BIHAR POLITICS : क्यों पोस्टर से गायब हुए राजद सुप्रीमो, सीएम फेस क्यों नहीं घोषित हो रहे तेजस्वी

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PATNA : ये पढ़कर एक बार किसी को भी लगेगा क्या बेकार की बात है, ऐसा कैसे हो सकता है, क्यों लालू प्रसाद यादव अपने ही लाल की राह का रोड़ा बनेंगे ? जबकि देखने से तो यही लगता है कि तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के लिए लालू यादव सियासी रूप से सक्रिय नहीं रहने की मजबूरी और स्वास्थ्य के साथ न देने के बाद भी तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के लिए पर्दे के पीछे सारी कवायद करते रहे हैं। तो फिर ये सवाल क्यों ही सामने आया कि तेजस्वी की रफ्तार पकड़ते सियासी करियर का स्पीड ब्रेकर बनते दिख रहे हैं लालू यादव। चलिए इस गुत्थी को थोड़ा सुलझाते हैं, सियासी गलियारे के दाएं बाएं चल रही कानाफूसी आप तक पहुंचाते हैं, फिर फैसला आप ही कीजिए की क्या वाकई लालू यादव ही तेजस्वी की राह का रोड़ा बन गए हैं।

सबसे पहले तो आपका ध्यान दिलाना चाहेंगे उस चीज पर जो सबके सामने है, पर नजरअंदाज किया गया। जिसे देखकर भी शायद किसी ने सवाल खड़े नहीं किए, या पार्टी के नेताओं को इसके बारे में स्पष्ट जानकारी रही। पब्लिक का क्या है, वो तो बस नेताजी के लिए जय कारा लगाने में मग्न हैं, अब वो नेता लालू यादव की जगह तेजस्वी हो तो क्या ही फर्क पड़ता है, आखिर दोनों बाप बेटे ही है, पार्टी में सर्वेसर्वा हैं, तो जो प्रभाव बाप का रहा वो बेटे का बना रहे इसकी कोशिश तो होनी ही है। कोशिश कितनी कामयाब हुई ये तो आप ही बेहतर बता सकेंगे, लेकिन पहले ये बताया जाए कि हाल फिलहाल में दर्जनों कार्यक्रमों में पार्टी दफ्तर के बाहर बड़े बड़े बैनर पोस्टरों में क्या आपको कही लालू यादव नजर आए हैं ? ध्यान देने पर शायद किसे छोटे से गोले में दिख जाएं मुसकुराते, पर इस बात से तो उनके विरोधी भी सहमत होंगे कि लालू यादव सीएम के तौर पर जितने प्रभावी रहे, जिस दौर में उनका सियासी दबदबा था, आज कुछ नहीं तो उनके नाम पर सब न्योछावर करने वाले उनके चाहने वाले, उनकी राजनीति के कद्रदान, उनके काम से लाभान्वित लोग पार्टी के आह्वान, पार्टी के किसी पदाधिकारी के बयान को भी लालू की जुबान मान साथ खड़ा दिखता है, तो फिर बैनर पोस्टर में तेजस्वी के साथ लालू यादव क्यों नहीं उस प्रभावशाली तरीके से नजर आते ?

आप इस बारे में सोच रहे हैं, तो चलिए आपको सोचने का एक और विषय देते हैं, जो आपके विचारों की रेल को बे-पटरी कर दे और पूछा गया सवाल आपको सही लगने लगे। इसके लिए महागठबंधन के हालिया गतिविधियों पर नजर डालने की जरूरत है, जिसपर बिहार की सियासत में विकल्प देने का दावा करने वाले जन सुराज के कर्ता धर्ता प्रशांत किशोर की विशेष नजर है। पीके ताल ठोक कर कहते फिरते हैं कि कांग्रेस तो राजद की झोला ढोने वाली पार्टी है, उसमें इतना दम नहीं कि वो तेजस्वी यादव को सीएम फेस बताने के फैसले पर असहमत हो। वाम दल और अन्य सहयोगी तो इस पर चुप जरूर हैं, लेकिन मौन सहमती साफ दिखती है। फिर इसकी घोषणा क्यों नहीं कि जा रही। जबकि पार्टी नेता इस ख्याल से उत्साहित हो जाते हैं कि तेजस्वी सीएम फेस हों, पार्टी कार्यकर्ताओं का जोश हाई हो जाता है और वो फुल चार्ज दिखने लगते हैं, इस सपने को साकार करने के लिए सब कुछ झोंक देने को तैयार नजर आते हैं। फिर ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा है। तो इसका एक कारण ये दिखता है कि तेजस्वी यादव का केन्द्रीय एजेंसियों के रडार पर होना, घोटालों में नाम होने के कारण कानूनी शिकंजे में जकड़े जाने की संभावना।

इसके साथ चुनाव प्रचार के दौरान सिर्फ लालू यादव का नाम लेकर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाता विपक्ष तेजस्वी पर भी इसी मुद्दे को लेकर विशेष रूप से हमलावर रहा है। विपक्ष की कोशिश रही है कि लालू यादव के सजायाफ्ता होने, उनके कार्यकाल को जंगलराज बताए जाने का पूरा फायदा उठाते हुए पूरी पार्टी को ही भ्रष्टाचारी, असभ्य, और अराजक के आवरण में ढंक देना। फिलहाल तो तेजस्वी ही चेहरा हैं, ये सब जान रहे पर औपचारिक घोषणा न होने तक जो दाग सिर्फ राजद के दामन लगे हैं, उससे पूरे महागठबंधन का दामन दागदार न हो तो ऐसे में इसे डैमेज कंट्रोल की कवायद के तौर पर देखा जा सकता है। तो बताइये हुए ना लालू यादव तेजस्वी के सियासी करियर के स्पीड ब्रेकर, जिनके किए की सजा सियासी विरोधी तेजस्वी को भी दिलाने पर आमादा हैं। कोर्ट में भले ही केस चल रहा, तबतक तेजस्वी आरोपी हैं दोषी नहीं पर विपक्ष लालू की छाया में उनके चेहरे पर भी भ्रष्टाचार की कालिख देख रहा, और सभी को यही दिखे इसकी भरपूर कोशिश कर रहा। तो ऐसे में आप भी कहेंगे की लालू यादव से दूरी तेजस्वी के लिए सियासी रूप से लाभदायक ही होगी। भले ही इस बात से राजद समर्थक सहमत न हो, पर सवाल तो खड़ा होगा ही।