हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती : नगर निगम की वित्तीय स्वायत्तता मामले पर तीन सप्ताह में हलफनामा नहीं देने पर आर्थिक दंड लगाने की दी चेतावनी
                                                    
                                                पटना हाईकोर्ट ने नगर निगमों की वित्तीय स्वायत्तता के मामलें पर राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।चीफ जस्टिस संजय करोल की डिवीजन बेंच ने आशीष कुमार सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि इस अवधि में हलफनामा दायर नहीं किया गया,तो नगर विकास व आवास विभाग के प्रधान सचिव को पाँच हज़ार रुपया दंड के रूप में भरना होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट को बताया कि निगमों के फंड पर राज्य का नियंत्रण हैं,जहां नगर विकास व आवास विभाग ये तय करता है कि इस निगम के धनराशि का उपयोग कैसे किया जाए।साथ ही इस धनराशि को किस मद में रखा जाए।
जबकि अन्य राज्यों में नगर निगम को आवंटित धनराशि का उपयोग करने का अधिकार नगर निगम को ही हैं।साथ किस मद में पैसा कैसे खर्च करना हैं,इसका निर्णय भी नगर निगम ही लेता है।नगर निगमों को जो भी फंड मुहैया कराया जाता हैं,जो कि एक विशेष कार्य के लिए होता है।उन्हें कोई अधिकार नहीं होता कि वे यह तय कर सके कि आवंटित धनराशि को कैसे खर्च किया जाए।
अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट को बांटी कि बिहार निगम क़ानून के सेक्सन 127 के अंतर्गत नगर निगम को विशेष सेवा देने के बदले टैक्स लगाने का अधिकार दिया गया है।लेकिन नगर विकास व आवास विभाग ने धीरे धीरे इन सारी वित्तीय शक्तियां ले लिया।उदाहरण के लिए नगर निगम को सन्चार टावर और उससे सम्बंधित निर्माण पर पहले टैक्स लगाने का अधिकार था,लेकिन अब ये अधिकार नगर विकास व आवास विभाग को मिल गया है।
साथ ही नगर निगम ने 1993 से ही संपत्ति व अन्य करों के पुनर्विचार करने के लिए लिख रहा है, लेकिन इस सम्बन्ध में कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई, जिससे नगर निगम के राजस्व की स्थिति सुधर सके।इन कारणों से नगर निगम की वित्तीय स्वायत्तता बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।नगर निगमों को छोटे छोटे काम के लिए सरकार का मुंह देखना पड़ता है।इस मामलें पर अब अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।