नीरा का नालंदा मॉडल, जिसकी सीएम ने तारीफ की : बिहार में अब होगी ‘नीरा’ की बहार, नीरा के ‘नालंदा मॉडल’ से सीख लेगा पूरा बिहार

शराबबंदी को लेकर समाज सुधार अभियान पर निकले सीएम नीतीश कुमार ने दारु पीने वालों को बिहार नहीं आने का सख्त संदेश दे रहे हैं है। सीएम अपने भाषण में शराब पीने वालों को बिहार से बाहर ही रहने की नसीहत दे रहे हैं। लेकिन नीरा पीने वालों का बिहार में स्वागत है। समस्तीपुर में सीएम नीतीश ने ताड़ी पीने वाले और ताड़ी बनाने वालों को नीरा उत्पादन और नीरा पीने की नसीहत दी। सीएम ने कहा कि उन्होने भी नीरा ग्रहण किया है और नीरा का स्वाद भी अच्छा होता है और स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर होता है। इस मौके पर सीएम नीतीश ने ताड़ी बनाने वालों को नीरा का उत्पादन करने की नसीहत दी और नीरा उत्पादन में 1 लाख तक की मदद करने का ऐलान किया। वहीं नीरा उत्पादन के नालंदा मॉडल का जिक्र करते हुए सीएम नीतीश ने मंच पर मौजूद नालंदा के डीएम रहे दरभंगा डीएम त्यागराजन का नाम लिया और जमकर तारीफ की। सीएम नीतीश ने बताया कि कैसे नालंदा में डीएम रहते एस एम त्यागराजन ने नीरा उत्पादन को बढ़ावा दिया। सीएम नीरा के नालंदा मॉडल को ही पूरे बिहार में लागू करने की बात कही।
क्या है नीरा का नालंदा मॉडल
दरअसल 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद नालंदा में नीरा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तब डीएम रहे एस एम त्यागराजन ने खूब कोशिश की थी। त्यागराजन ने ना सिर्फ नीरा उत्पादन पर ज़ोर दिया था। बल्कि सीएम नीतीश को भी नीरा भेजा था। जिससे सीएम नीतीश भी नीरा के स्वाद की तारीफ करना नहीं भूले। इस बात का जिक्र खुद सीएम नीतीश ने समस्तीपुर के मंच से की। नीरा उत्पादन के लिए सीएम नीतीश ने ना सिर्फ दरभंगा डीएम की तारीफ की बल्कि नालंदा मॉडल को पूरे बिहार में अपनाने की सलाह दी।
कैसे होता है नीरा का उत्पादन
अब आप जान लीजिए नीरा का उत्पादन कैसे होता है। ताड़ के पेड़ से नीरा निकाला जाता है। नीरा निकालने के लिए मिट्टी की बनी लबनी, खाने वाला मरा हुआ चूना, चूने का लेप लगाने के लिए जाली या ब्रश चाहिए। लबनी में चूने की लेप लगाई जाती है। एक लबनी में लेप के लिए 5 ग्राम चूना चाहिए। चूना लगाने से जीवाणु नहीं पैदा होता है। नीरा से ताड़ी नहीं बनने देता है। चूना का लेप लगी लबनी सूर्यास्त से पहले ताड़ के पेड़ में लगा दिया जाता है। सुबह सूर्य उगने से पहले इसे उतार लिया जाता है। सूर्य की रोशनी पड़ने पर नीरा ताड़ी में बदलने लगता है। लबनी में जो रस जमा होता है, वही नीरा होता है। नीरा को ठंडी जगह पर रखना चाहिए। नीरा से पेड़ा, गुड़, ताल-मिश्री, चीनी बनाए जा सकते हैं।
ज़ाहिर है बिहार में आने वाले दिनों में नीरा उत्पादन से ना सिर्फ लोगों को रोजगार मिलेगा, बल्कि ताड़ी की जगह पीने को एक स्वस्थ और देसी चीज भी मिलेगी।