़ में बिहारियों पर प्रहार लगातार : अगर बिहार में ही मिलता रोजगार, तो क्या होता बिहारियों पर वार?

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यकीनन पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के ये ज़हरीले चवन्नी छाप बोल हैं और इसकी निंदा होनी चाहिए। हैरानी ऐसे बोल पर ताली बजाने वाली प्रियंका गांधी को देखकर भी होती है। पंजाब सीएम के इस ज़हरीले वार पर बिहार से करारा पलटवार भी हुआ। खुद सीएम नीतीश कुमार ने पंजाब सीएम पर करारा पलटवार किया। लेकिन ये पहली बार नहीं है जब किसी दूसरे राज्य के सीएम या नेता ने बिहारियों को लेकर ज़हरीले बोल बोले हैं। देखते जाइए। कभी कोटा में अपराध बढ़ने पर राजस्थान में तत्कालीन बीजेपी MLA ने अपराध बढ़ने के लिए बिहारी छात्रों को जिम्मेदार ठहराया। कभी दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बिहार से लोग 500 रुपए का टिकट लेते हैं और दिल्ली आते हैं। लाखों का मुफ्त इलाज कराकर चले जाते हैं। कभी मध्यप्रदेश में स्थानीय लोगों के रोजगार छिनने पर तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने यूपी-बिहार के लोगों को निशाने पर लिया। कभी गुजरात में तत्कालीन कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर ने बाहरियों को भगाने की बात कही और एक बच्ची से बलात्कार की घटना के बाद बिहारियों को मारपीट कर भगाया जाने लगा। कभी महाराष्ट्र में राज ठाकरे के गुंडे बिहारियों को पीटने लगते हैं। कभी असम में बिहारियों पर अत्याचार होता है। कभी कश्मीर में आतंकी बिहारियों की हत्या करते हैं।

मतलब पंजाब से गुजरात तक, दिल्ली से राजस्थान तक, महाराष्ट्र से असम तक हर राज्य में बार-बार बिहारियों को वहां के नेता और सियासी गुंडे निशाने पर लेते रहे हैं। इसमें बीजेपी हो या कांग्रेस, आम आदमी पार्टी हो या शिवसेना। सभी पार्टी के नेता शामिल रहे हैं। और हर बार बिहार से बयानों की निंदा का बयान आता है और फिर सबकुछ भुला दिया जाता है। लेकिन सवाल है कि आखिर बिहार में ही बिहारियों को क्यों नहीं मिलता रोजगार?अगर बिहार में ही बिहारियों को रोजगार मिलता तो क्या बिहारियों पर बार-बार वार होता?सवाल का जवाब समझने के लिए कुछ आंकड़े देखिए।

1951 से लेकर 1961 तक बिहार के करीब 4% लोगों ने दूसरे राज्य में पलायन किया था। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के दौरान 93 लाख बिहारियों ने अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में पलायन किया।देश की पलायन करने वाली कुल आबादी का 13% आबादी अकेले बिहार से है। जो उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है। बिहारियों के पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार है। आंकड़े बताते हैं कि 55 फीसदी यानी आधे से ज्यादा बिहारी रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। नेशनल करियर सर्विस पोर्टल के मुताबिक रोजगार की तलाश में सबसे ज्यादा बिहार के युवा बेरोजगार ही है। दरअसल, इस पोर्टल पर रोजगार मांगने वालों में सबसे अधिक अधिक संख्या बिहार के युवाओं की है। बिहार में 31 दिसंबर तक कुल 13 लाख 60 हजार 952 युवाओं ने एनसीएस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया है। इन रजिस्टर्ड युवाओं में 19 लाख से ज्यादा पुरुष तो लगभग 3 लाख महिलाएं हैं। वहीं पिछले 6 सालों में बिहार में बेरोजगारी दर 3 गुनी बढ़ गई है। जनवरी 2016 में बेरोजगारी दर 4.4 थी, जबकि जनवरी 2022 में ये बढ़कर 13.3 पर है। वहीं CMIE की जनवरी-अप्रैल 2021 की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि बिहार में बेरोजगारी की मार सबसे ज्यादा ग्रेजुएट्स झेल रहे हैं। राज्य के 34.3 फीसदी ग्रेजुएट युवा बेरोजगार हैं। वहीं, 10वीं-12वीं पास वाले 18.5 फीसदी युवाओं के पास नौकरी नहीं है। ये हाल तब है जब 25 साल से कम उम्र की 57.2 फीसदी आबादी के साथ बिहार देश का सबसे युवा राज्य है।

वहीं रोजगार के लिए पलायन के पीछे एक बड़ी वजह दूसरे राज्यों में वर्कर को मिलने वाले ज्यादा पैसे भी हैं। बिहार इकोनॉमिक सर्वे बताता है कि बिहार की एक फैक्ट्री में काम करने वाले वर्कर को हर साल 1.29 लाख रुपए मिलते हैं।वहीं, पड़ोसी राज्य झारखंड में हर वर्कर को सालाना 3.44 लाख मिलते हैं। बिहार की एक फैक्ट्री औसतन 40 लोगों को रोजगार देती है। वहीं, हरियाणा में एक फैक्ट्री औसतन 120 लोगों को रोजगार देती है।

हालत ये है कि ग्रामीण इलाकों में रोजगार की सबसे बड़ी केंद्रीय योजना मनरेगामें मांगने पर भी बिहार में काम नहीं मिलता है और मजबूरन दूसरे राज्यों की ओर पलायन करना पड़ता है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मांगने के बावजूद काम नहीं मिलने के मामले में बिहार दूसरे नंबर पर है। वित्त वर्ष 2021-22 (जनवरी 2022 तक) मनरेगा में 52.35 लाख लोगों ने काम मांगा। इनमें 13.41 लाख 25.6 प्रतिशत लोगों को काम नहीं मिला।

बिहार में बेरोजगारी के पीछे एक कारण बिहार में सरकारी बहालियों में सिस्टम की सुस्ती भी है। एक बहाली पूरा होने में 10 साल तक लग जाते हैं तब भी बहाली पूरी नहीं हो पाती है। 8 साल में बिहार SSC की बहाली नहीं पूरी हुई। 3 साल में बेल्ट्रॉन डाटा एंट्री ऑपरेटर को नियुक्ति नहीं मिली। 5 साल में असिस्टेंट इंजीनियर की ज्वाइनिंग नहीं हुई। 3 साल में शिक्षकों की बहाली पूरी नहीं हुई। 2011 में होमगार्ड भर्ती का फॉर्म निकला, लेकिन अभी तक बहाली पूरी नहीं हुई।

सवाल है कि90 के दशक के बाद ही बिहारियों के साथ दूसरे राज्यों में भेदभाव और हमले की शुरुआत क्यों हुई। क्योंकि बिहार में बिहारियों के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं गया। क्रिकेट खेलने से लेकर पढ़ने तक, कमाने खाने से लेकर बच्चों को शिक्षा देने तक। हर मामले में हम दूसरे राज्यों का मुंह ताकते है। फिर गाली खाने पर ये कहकर खुश हो जाते हैं हम ही दूसरे राज्य को चलाते हैं। नेता भी अस्मिता का सवाल उठाकर पलायन के मुद्दे को दबा देते हैं।



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