बिहार की सबसे डरावनी रात ! : 58 लाशें देख दहल उठा था देश, ऐसा नरसंहार जिसमें दोषी कोई नहीं

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DESK : आजाद भारत के सबसे बड़े जातीय नरसंहार की वो काली रात जब 58 लाशें एक साथ देख पूरा देश दहल उठा था। एक ऐसी घटना जिसने बिहार के माथे पर कालिख पोत दी और वो कालिख आज इतने वर्षो बाद भी धुल नहीं पाई। जी हां हम बात कर रहे हैं नब्बे के दशक की जब जातीय नरसंहारों का दौर पूरे बिहार पर छाया था। 'लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार' हैवानियत की एक ऐसी काली रात जिसे कलम से स्याही गिराकर लिखना चाहें तो वो भी लाल हो जाए।

बात 1 दिसंबर 1997 की है

बिहार के अरवल ज़िले में सोन नदी के किनारे एक गांव है जिसका नाम लक्ष्मणपुर बाथे है। यह गांव दलित और पिछड़ी जाति के लोगों की बसावट वाला गांव है। दिसंबर की यह सर्द भरी रात जैसे ही ख़त्म हुई सूरज के उठते किरण के साथ गांव में कुछ लोग पहुंचे तो देखा कि गांव की ज़मीन खून से लाल हो चुकी थी।

फिर जब कुछ और आगे बढ़े तो दृश्य देख सभी दहल गए। सामने 58 निर्दोष गांव वालों की लाश जमीन पर जहां तहां पसरी थी। सभी शव खून से सने थे। इन लाशों में पुरुषों के अलावे 27 औरतें और 16 मासूम बच्चे भी शामिल थे। ये सभी निर्दोष लोग अगड़े-पिछड़े, वंचित और संभ्रांत के बीच छिड़ा वर्ग संघर्ष की भेंट चढ़ चुके थे। लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार इसी धधक का एक उदाहरण मात्र था। आज इस नरसंहार के 25 साल पूरे हो गए इसके बावजूद यह नरसंहार देश के इतिहास को झकझोर देता है। भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने इस घटना को राष्ट्रीय शर्म तक कह दिया था।

घटना के बाद स्थानीय लोग इतने आक्रोशित थे कि उन्होंने 2 दिनों तक इन 58 शवों का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। 3 दिसंबर को तत्कालीन CM राबड़ी देवी ने जब लक्ष्मणपुर बाथे गांव का दौरा किया सरकार ने वादा किया कि मुआवज़ा दी जाएगी, नौकरियां दी जाएंगी और दोषियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। उसके बाद ग्रामीणों ने सभी शवों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया। एक साथ 58 चिताएं जलती देख हर कोई सहम उठा था। वाकई में इस नरसंहार ने पूरे देश को ही हिला दिया था।

आरोप था कि ऊंची जाति के लोगों के गिरोह ने ही 58 लोगों को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया। मामला दर्ज किया गया और 46 लोगों को आरोपी बनाया गया। फिर साल दर साल सुनवाई चलती रही। सुनवाई के दौरान ही इनमें से 19 लोगों को निचली अदालत ने ही बरी कर दिया था जबकि एक व्यक्ति सरकारी गवाह बन गया। सुनवाई फिर भी निरंतर चलती रही पटना की एक अदालत ने अप्रैल 2010 में 16 दोषियों को सजा-ए-मौत सुना दी और 10 को आजीवन कारावास की सजा। मामला हाई कोर्ट पंहुचा वहां भी सुनवाई चलती रही और फिर एक दिन कोर्ट ने फैसला सुना दिया जिसे सुन हर कोई दंग रह गया। पटना हाईकोर्ट ने 2013 में सभी 26 अभियुक्तों को बाइज्जत बरी कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि इनकी हत्या आख़िरकार किसने की ? यह बात तो सच है कि एक साथ 58 निर्दोष लोगों की हत्या की गई। साल दर साल सुनवाई चलती रही। तो अब सवाल यह उठता है कि इन सबका हत्यारा कौन ?