अथ श्री 'विशेष' सियासत कथा : जब-जब आता है चुनाव...खेला जाता है ‘विशेष’ का दांव

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विशेष राज्य का दर्जा बिहार को मिले, इसे लेकर एक बिहारी भले ही सपना संजोए बैठे हो, लेकिन इस ‘विशेष’ की आड़ में सियासतदां खालिस सियासत ही करते आए हैं। खासतौर पर तब जब कोई चुनाव आस-पास हो। बिहार को विशेष दर्जा के नाम पर कैसे हर बिहारी की भावनाओं के साथ सिर्फ खिलवाड़ होता है। इसकी झलक तो कुछ दिनों पहले ही दिखी थी, जब सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने विशेष दर्जा की मांग की थी और और डिप्टी सीएम रेणु देवी ने कहा कि विशेष दर्जा की जरूरत नहीं जिस पर सीएम ने कहा कि डिप्टी सीएम को ज्ञान नहीं। फिर भी डबल इंजन की सरकार है।

विशेष दर्जा पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और जेडीयू अध्यक्ष के बीच ज़ुबानी जंग छिड़ गई

अब विशेष पर सियासी ड्रामे की एक और बानगी सामने आई है। जिस बीजेपी और जेडीयू की डबल इंजन सरकार बिहार और केंद्र में चल रही है। उसी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के बीच ‘विशेष’ पर ज़ुबानी जंग छिड़ी है। ललन सिंह ट्विटर पर लगातार देश के प्रधान बिहार पर दें ध्यान हैशटैग का इस्तेमाल कर और पीएम को टैग कर विशेष दर्जा मांग रहे हैं। जिस पर संजय जायसवाल ने सीधे कहा कि ललन जी को बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी मिलना चाहिए, जो विशेष दर्जा मांग रहे हैं। जिस पर ललन सिंह ने पलटवार करते हुए कहा कि हम बीजेपी के प्रधान से नहीं देश के प्रधान से विशेष दर्जा मांग रहे हैं और अगर बीजेपी इस मांग से सहमत नहीं है, तो स्टैंड क्लियर करे। इतना सब कुछ होने पर भी डबल इंजन की सरकार चल रही है।

2013 में दिल्ली में विशेष दर्जा को लेकर नीतीश ने अधिकार रैली की थी

हालांकि ‘विशेष’ पर सियासी ड्रामे का सच और भी हैं। जो जेडीयू और नीतीश कुमार विशेष दर्जा को लेकर पटना से दिल्ली तक हुंकार भरते थे। थाली बजाने से लेकर बिहार बंद तक किया था। विशेष दर्जा को केंद्र में सरकार बनाने में समर्थन की पहली शर्त बताते थे, आज उसी जेडीयू के समर्थन से केंद्र में मोदी सरकार है, जेडीयू कोटे से मंत्री आरसीपी सिंह हैं। सो आज विशेष दर्जा पर शर्त नहीं एक अनुरोध भर है। क्योंकि डबल इंजन की सरकार चल रही है। वहीं जो बीजेपी 7 साल पहले विशेष दर्जा के नाम पर पूरे बिहार में रेल रोका था। सुशील मोदी हुंकार भरते थे कि नरेंद्र मोदी की सरकार बिहार को विशेष दर्जा देगी। वही बीजेपी आज सरकार में रहकर विशेष दर्जा पर सीधे इंकार करती है।

2013 में जेडीयू ने जब विशेष दर्जा का मुद्दा उठाया था, तब 2014 लोकसभा चुनाव था। 2015 में भी विशेष दर्जा का मु्द्दा उठा था। तब 2015 विधानसभा चुनाव था। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी विशेष दर्जा का मु्द्दा उठा था। तब जेडीयू-बीजेपी में सीट बंटवारे का पेंच उलझा था। अब यूपी में चुनाव है और बिहार में MLC चुनाव है। तो विशेष दर्जा का मुद्दा फिर उठ रहा है। मतलब साफ है जब-जब चुनाव आता है, विशेष दर्जा का मुद्दा नेताओं के लिए चुनावी दांव बन जाता है और जब दांव सफल हो जाता है, तो विशेष फिर ठंडे बस्ते में चला जाता है, अगले किसी चुनाव के इंतजार तक।

विशेष दर्जा को लेकर आप नेताओं की बातों में आकर भले ही विशेष और विकसित बिहार का सपना देखने लगे, लेकिन सच यही है कि 52 फीसदी गरीबी और पलायन और बेरोजगारी के साथ बिहार आज भी देश का सबसे पिछड़ा राज्य है और ये सच आप ना देखें और इस सच पर आप सवाल ना करें, इसीलिए विशेष की सियासी कथा चलती रहेगी, नेता कथावाचक की तरह कथा सुनाते रहेंगे और आप हम श्रोता बनकर सुनते रहेंगे।



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