Sant Kabir Das Jayanti 2024 : सीएम नीतीश ने बिहारवासियों को दी शुभकामनाएं, जानिये संत कबीरदास का जीवन परिचय और प्रसिद्ध दोहे

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Sant Kabir Das Jayanti PAR CM NTIISH NE DI SHUBHKAMNAYEIN Sant Kabir Das Jayanti PAR CM NTIISH NE DI SHUBHKAMNAYEIN

पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कबीर जयंती के अवसर पर बिहारवासियों और देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी है. मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में कहा है कि संत कबिर हिन्दी साहित्य के भक्ति कालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्य धारा के प्रवर्तक थे. इनकी रचनाओं में हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया. जब भी भारत में धर्म भाषा और संस्कृतिक की चर्चा होती है तो कबीर दास जी का नाम सबसे पहले आता है, क्योंकि कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को दर्षाया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि संत कबीर का जीवन दर्षण एवं उनकी काव्य रचना प्रेरणादायक है. और हम सभी के लिये अनुकरणीय है.

ज्येष्ठ पूर्णिमा को संत कबीरदास जयंती

"ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय,औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।" ये दोहा सुनते और पढ़ते ही कबीरदास का नाम जुंबा पर आ जाता है। भक्ति काल के विख्यात कवि कबीरदास ने न जाने कितने दोहे और रचनाओं से लोगों को प्रेरणा देने का काम किया है। कबीरदास न सिर्फ एक कवि और लेखक थे बल्कि समाज सुधारक भी थे। बता दें कि कबीरदास के लेखन का भक्ति आंदोलन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा को संत कबीरदास जयंती मनाई जाती है।

गुरु रामानंद से उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

उनका जन्म उत्तर प्रदेश स्थित काशी के समकक्ष लहरतारा ताल में सन 1398 में हुआ था. उनके जन्म को लेकर ऐसी मान्यता है कि रामानंद गुरु के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उनका जन्म हुआ था, लेकिन समाज के डर से महिला ने उन्हें काशी के लहरतारा में छोड़ दिया था, जिसके बाद उनकी परवरिश निसंतान नीरू और नीमा नाम के दपंत्ति ने की. वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर दास जन्म से ही मुस्लिम थे और गुरु रामानंद से उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

अनुयायियों के लिए बहुत महत्व रखता है कबीर दास के उपदेश

कबीर दास के उपदेशों के अनुयायियों के लिए बहुत महत्व रखता है। कबीर जयंती कबीर के अविनाशी ज्ञान और उनके सामर्थ्य को याद दिलाने का काम करता है. कबीर दास की रचनाओं का प्रमुख भाग सिख गुरु और गुरु अर्जन देव के द्वारा एकत्र किया गया था. उनकी रचनाओं को सिख धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित किया गया है.

1- साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय।

मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥

2- गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।

बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो बताय॥

3- पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

4- माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।

आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥

5- बुरा जो देखने मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।

6- बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

7- निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

8- बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥

9- दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥

10- छिन ही चढ़े छिन ही उतरे, सो तो प्रेम न होय ।

अघट प्रेम पिंजरे बसे, प्रेम कहावे सोय ॥

11- दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय ।

बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥


दोहों के जरिए धर्म के कट्टरपंथ पर प्रहार

संत कबीर दास ने अपने दोहों के जरिए लोगों के मन में व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया और धर्म के कट्टरपंथ पर प्रहार किया. उनके जीवन काल में समाज में कई तरह के अंधविश्वास फैले हुए थे, जिसमें से एक अंधविश्वास यह था कि काशी में जिसकी मृत्यु होती है उसे स्वर्ग प्राप्त होता है, जबकि मगहर में मृत्यु होने पर नरक यातना झेलनी पड़ती है. कबीर दास जी अपने जीवन के अंतिम समय में मगहर चले गए, जहां उनकी मृत्यु हुई. उनके अनुयायियों में हर धर्म के लोग शामिल थे, इसलिए उनकी मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों में विवाद होने लगा. कहा जाता है कि इस विवाद के बीच जब शव से चादर हटाई गई तो वहां सिर्फ फूल थे, जिन्हें दोनों धर्मों के लोगों ने आपस में बांट लिया और अपने धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार किया.