JHARKHAND NEWS : बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, रांची में PCOS के बारे में दी गई महत्वपूर्ण जानकारी, जानिये विस्तार से

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रांची: आज हममें से कई लोगों ने अपने किसी परिचित से या सोशल मीडिया पर पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) के बारे में सुना हुआ है. लेकिन पीसीओएस के फीज़िकल इमपेक्ट की जानकारी अधिकाधिक तौर पर शहरी आबादी में ही पाई जाती है.

डॉ. विनीता कुमारी,फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट,बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ,रांची द्वारा बताया गया कि रीप्रोडक्टिव हेल्थ और फर्टिलिटी पर इसके प्रभावों के बारे में अभी भी काफी कम लोग जानते हैं.

रीप्रोडक्टिव एज की महिलाओं में सबसे ज़्यादा पाया जाने वाला हॉरमोनल डिसऑर्डर पीसीओएस है,जो हर 10 में से 1 महिला को होता है. बीएमसी हेल्थ द्वारा दिल्ली में कॉलेज जाने वाली लड़कियों पर की गई एक स्टडी में पाया गया है कि उनमें से 17.4% पीसीओएस से प्रभावित थीं. पीसीओएस त्वचा,वजन,मूड और मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है और अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए,तो यह महिला की गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित करता है.

पीसीओएस आपके गर्भवती होने की क्षमता को कैसे प्रभावित करता है

पीसीओएस का मुख्य कारण हॉरमोनल इम्बै़लन्स है. पीसीओएस से पीड़ित ज़्यादातर महिलाओं में इंसुलिन रजिस्टेंस (प्रतिरोध) होता है,जो ओव्यूलेशन को इंमपेक्ट करता है. बिना ओव्यूलेशन के शरीर में कोई एग नहीं बन पाता जो प्रेग्नेंसी के लिए अहम होता है. और अगर इन महिलाओं में ओव्यूलेशन होता भी है,तो एग की क्वालिटी खराब के चांसेस काफी ज़्यादा होती है. पीसीओएस एण्ड्रोजेन्स भी बढ़ाता है,और इससे मुंहासे,चेहरे पर बाल या सिर पर बालों का पतला होना जैसी शारीरिक लक्ष्ण भी सामने आते हैं.

जल्दी डायग्नोसिस और समय पर कदम उठाना क्यों महत्वपूर्ण है

PCOSको जितना जल्दी डायग्नोज़ किया जा सके,फर्टिलिटी क्षमता बनाए रखने और जटिलताओं से बचने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. अनियमित पीरियड्स,अचानक वजन बढ़ना या मुंहासे होने पर महिलाओं को अल्ट्रासाउंड के ज़रिए एएमएच (एंटी-मुलरियन हार्मोन),टेस्टोस्टेरोन के स्तर और एंट्रल फॉलिकल काउंट (एएफसी) जैसे फर्टिलिटी क्षमता की शुरुआती जांच करवानी चाहिए. फर्टिलिटी के अलावा,समय पर डायग्नोसिस और नियंत्रण से टाइप 2 डायबिटीज,एंडोमेट्रियल समस्याओं और हार्ट संबंधी बीमारी जैसे खतरों से बचा जा सकता है.

पीसीओएस प्रबंधन में निरंतरता शामिल है

पीसीओएस को पूरी तरह से'ठीक'नहीं किया जा सकता है,लेकिन इसे काफ़ी हद तक मैनेज किया जा सकता है. 5-10% तक वजन कम करने से भी ओव्यूलेशन और पीरियड्स रेगुलर हो सकते हैं. नियमित गतिविधि,कम चीनी और बैलेंस्ड खानपान,एवं बेहतर नींद हार्मोनल बैलेंस पर काफी हद तक पॉज़िटिव प्रभाव डाल सकती है.

प्रेग्नेंट होने की कोशिश कर रही महिलाओं के लिए,ओव्यूलेशन इंडक्शन,आईयूआई,या आईवीएफ जैसे विकल्प उपलब्ध हैं. जब पीसीओएस को अच्छी तरह से मैनेज किया जाता है तो अक्सर गर्भधारण सफल रहता है.

पीसीओएस आम है,लेकिन यह आपकी फर्टिलिटी के सफर को परिभाषित नहीं करता है. शुरुआती अवेयरनेस,पर्सनलाइज़ मेडिकल हेल्प और लाइफस्टाइल मैनेजमेंट के साथ,आप अपने रीप्रोडक्टिव फ्यूचर को सुरक्षित कर सकते हैं और आत्मविश्वास के साथ माता-पिता बनने की ओर बढ़ सकते हैं.