यूनिसेफ़ झारखंड और एमिटी यूनिवर्सिटी का सहयोग : छात्रों को स्वास्थ्य और सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए सशक्त बनाना

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रांची: यूनिसेफ़ झारखंड और एमिटी यूनिवर्सिटी रांची ने अपनी प्रो-बोनो साझेदारी की शुरुआत की,जिसमें युवाओं को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता वाले चेंजमेकर के रूप में मान्यता दी गई.यह सहयोग स्वास्थ्य,पोषण,शिक्षा,संचार,एडवोकेसी और साझेदारीतथा बाल संरक्षण जैसे प्रमुख विषयगत क्षेत्रों पर केंद्रित रहेगा.

साझेदारी की शुरुआत शुक्रवार को किशोरों और युवाओं के बीच बाल अधिकारों और एनसीडी पर एक व्यापक सत्र से हुई,जिसमें युवाओं को इस गंभीर स्वास्थ्य चुनौती से निपटने में सक्रिय रूप से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया. इस सत्र में 123 छात्रों (98 लड़कियाँ और 25 लड़के) और फैकल्टी सदस्यों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया.

एमिटी यूनिवर्सिटी झारखंड के कुलपति डॉ. अशोक के. श्रीवास्तव ने इस अवसर पर अपनी शुभकामनाएँ दीं. कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के एक प्रतिभाशाली छात्र ने किया और इसमें दोनों संस्थानों के विशिष्ट वक्ताओं ने भाग लिया.

एमिटी यूनिवर्सिटी झारखंड के रजिस्ट्रार प्रभाकर त्रिपाठी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि “स्वस्थ शरीर की ज़िम्मेदारी स्वयं की होती है” और यूनिसेफ़ एवं एमिटी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाए गए इस मंच की सराहना की, जहाँ छात्र रोग-निवारण को समझ, सीख और अमल में ला सकते हैं.

डॉ. अभिषेक त्रिपाठी,डीन एमएपी,ने स्वागत भाषण दिया और खानपान की आदतों के भविष्य के स्वास्थ्य पर गहरे प्रभाव पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “कम उम्र में यह समझना कठिन होता है,लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं,स्वास्थ्य समस्याएँ सतह पर आने लगती हैं. इस सत्र का उद्देश्य आपको ठहरकर अपने स्वास्थ्य विकल्पों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करना है.”

यूनिसेफ़ झारखंड की कम्युनिकेशन,एडवोकेसी एवं पार्टनरशिप स्पेशलिस्ट आस्था अलंग ने यूनिसेफ़ के प्रमुख कार्यों,विशेषकर झारखंड में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी. उन्होंने छात्रों के लिए यूनिसेफ़ के मिशन में भागीदार बनने हेतु पाँच मुख्य बिंदुओं को रेखांकित किया:

1.बाल अधिकारों की गहरी समझ विकसित करना

2.वंचित बच्चों के लिए जागरूकता फैलाना और वकालत करना

3.समावेशी समुदायों और सहानुभूति को बढ़ावा देना

4.ज़िम्मेदार वैश्विक नागरिकता अपनाना

5.शिक्षा का उपयोग भविष्य के प्रभाव के लिए करना

आस्था अलंग ने कहा, “यूनिसेफ़ का मिशन हर बच्चे के अधिकारों को आगे बढ़ाने पर आधारित है,और हम जानते हैं कि युवा ही असली परिवर्तनकर्ता हैं. जब हम युवाओं को नेता और प्रवक्ता के रूप में जोड़ते हैं,तो हम न केवल बाल अधिकारों के आंदोलन को मज़बूत करते हैं,बल्कि एक ऐसी पीढ़ी भी तैयार करते हैं जो जागरूक,संवेदनशील और अधिक न्यायपूर्ण व समावेशी समाज गढ़ने के लिए तैयार हो.”

यूनिसेफ़ झारखंड के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. वनेश माथुर ने एनसीडी पर विस्तृत सत्र का संचालन किया. उन्होंने इन्हें“धीरे-धीरे विकसित होने वाली ऐसी पुरानी बीमारियाँ बताया जो आसानी से दिखाई नहीं देतीं.”उन्होंने हृदय रोग,मधुमेह,उच्च रक्तचाप,मोटापा,मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ,कुछ प्रकार के कैंसर और सिकल सेल एनीमिया (जो झारखंड के आदिवासी इलाकों में अधिक पाया जाता है) पर विस्तार से जानकारी दी.

डॉ. माथुर ने एनसीडी से जुड़े मिथकों और तथ्यों पर प्रकाश डाला और कहा, “एनसीडी के बोझ को कम करने का एकमात्र उपाय है इन्हें रोकना. कार्य करने का समय अब है.”

एमिटी स्कूल ऑफ़ कम्युनिकेशन के निदेशक डॉ. सापन कुमार गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और इस सहयोग की सराहना की,जो छात्रों को अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग कर बाल अधिकारों की सुरक्षा के साझा मिशन में योगदान देने का अवसर देती है.

एमिटी यूनिवर्सिटी के कई वरिष्ठ शिक्षकों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया,जिनमें डॉ. प्रभात त्रिपाठी (डीन स्टूडेंट वेलफेयर),डॉ. निशांत मणि (डीन एकेडमिक),डॉ. अमित दत्ता (एचओडी बायोटेक्नोलॉजी विभाग),डॉ. जयेता (हेड ऑफ़ इंस्टीट्यूट) और डॉ. राशिद इक़बाल सिद्दीक़ी (असिस्टेंट प्रोफेसर) शामिल थे.

यह रणनीतिक साझेदारी युवाओं को महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों का समाधान करने के लिए सक्षम बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है. आने वाले समय में यह सहयोग विभिन्न विषयगत क्षेत्रों में जारी रहेगा,जिससे छात्रों को यूनिसेफ़ के मिशन से सार्थक रूप से जुड़ने और सामाजिक बदलाव के लिए व्यावहारिक कौशल विकसित करने के अवसर मिलेंगे.

यह साझेदारी मान्यता देती है कि सतत विकास और बाल कल्याण के लिए युवाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है, और छात्रों को एक स्वस्थ एवं अधिक समानतापूर्ण समाज बनाने में सक्रिय भागीदार के रूप में स्थापित करती है.