BIHAR NEWS : एक ने गंगा को हराया, दूसरी ने हालात को—बिहार के दो खिलाड़ी की कहानी, नए बिहार की जुबानी

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पटना: संघर्ष अगर हौसलों से टकराए,तो इतिहास बनता है. बिहार की मिट्टी से निकले खिलाड़ी आज इसी सच्चाई को साबित कर रहे हैं. कभी अभाव,कभी सामाजिक बंदिशें और कभी शारीरिक सीमाएं—इन सबको पीछे छोड़कर बिहार के खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी मेहनत की चमक बिखेर रहे हैं. मधुबनी के पैरा स्विमर शम्स आलम और शेखपुरा की उभरती खिलाड़ी रानी कुमारी की कहानियां उस बदलते बिहार की तस्वीर हैं,जहां खेल अब मजबूरी नहीं,बल्कि पहचान और भविष्य बन रहा है.

गंगा की लहरों में लिखा गया हौसले का इतिहास

मधुबनी जिले के राठोस गांव में 17 जुलाई 1986 को जन्मे शम्स आलम का जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा. पिता मोहम्मद नासिर और मां शकीला खातून ने बेटे के सपनों को कभी बोझ नहीं समझा. बचपन से तैराकी का शौक रखने वाले शम्स को बेहतर भविष्य की तलाश में परिवार ने मुंबई भेजा.

मुंबई में पढ़ाई के साथ उन्होंने मार्शल आर्ट में भी खुद को साबित किया और पदक जीतते हुए एशियाई खेलों के प्रबल दावेदार बन गए. लेकिन किस्मत ने एक कठिन परीक्षा ली—रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर. सर्जरी के बाद वे पैराप्लेजिया से पीड़ित हो गए.

जहां कई लोग टूट जाते हैं,वहीं शम्स ने खुद को फिर से खड़ा किया. डॉक्टरों,परिवार और अपनों की प्रेरणा से उन्होंने दोबारा तैराकी को अपना सहारा बनाया. पानी उनके लिए सिर्फ खेल नहीं,बल्कि जिंदगी से लड़ने का माध्यम बन गया.

2017 में खुले समुद्र में 8 किलोमीटर तैरकर उन्होंने विश्व रिकॉर्ड बनाया. इसके बाद 2019 में पोलैंड की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने भारत का नाम रोशन किया. पटना में 14वें नेशनल तक्षशिला ओपन वाटर स्विमिंग के दौरान शिव घाट दीघा से लॉ कॉलेज घाट तक 13 किलोमीटर तैरकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना उनके संघर्ष की सबसे बड़ी मिसाल है.

शम्स को बिहार खेल रत्न पुरस्कार,कर्ण इंटरनेशनल अवॉर्ड और बिहार टास्क फोर्स में नियुक्ति जैसे सम्मान मिले. हैदराबाद में आयोजित 25वीं पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में दो स्वर्ण और दो रजत पदक जीतकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि सीमाएं शरीर की होती है,सपनों की नहीं.

नए साल यानि 2026 में शम्स ऑस्ट्रेलिया वर्ल्ड सीरीज में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं. उनका संदेश साफ है— “बिहार सरकार खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए योजनाएं और सुविधाएं दे रही है. अब समय है कि युवा खेल को करियर के रूप में अपनाएं.”

गरीबी से पदक तक: शेखपुरा की रानी की उड़ान

दूसरी ओर,शेखपुरा जिले के अरियरी प्रखंड के हुसैनाबाद गांव की रानी कुमारी की कहानी ग्रामीण बिहार की उस बेटी की कहानी है,जिसने सीमित साधनों में भी बड़े सपने देखे. पिता राजेंद्र चौधरी दिहाड़ी मजदूर हैं और परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चलता है.

खेल में रुचि रखने वाली रानी को शुरुआत में ताने भी सुनने पड़े,लेकिन जब जिला स्तर पर उनके प्रदर्शन ने पहचान दिलाई तो परिवार का नजरिया बदला.

महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित 12वीं सीनियर नेशनल ड्रैगन बोट प्रतियोगिता में रानी ने चार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया. बिहार टीम ने कुल 11 पदकों में 7 स्वर्ण,2 रजत और 2 कांस्य पदक जीते,जिनमें रानी की भूमिका अहम रही.

प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी,दूसरे राज्य में अभ्यास का खर्च और कर्ज लेकर प्रतियोगिता में हिस्सा लेना—इन सबके बावजूद रानी का आत्मविश्वास कभी कमजोर नहीं पड़ा. रानी की मां मीरा देवी बताती हैं कि गांव के तानों के बावजूद उन्होंने बेटी को खेलने से कभी नहीं रोका. पिता कहते हैं कि उन्हें अपनी रानी बिटिया पर गर्व है.

रानी आज उन बेटियों की प्रेरणा हैं,जो खेल को सिर्फ लड़कों का क्षेत्र मानकर खुद को पीछे रख लेती हैं.

बदली सोच,नया बिहार

शम्स आलम और रानी कुमारी की कहानियां बताती हैं कि बिहार में खेल को लेकर सोच बदल रही है. अब खिलाड़ी सिर्फ मेहनत ही नहीं कर रहे,बल्कि सपनों को दिशा भी मिल रही है. सरकारी योजनाएं,स्कॉलरशिप, ‘मेडल लाओ–नौकरी पाओ’जैसी पहल और बेहतर सुविधाएं बिहार के खिलाड़ियों को आत्मविश्वास दे रही हैं.

आज बिहार का खिलाड़ी यह जान चुका है कि संघर्ष चाहे जितना बड़ा हो, अगर जज़्बा मजबूत हो तो जीत तय है. गंगा की लहरों में तैरते शम्स हों या नाव पर पदक जीतती रानी— दोनों मिलकर यह संदेश दे रहे हैं कि बिहार अब सिर्फ संभावनाओं का नहीं, बल्कि उपलब्धियों का राज्य बन रहा है.