एंबुलेंस को देख लोग चौक पड़े : चालक ने पूछा – “शमशुल, पिता ऐनुल का घर कौन सा है? जानिए क्या है पूरा मामला
सहरसा:-सहरसा जिले के वार्ड नंबर24भेड़धारी मोहल्ले में उस समय अफरा-तफरी मच गई जब अचानक एक एंबुलेंस मोहल्ले में पहुंची। एंबुलेंस को देख लोग चौक पड़े, देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई। तरह-तरह की बातें होने लगीं। तभी एंबुलेंस चालक ने पूछा – “शमशुल, पिता ऐनुल का घर कौन सा है? उनकी हत्या हो गई है।” यह सुनते ही पूरे टोले में कोहराम मच गया। महिलाएँ चीखने-चिल्लाने लगीं, बच्चे रोने और इधर-उधर भागने लगे। घटना10नवंबर की बताई जा रही है। मृतक मोहम्मद शमशुल पिछले कई महीनों से हैदराबाद में मजदूरी कर रहे थे। कुछ महीने पहले ही वे अपने रिश्तेदारों के साथ रोजी -रोटी की तलाश में वहाँ गए थे। बताया जाता है कि काम के दौरान किसी मामूली बात को लेकर मध्यप्रदेश के एक अन्य मजदूर से उनका विवाह हो गया था। मामला शांत हो गया था, लेकिन अंदर ही अंदर साजिश रची जा रही थी।

इसी साजिश का परिणाम यह हुआ कि रात में भोजन कर सोने के बाद शमशेर की बेरहमी से हत्या कर दी गई। घटना की सूचना पर उनके परिजनों ने हैदराबाद पुलिस को खबर दी। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुएFIR दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार किया। आरोपी ने पूछताछ में हत्या की बात स्वीकार की। पोस्टमार्टम के बाद शव को हवाई मार्ग से सहरसा के भेड़धारी वार्ड नंबर24भेजा गया। अब शमशुल के घर का हाल बेहद दर्दनाक है — वे अपनी गर्भवती पत्नी और चार मासूम बच्चों (उम्र2से5वर्ष) को असहाय छोड़ गए हैं। पिता का साया उठ जाने से पूरा परिवार टूट चुका है। उनके पिता का निधन पहले ही हो चुका था, घर में अब कोई कमाने वाला नहीं बचा।

गांव के मुखिया मुकेश कुमार झा ने गहरी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा, “अगर बिहार में रोजगार होता, तो आज शमशुल जिंदा होते। हमारे लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं और लाश बनकर लौटते हैं। सरकारें पलायन रोकने में असफल रही हैं।”सच यह है कि शमशुल की मौत कोई अकेली घटना नहीं है। हर साल सैकड़ों प्रवासी मजदूरों की लाशें देश के अलग-अलग हिस्सों से बिहार लौटती हैं — ये लाशें हमारे सिस्टम और बेरोजगारी की एक दर्दनाक कहानी कहती हैं।

शमशुल की पत्नी आज समाज और सरकार से सवाल कर रही है — “कब तक हमारे बेटे-बेटे बाहर जाकर मरते रहेंगे? वो अपने छोटे बच्चों को सीने से लगाए रो रही है, जिन्हें अभी तक यह भी नहीं पता कि उनके अब्बू अब कभी नहीं लौटेंगे। स्थानीय लोगों ने आपसी सहयोग से शव के अंतिम संस्कार की तैयारी की। शमशुल तो चला गया, लेकिन अपने पीछे सरकार के लिए कई सवाल छोड़ गया — आखिर बिहार से पलायन कब रुकेगा?
सहरसा से शशि मिश्रा की रिपोर्ट