बिहार झारखंड में महाअष्टमी की धूम : अष्टमी को महागौरी स्वरुप की होती है पूजा, जानिए महाअष्टमी से जुड़ी खाश परम्परा
दुर्गा पूजा को लेकर देशभर में धूम है।मंदिर और पंडाल का पट खुलने के साथ ही श्रद्धालु मां दुर्गा का दर्शन और पूजा करने पहुंच रहें हैं।इस बीच महाअष्टमी को लेकर बिहार झारखंड के श्रद्धालुओं में उत्साह देखा जा रहा है।मंदिरों, पंडालों और गली मौहल्लों में नवरात्र को लेकर लोगों में जोश और उत्साह देखा जा सकता है।
नवरात्रि के दौरान अलग-अलग जगहों पर अलग अलग तरीके से पूजा की जाती है।इस बार नवरात्रा 8 दिनों का है। पंचमी और षष्ठी एक दिन होने से माता के दो स्वरुपों की पूजा एक ही दिन की गई।वहीं आज नवरात्रा का आठवां दिन है। नवरात्र के आठवें दिन माता के महागौरी स्वरुप की पूजा की जाती है।मंदिरों और पंडालों में माता के पट सप्तमी से खुल चुके हैं। अष्टमी, नवमी और दशमी को पंडालों और मंदिरों में श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ देखने को मिलती है। अष्टमी को सुहागन महिलाएं माता के मंदिर में जाकर अपने सुहाग के लिए माता के आंचल को भरती है। इसके साथ ही अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए माता को लाल चुनरी चढ़ाती हैं।
कैसे होती है महाअष्टमी की पूजा
महाअष्टमी या महादुर्गाअष्टमी को श्रद्धालु माता के दुर्गा, काली, भवानी, जगदम्बा, दवदुर्गा औक कई अनेक रुपों की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अष्टमी के दिन कन्या पूजन करवाने से महागौरी अपने भक्तों को विशे आशीर्वाद देती है। हालांकि कई लोग नवमी को पूजा के बाद कन्याओं का भोजन कराते हैं और अपना व्रत खोलते हैं। मां की शास्त्रीय पद्धति से पूजा करने वाले सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं और धन-वैभव संपन्न होते हैं। नवरात्रि में महाष्टमी का व्रत रखने का खास महत्व है। इस दिन सुहागन महिलाएं माता के मंदिर में जाकर अपने सुहाग के लिए माता के आंचल को भरती है। इसके साथ ही अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए माता को लाल चुनरी चढ़ाती हैं।
अष्टमी में संधि पूजा का मान्यता
महाअषटमी के दिन संधि पूजा का भी महत्व है। संधि पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन होती है। बता दें संधि पूजा में अष्टमी का आखिरी 24 मिनट और नवमी का शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध कर दिया था। संधि काल के समय 108 दीपक जलाने की भी परंपरा है।ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रुप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। जिसके कारण माता पार्वती का शरीर काला पड़ गया था। मां पार्वती के तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और उनपर गंगाजल छिड़कर उन्हें वापस गोरा रंग दिया। जिसके बाद से उन्हे गौरी नाम से भी जाना जाता है। और अष्टमी के दिन महागौरी की पूजा होती है
महाअष्टमी को लेकर एक और कथा काफी चर्चित है। कहा जाता है कि रावण से युद्ध लड़ने से पहले श्री राम ने समुद्र किनारे 9 दिनों तक दुर्गा मां की अराधना की थी। रावण से युद्ध में श्री राम को जीत मिली। इसलिए 10 वें दिन दशहरा मनाया जाता है। ऐसा मान्यता है कि नवरात्र के 9 दिन मां दुर्गा धरती पर आकर अपने भक्तों के बीच रहती हैं।
अष्टमी तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर रात 9 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 13 अक्टूबर रात्रि 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। अष्टमी तिथि मानने वाले लोग 13 अक्टूबर को बुधवार के दिन व्रत रखेंगे और कन्या पूजन करेंगे। इस दिन अमृत काल सुबह 3 बजकर 23 मिनट से सुबह 4 बजकर 56 मिनट तक रहेगा. वहीं ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 48 मिनट से शुरु होकर 5 बजकर 36 मिनट तक है।
रिपोर्ट-निधि साव्या की रिपोर्ट