विपक्ष की बैठक टलने के क्या हैं राजनीतिक मायने : नीतीश के अभियान को धीमा करना चाहती है कांग्रेस ?

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पटना : 12 जून को पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक टाल दी गयी है. यह सूचना खुद सूबे के मुखिया और विपक्षी एकता की मुहिम का नेतृत्व कर रहे नीतीश कुमार ने सोमवार को पत्रकारों को दी . हालांकि बैठक स्थगित किये जाने की सूचना रविवार की देर शाम ही आ गयी थी और मीडिया में खबरें भी जोर शोर से चली साथ ही यह बैठक 23 जून को होने की संभावना की खबर भी चली है. हालांकि 12 जून की बैठक की आधिकारिक घोषणा सीएम नीतीश कुमार ने कभी नही की थी और ना ही इंकार ही किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सबसे पहले इस बैठक में शामिल होने की घोषणा कर इस बैठक के आयोजन पर मुहर लगा दी .


हालांकि इस बैठक की बुनियाद पिछले 22 मई को ही नई दिल्ली के 10 राजा जी मांर्ग यानि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर पड़ चुकी थी जिसमें श्री खड़गे के अलावा कांग्रेस युवराज राहुल गांधी की मुलाकात नीतीश कुमार के साथ हुई थी . हालांकि बैठक के बाद राहुल और नीतीश मीडिया से मुखातिब नही हुए जैसा उसके एक माह पहले 12 अप्रेैल की बैठक के बाद मुखातिब हुए थे और विपक्षी एकता की जरूरत ही नही बतायी आपसी सहमति भी जाहिर की . ये अलग बात है कि कांग्रेस महासचिव के वेणुगोपाल और जद यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने विपक्षी दलो की एक बैठक जल्द होने और इसके स्थान और तारीख पर फैसला एक दो दिन में होने की बात कही थी.लेकिन इसकी विधिवत घोषणा 4 जून तक भले ही नही हुई हो लेकिन बैठक स्थगित होने की खबर आ गयी .

सूबे ही नही देश के राजनीतिक गलियारों में यह बात तैरने लगी और कांग्रेस के नेता पहले जय राम रमेश और फिर बिहार के प्रभारी कांग्रेस महासचिव भक्त चरण दास ने जब यह एलान कर दिया कि 12 जून की बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी दोनो शामिल नही होंगे. वजह राहुल गांधी का विदेश दौरा तो मल्लिकार्जुन खड़गे की उस दिन की व्यस्तता बतलाया गया. अब सवाल यह उठता है कि क्या बैठक के मेजबान नीतीश कुमार ने क्या कांग्रेस के नेताओं से सहमति नही ली थी.

सूबे के राजनीतिक पंडितों की माने तो नीतीश कुमार बिहार ही नही देश की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं और नीतीश की राजनीतिक चाल पूरी तरह से सधी हुई होती है. ऐसे में नीतीश भला वगैर कांग्रेस की सहमति के बैठक का स्थान और तारीख कैसे तय करते . खासकर तब जब नीतीश ने खुद जद यू की बैठक में अपने विधान सभा और लोकसभा के प्रभारिंयो को इसकी जानकारी दी थी .लेकिन बिहार के राजनीतिक गलियारों में ये बात तैर रही है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आग्रह पर नीतीश ने बैठक का स्थान और तारीख तय किया था. शायद यही वजह है कि ममता ने पहले आने का एलान किया था जो शायद कांग्रेस को नागवार गुजरा.

दरअसल हिमाचल और कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस के हौसले जहां बुलंद है वही ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता खतरे में पड़ने के कारण उनकी हैसियत घटी है.ऐसे में विपक्षी एकता की हिमायती दिख रही कांग्रेस कोई हड़बड़ी नही दिखाना चाहती . सूत्रो के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान अभी इस वर्ष होनेवाले राजस्थान मध्यप्रदेश , छतीसगढ मिजोरम और तेलांगना पर जिसमें उसका मुख्य मुकाबला राजस्थान , मध्य प्रदेश और छतीसगढ में बीेजेपी से है तो तेलांगना में के सी आर से है. ऐसे में कांग्रेस इन चुनावो तक यानि दिसंबर तक वेट एंड वाच की स्थिति में रहना चाहती है.यानि इन राज्यों के चुनाव के फैसले ही देश की विपक्षी एकता का भविष्य तय करेंगे यानि अगर कांग्रेस की हैसियत बढती है तो विपक्षी एकता की अगुवायी भले ही नीतीश करें लेकिन दुल्हा कांग्रेस के ही नेता होंगे।

हालांकि कांग्रेस ने अपना पत्ता अभी नही खोला है लेकिन इतना तय है कि 12 जून की बैठक को फिलहाल टलवाने में सफल रही कांग्रेस पर नीतीश ही नही बीजेपी विरोधी सभी दलों की नजर है. शायद यही वजह है कि अपने मुहिम को धीमा होते देखने के बावजूद नीतीश का यह बयान काफी मायने रखता है कि बैठक में कांग्रेस के बड़े नेता का होना बहुत ही जरूरी है,फिलहाल सबको इंतजार अब 23 जून का है.

अशोक मिश्रा , कशिश न्यूज.


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