रमणीय स्थल : बिहार की सबसे ऊंची सोमेश्वर की चोटी पर अवस्थित हैं मां कालिका मंदिर..नवरात्रा के दौरान यहां मांगी हर मन्नतें होती हैं पूरी

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BIHAR KA SABSE HIGHEST SOMESWAR PAHAR KE KALIKA MANDIR ME HAR MANOKAMNA HOTI HAI PUURI BIHAR KA SABSE HIGHEST SOMESWAR PAHAR KE KALIKA MANDIR ME HAR MANOKAMNA HOTI HAI PUURI

BAGHA:-चैती नवरात्रा को लेकर मां के विभिन्न शक्तिपीठों ने भक्तों की भीड़ विशेष रूप से जुटती है।इन शक्तिपीठ में चंपारण का प्रसिद्ध कालिका माई स्थान की भी काफी महत्ता है.यब कलिका माई स्थान बिहार की सबसे ऊंची सोमेश्वर की सबसे ऊंची चोटी पर अवस्थित है.करीब 2200 फीट की ऊंचाई पर माता का स्थान है.. सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध इस स्थान पर चैत्र नवरात्रा में ही जाने का रास्ता खुलता है।इसलिए श्रदंधालु यहां विशेष रूप से आतें हैं.

एसएसबी की सुरक्षा व स्थानीय पूजा समितियों के सहयोग से यहां आनेवाले भक्त श्रद्धालुओं को माता का दर्शन हो पाता है। इधर कुछ सालों में इस सिद्ध स्थल पर आने वाले भक्तों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। दूर्गम रास्ते पर करीब 2200 फीट की ऊंचाई पर माता का स्थान है। जहां से नेपाल का चितवन क्षेत्र साफ दिखता है।

इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि सोमेश्वर पहाड़ भगवान शंकर के नाम से रखा गया है। जहां चांद भी श्राप वश आकर इस स्थल पर पूजा पाठ व वास कर चुके है। साधक स्थल के रूप में प्रसिद्ध इस स्थान का साधक गुरू रसोगुरू व राजा भतृहरि से भी जोड़कर जाना जाता है। सत्तर के दशक में आम लोगों के पटल पर आए इस सिद्ध स्थल की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। कठिन चढ़ाई के बावजूद भी यहां आने वाले भक्तों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है। हालांकि भारत व नेपाल की सीमा होने के कारण एसएसबी की सुरक्षा में भक्त श्रद्धालुओं का चैत्र के नवरात्रों में आना जाना हो पाता है। बाबा नरहिर दास के खोज के परिणाम इस स्थल को आम लोगों के नजर में लाया गया, परन्तु स्थानीय लोगों के पहल व नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर इस पीठ को ना तो पर्यटन स्थल का दर्जा मिला और ना ही इस दर्शनीय स्थल तक पहुंचने के लिए सरकारी स्थर पर आज तक ऐसी पहल की गई। इसके बावजूद भी माता के इस दरबार में आने वाले भक्तों को कोई भी बाधा नहीं रोक पा रही है। बढ़ते संख्या के कारण अब स्थानीय लोगों के माध्यम से पूजा समिति बनाकर इस स्थल पर आने जाने वाले लोगों को सुविधा के साथ खाना पानी का इंतजाम किया जाता है

इस माता के स्थल पर से ठीक नीचे भतृहरि कुटी पर पूरे चैत्र नवरात्रों में यहां महायज्ञ का आयोजन होता है। वर्षो से चली आ रही यह परंपरा आज भी निरंतर जारी है। इस कुटी पर भगवान शिव का मंदिर है। माता के दर्शन को जाने वाले भक्त श्रद्धालुओं का भगवान शिव के मंदिर में पूजा करना आवश्यक होता है।सोमेश्वर की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित माता कालिका के स्थान के बारे में कहा जाता है कि इस स्थल पर आने वाले पूरे साल तक स्वस्थ्य रहते है। वही यहां आने वाले भक्त श्रद्धालुओं की मन्नत माता अवश्य पूरी करती है। जिसकी मन्नत पूरी हो जाती है वह माता के दरबार में दुबारा मत्था टेकने जरूर आता है।

रमणीय स्थल के भ्रमण का अवसर

इस मंदिर के अस-पास ही कई दर्शनीय स्थल है जहां भ्रमण के दौरान मन प्रसन्न हो जाता है।इन दर्शनीय स्थल में प्रमुख हैं ..

परेवा दह : यहां जाने वाले श्रद्धालु गोबर्धना रेंज कार्यालय से पैदल चलना शुरू करते है। उनका सबसे पहला पड़ाव व दशर्नीय स्थल परेवा दह का सामना होता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां सैकड़ों कबूतरों का समूह निवास करता है। जिसके कारण इसका नाम परेवा दह पड़ा।

टाइटेनिक पहाड़ : नदी के स्त्रोती के बीच पहाड़ को काटकर नदी के धारा के द्वारा बनाया गये इस कलाकृति जो नाव के समान है। इसे टाइटेनिक के नाम से आम बोल चाल में जाना जाता है। यह भी दर्शनीय है।

संकरी गली : पहाड़ों के बीच से पतले रास्ते को जोड़ने हुए दो पहाड़ों को मिलाने वाले रास्ते को संकरी गली के नाम से जाना जाता है। जहां भक्त श्रद्धालु के लिए चना गुड़ का इंतजाम पूजा समिति व ग्रामीणों के सहयोग से उपलब्ध कराया जाता है।

भतृहरि कुटी : इस स्थल पर भगवान शिव का मंदिर, रसोगुरू का गुफा आदि दर्शनीय है। यहां समिति के यहां रात्रि विश्राम का भी इंतजाम किया जाता है। जिससे माता के दर्शन करके आने वाले व दर्शन को जाने वाले यात्री इस स्थान पर नाश्ता चाय कर थकान मिटा सकते है। साथ ही रात्रि में लंगर, भंडारा के साथ विश्राम की सुविधा भी इस कुटी पर रहती है।

रसोगुरू का गुफा: भतृहरि कुटी पर ही एक चट्टान में एक मनुष्य के रहने सोने की जगह वाला चट्टान है कहा जाता है कि रसोगुरू रात में इसी में सोते थे।

अमृत कुंड : माता के मंदिर के दूसरे तरफ नेपाल क्षेत्र में एक अमृत कुंड की धारा बहती रहती है। पतले सोती से भक्तों का प्यास यहां बुझता है। माता के मंदिर पर आसपास पानी की व्यवस्था नहीं रहने के कारण भारत व नेपाल के भक्त भी इसी जगह अपनी प्यास बुझाते है। कहा जाता है कि इस धारा में थुकने या पैर धोने से पानी का निकलना बंद हो जाता है। जिससे कोई साफ हृदय वाला व भक्त ही पुन: पूजा करके चालू करता है। उसके बाद फिर से पानी गिरने लगता है।

शेर गुफा : इस स्थल पर शेर की गुफा भी दर्शनीय है। जिसपर सदैव म¨क्खया भिनभिनाती रहती है। कहा जाता है कि रसोगुरू शेर की सवारी करते थे। जिनका शेर आज भी ¨जदा है जो इसी गुफा में निवास करता है। इसके अलावा भी इस स्थल से नेपाल के कई गांव, चितवन जंगल के साथ बहुत कुछ देखने को मिलता है। इसलिए कहा गया है कि इस प्रखंड के सिद्ध माता के दर्शन को एक बार अवश्य आएं।