ऐसे कई भक्त जो दंडवत कर पहुंच रहे बाबा के दरबार : बाबा भोलेनाथ अपने भक्तों की यात्रा कैसे बनाते सफल, पढ़िये खबर

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aise kayi bhakta jo dnadawat kar pahunch rahe baba ke darbaar aise kayi bhakta jo dnadawat kar pahunch rahe baba ke darbaar

देवघर : विगत 22 जुलाई से शुरु राजकीय श्रावणी मेला अब अंतिम चरण में है. मेला का अब कुछ ही दिन शेष बच गया है. लेकिन कांवरिया पथ पर देवघर आने वाले कांवरियों के उत्साह में अभी भी कोई कमी नहीं आई है. बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु अपने सामर्थ के अनुसार नंगे पांव बाबाधाम पहुंचते हैं. कोई कांधा पर कांवर लेकर, तो कोई पैदल, तो कोई हाथ में जलपात्र लेकर बाबाधाम पहुंचते हैं और बाबा पर जलार्पण कर मनोकामना प्राप्त करते हैं. लेकिन इन सभी भक्तों से अलग इन दिनों कांवरिया पथ पर कई ऐसे बम दिखाई दे रहे हैं जो अपने हठयोग का उदाहरण देते हुए दंडवत बाबा के दरबार में हाजरी लगाने पहुंच रहे हैं. इनके इसी हठयोग पर इन सभी का नाम ही दंडी बम पड़ गया है.

कोई मनोकामना लेकर तो कोई मनोकामना पूर्ण होने पर दंड यात्रा कर रहे हैं

कांवर में गंगा जल भर कर नंगे पांव गंगाधाम से बाबाधाम की कष्टप्रद यात्रा करने की अति प्राचीन परंपरा हैं. कहते हैं कि तप से सिद्धि की प्राप्ति होती है. भक्त कठोर तप कर अपने आराध्य बाबा बैद्यनाथ को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. कोई कांधे पर कांवर लेकर नंगे पांव बाबा धाम पहुंचते हैं. कोई डाक बम बन कर दौड़ते हुए जलपात्र लेकर पहुंचते हैं. जबकि कुछ तो एक कदम और आगे बढ़कर हठयोग का सहारा लेते हुए दंड देते बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं. इस तरह दंड देते हुए 105 किलामीटर की कांवर यात्रा लगभग 30 से चालीस दिनों में पूरी होती है. लेकिन बाबा के इन भक्तों की मानें तो यह शक्ति उन्हें बाबा की अनुकंपा से मिलती है. दंड देते हुए जल लेकर बाबाधाम की इस यात्रा के भी कई नियम हैं जिनका कड़ाई से इनके द्वारा पालन अवश्य किया जाता है. प्रत्येक दिन तीन से चार किलोमीटर की यात्रा इनके द्वारा तय की जाती है और पड़ाव पर पहुंच कर जमीन पर एक आकृति बनायी जाती है और पूरी श्रद्धा के साथ इस आकृति को नमन किया जाता है. उस खास दिन की यात्री की यह लक्ष्मण रेखा होती है. अगले दिन फिर उसी जगह से उसी आकृति की पूजा कर आगे की यात्रा शुरु की जाती है. इतना ही नहीं दंड देते हुए एक दिन की यात्रा तय कर फिर पैदल वापस चल कर अपना जलपात्र इस पड़ाव तक लाते हैं. दंड देने वाले वैसे शिव भक्त हैं जो अपनी मनोकामना लिए आते हैं या फिर उनकी मनोकामना को बाबा पूर्ण कर देते हैं.

भोलेनाथ ही देते हैं दंडी बमों को शक्ति

आस्था और श्रद्धा से सामर्थ का सृजन होता है और यही इन दंडी शिव भक्त कांवरिया को दंड देते हुए जल लेकर बाबाधाम आने की शक्ति प्रदान करता है. दंडी बम भी मानते हैं कि बाबा की अनुकंपा के बगैर यह कठिन यात्रा संभव नहीं है. इस कठिन यात्रा में इन्हें बहुत परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है लेकिन भोलेदानी कैसे अपने भक्तों की परेशानी हर लेते हैं ये दंड देने वाले शिव भक्तों को भी महसूस नहीं होता. तभी तो 105 किलोमीटर की कठिन यात्रा 30 से 40 दिन में ही संपन्न हो जाती है.