शराबबंदी पर ‘सुप्रीम’ फटकार : पहले CJI ने शराबबंदी कानून पर किया वार, अब शराबबंदी पर बिहार सरकार को ‘सुप्रीम’ फटकार

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‘’दारु पीनी है, तो मत आइए बिहार’’- नीतीश कुमार, सीएम

शराबबंदी को लेकर सीएम नीतीश कुमार कितने सख्त हैं, उनके इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है। हाल ही में समाज सुधार यात्रा के दौरान सीएम नीतीश ने दो टूक कहा था कि शराब पीनी है, तो मत आइए बिहार। लेकिन सवाल है कि क्या सीएम नीतीश कुमार की ये सख्ती अदालतों पर भारी पड़ रही है। क्या शराबबंदी कानून के कारण अदालतों पर मामलों के बोझ बढ़ते जा रहे हैं। ये सवाल इसीलिए क्योंकि देश के सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार को जबरदस्त फटकार लगाई है। दरअसल बिहार सरकार ने शराबबंदी के आरोपियों की जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी। जमानत के खिलाफ 40 अपील लेकर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। बिहार सरकार की सभी 40 अपीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष कुमारने दलीलें दीं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने खूब फटकार लगाई। बिहार सरकार की ओर से दलील दी गई थी-आरोपी से जब्त की गई शराब की मात्रा को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत जमानत आदेश पारित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएं।जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने कहा कि - आप जानते हैं कि इस कानून ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज में कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है और सभी अदालतें शराब की जमानत याचिकों से भरी हुई हैं।' इस दौरान उन्होंने कहा कि 'मुझे बताया गया है कि पटना हाईकोर्ट के 14-15 न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और कोई अन्य मामला नहीं उठाया जा पा रहा है।'

बिहार सरकार की ओर से कहा गया- शिकायत यह है कि हाईकोर्ट ने कानून के गंभीर उल्लंघन में शामिल आरोपियों को बिना कारण बताए जमानत दे दी है, जबकि कानून में 10 साल की जेल का प्रावधान है। इसके तहत गंभीर अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा का भी प्रावधान है। हमारी समस्या यह है कि शराब के मामलों में उच्च न्यायालय की ओर से लगातार जेल में बिताए गए कुछ समय के आधार पर जमानत के आदेश पारित किए जा रहे हैं।' इस तर्क पर CJI एनवी रमना ने टिप्पणी की कि 'तो आपके हिसाब से हमें सिर्फ इसलिए जमानत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि आपने कानून बना दिया है।' पीठ ने तब हत्या पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि जमानत और कभी-कभी, इन मामलों में अदालतों की ओर से अग्रिम जमानत भी दी जाती है।

पहले भीCJI ने शराबबंदी कानून पर तल्ख टिप्पणी की थी

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने हाल ही में शराबबंदी कानून को अदूरदर्शिता का उदाहरण बताया था। जिसके कारण अदालतों में एक साधारण जमानत के मामले की सुनवाई में एक साल लग जाते हैं। पहलेCJI ने शराबबंदी कानून को अदूरदर्शिता का उदाहरण बताया और अब तल्ख टिप्पणी की। ऐसे में सवाल है कि बिहार जहां पहले से ही कई मामलों में सुनवाई में दशकों लग जाते हैं, और इंसाफ मिलने में देरी होती है। वहां क्या शराबबंदी कानून अदालतों का बोझ बढ़ाकर आम आदमी को इंसाफ मिलने की राह में रोड़ा बन रहा है। सवाल का जवाब समझने के लिए आंकड़ों पर गौर कीजिए।


बढ़ते जा रहे हैं शराबबंदी कानून के लंबित मामले

बिहार में शराबबंदी अप्रैल,2016 में लागू हुई। बिहार पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार,पिछले साल अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क कानून के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं और ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या जिला अदालतों में लंबित हैं। अब तक मद्य निषेध कानून उल्लंघन से जुड़े दो लाख से भी अधिक मामले संज्ञान में आए हैं,मगर 65 फीसद मामलों का ही ट्रायल शुरू हो पाया है। मद्य निषेध एवं उत्पाद विभाग के अनुसार,दिसंबर तक करीब एक लाख आठ हजार मामलों का ट्रायल शुरू हुआ है,जबकि 94 हजार से अधिक मामले ऐसे हैं,जिनका ट्रायल लंबित है। पिछले पांच सालों में महज 1636 कांडों का ही ट्रायल पूरा हो पाया है। इसमें 1019 मामलों में सजा सुनाई गई है,जबकि 610 मामलों में आरोपित दोषमुक्त सिद्ध हुए हैं। पूरे राज्य में एक लाख 37 हजार 643 केस ऐसे हैं,जो संज्ञान के स्तर पर लंबित हैं। इसमें सर्वाधिक मामले पटना के हैं। पटना में पुलिस के 33,268 जबकि उत्पाद टीम के 5,240 केसों में संज्ञान नहीं लिया गया। मुजफ्फरपुर में भी 10 हजार से अधिक,सारण में आठ हजार से अधिक जबकि गया में 6800 से अधिक मामले संज्ञान की प्रतीक्षा में हैं।

पहले ही 34 लाख मामले बिहार की अदालतों में लंबित हैं

शराबबंदी कानून के लंबित मामलों का बोझ तब बढ़ रहा है, जब पहले से ही न्यायलयों में 10 सालों से लाखों मामले लंबित पड़े हैं। बिहार में 34 लाख मामले न्यायालय में लंबित हैं। हाल ही में राज्य सभा सांसद एवं राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के एक प्रश्न के उत्तर में कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने राज्यसभा में बताया कि बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में 5 लाख से ज्यादा मामले 10 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित हैं। जिसमें 4 लाख 38 हजार क्रिमिनल तथा 63,241 सिविल मामले हैं। हाई कोर्ट में 10 वर्ष से पुराने मामले 26,274 लंबित हैं।इसी प्रकार अधीनस्थ न्यायालयों में 7 लाख 25 हजार तथा उच्च न्यायालयों में 27 हजार 228 मामले 5 से 10 वर्ष से लंबित हैं। 5 वर्ष से कम के लंबित मामलों की संख्या अधीनस्थ न्यायालय में 21 लाख 46 हजार तथा हाईकोर्ट में 1 लाख 73 हजार है। 10 दिसंबर,2021 तक कुल लंबित मामलों की संख्या हाईकोर्ट में 2 लाख 27 हजार है तथा अधीनस्थ न्यायालयों में 33 लाख 73 हजार है। मंत्री ने यह भी बताया कि बिहार के जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों के 554 पद रिक्त हैं।

साफ है सिर्फ कानून बनाने और लागू कर देने भर से शराबबंदी खत्म नहीं होगी, जब तक कानून लागू करने से लेकर दोषियों को सजा दिलाने तक की पूरी व्यवस्था मुकम्मल नहीं की जाएगी।


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