रजरप्पा मंदिर से जुड़ी है कई पौराणिक कथाएं, जानिए क्यों मां को आ गया था भगवान शंकर पर गुस्सा

Edited By:  |
283

रामगढ़ः(Dharmendra Patel) देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल मां छिन्नमस्तिका रजरप्पा मंदिर के संबंध में कई पौराणिक कथाएं और किमदंतिया है। इनमें से एक की मानें तो 1000 साल पहले मां छिन्नमस्तिके का निवास स्थान कहीं और था। मां की पूजा अर्चना कहीं और होती थी, 1000 साल पहले ऐसा क्या हुआ की मां उस स्थान को छोड़ रजरप्पा आ पहुंची। मां से जुड़ी कुछ अनसुलझे रहस्य पर एक रिपोर्ट। आगे पढ़ेंगे क्यों मां को भगवान शंकर पर आ गया था गुस्सा।

आजतक कोई यहां से निराश नहीं लौटा

शक्तिपीठ स्थल मां छिन्नमस्तिका रजरप्पा मंदिर का इतिहास अतीत की गहराइयों में डूबा हुआ है । धार्मिक आस्था और किंवदंतियों के आधार पर मां छिन्नमस्तिका से जुड़े कई अनसुलझे रहस्य हैं जिस पर से पर्दा उठ पाना नामुमकिन है लेकिन इन अनसुलझे रहस्य के बीच एक अटल सत्य यह भी है कि कलयुग क्लेश हारिणी, मनोकामना देवी के दरबार से कोई भी भक्त निराश नहीं लौटा है इसका प्रतीक मां के मस्तिक का छिन्न होना है अपनी सहचरिओ की भूख मिटाने के लिए मां ने खड़क से अपने सिर को अलग कर दिया और तीन रक्त धाराओं में से दो धाराएं अपनी सहचरिओ जय और विजय के मुख में प्रवाहित कर दिया ताकि वे तृप्त हो सके ।

पहले मंदिर से दूर होती थी पूजा

पुरखों से मां की सेवा कर रहे न्याय समिति के सदस्य लोकेश पंडा की मानें तो करीब 1000 साल पहले इस स्थल पर मां छिन्नमस्तिका की पूजा नहीं होती थी। यहां से लगभग एक किलोमीटर दूर भंडार दाह में दामोदर नदी के किनारे मां की पूजा होती थी। वहां कोई मंदिर नहीं था , दामोदर नदी के कल कल, निर्मल जल धाराओं के बीचो-बीच मां छिन्नमस्तिका निवास करती थी तब उस समय लोग दामोदर नदी में प्रवेश कर मां की आराधना करते थे और इसी नदी तट के ऊपरी हिस्से पर बलि दी जाती थी लोगों की माने तो मां अपने सच्चे भक्तों को नदी के बीचो-बीच जल धाराओं में ही दर्शन देती थी

इसी से जुड़ी एक कथा राजरप्पा धाम का महात्य्य पुस्तक में वर्णित है शंख चूरी बेचने वाला एक ब्राह्मण जब भंडार दा पहुंचा तो जल धाराओं के मध्य उसे एक दिव्य ज्योति दिखाई दी , यह दिव्य ज्योति धीरे-धीरे दिब्य कन्या में बदल गई चूड़ी बेचने वाले ने जब अपना बक्सा खोल दो सुंदर शंख चूरियां मां को दी , तब मां ने कहा इसके पैसे मेरे पिताजी जगेश्वर पंडा से ले लेना , उनके घर के पश्चिम कोने में अरवा चावल की टोकरी में सवा रुपया है मांग लेना , जगेश्वर पंडा को चूड़ी वाले की बात पर यकीन नहीं हुआ और वह उसे लेकर भंडार दाह पहुंच गए , जहां चूड़ी बेचने वाले ने मां की आराधना करते हुए कहा मां या तो आप स्वयं दर्शन दे मुझे झूठ के आरोप से मुक्त करा दो , अन्यथा मैं इसी जल में समाधि ले लूंगा और तब मां ने अपने भक्तों की लाज बचाने के लिए भंडार दाह के समीप दामोदर नदी के जल में दर्शन दी।

पुराना जगद मां ने गुस्से में छोड़ दिया

बताया जाता है कि भंडार दाह के बली स्थान पर दोपहर 12 से 1 के बीच में भक्त और सेवक कुछ देर के लिए वहां से हट जाया करते थे , ताकि मां भोजन कर सके , लेकिन एक बार की बात है बली के बाद बली स्थान पर सेवक का टंगारी छूट जाने के कारण भूलवस 12 से 1 के बीच में बलिया स्थान जा पहुंचा, उस समय मां अपनी सहचरियों के साथ भोजन कर रही थी , सेवक को बलिया स्थान पर देख आग बबूला हो गई। लेकिन उन्होंने सेवक को इस गलती की कोई भी सजा नहीं दी और कहा आज से अभी से अब यह मेरा निवास स्थान नहीं होगा यहां से एक किलोमीटर दूर दामोदर भैरवी के संगम स्थल पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा अर्ध निर्मित मंदिर मेरा निवास स्थान होगा , वही मेरी पूजा अर्चना होगी और अब मैं अपने भक्तों को वहीं पर दर्शन दूंगी । इस तरह 1000 साल पहले मां भंडार दाह छोड़ वर्तमान रजरप्पा मां छिन्नमस्तिका स्थल आ पहुंची और तब से अब तक निर्बाध मां की पूजा यही होती रही है भंडारदाह में इस कहानी से जुड़े तथ्यों को जब हमने टटोला तो अब वहा सिर्फ रेत और पत्थर के टीले दिखे , ग्रामीणों की माने तो बाढ़ में नदी जल धारा में सब खत्म हो गया , अब कुछ अवशेष नहीं बचे हैं अवशेष के रूप में अपने पूर्वजों से सुनी कहानियां ही मन मस्तिक में बची है । दामोदर नदी के किनारे बाबा भोले शिव शंकर की बाढ़ के जल धाराओं में हल्की टूटी प्रतिमा और ढलते सूर्य की रोशनी मानो कह रही है अब यहा लोगों के जेहन में बची कहानी ही रह गई है ।

भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था इस मंदिर को, लेकिन रह गया था अधूरा

इस कहानी के आगे जब बढे तो पाया कि मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया है । मां के ध्यान मंत्र में योनि मंडल मण्डिताम है जिसका अर्थ है त्रिभुजाकार योनि इस स्थल को देखें तो दामोदर भैरवी के संगम से योनि आकार त्रिभुजाकार बने क्षेत्र पर ही मंदिर है मंदिर की दीवारों पर अष्ट कमल है तथा नीचे 64 योगिनी। यंत्र में जिस प्रकार बाहर चार दरवाजे होते हैं मंदिर में भी बाहर 4 दरवाजे हैं मंदिर बड़े बड़े चट्टानों से गुंबद आकार बना है दीवारों की मोटाई लगभग 5 फीट और इसमें कोई भी खिड़की नहीं है जिसके कारण मंदिर के अंदर उच्चरित हो रहे मंत्र दीवारों से परिवर्तित होकर उपस्थित भक्तों को एकाग्र चित्त कर देता है मंदिर निर्माण के संबंध में अवधारण है कि एक रात में भगवान विश्वकर्मा द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया जाना था लेकिन सवेरे होने तक मंदिर का निर्माण आधा ही हो पाया कई हज़ार साल बाद राजा को स्वपन्न में मां से इसे पुरा करने का आदेश दिया जिसके बाद मंदिर निर्माण कार्य पूरा हुआ । पुरातात्विक विश्लेषण की माने तो मंदिर महाभारत युग और ईसवी सन के मध्य बना हुआ है ।

जब मां हो गई भोले नाथ पर क्रोधित

10 महाबिद्या और शक्तिपीठ स्थल के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके रजरप्पा मंदिर को तांत्रिकों के लिए भी मुख्य केंद्र माना गया है । महाविद्या के अनुसार माता पार्वती जब अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में बिना आमंत्रण के भाग लेने के लिए भोलेनाथ से हर्ट करने लगे तो भोलेनाथ के मना करने पर माता के नेत्र क्रोध से रक्त वर्ण हो गए होठ फड़कने लगे , रंग श्याम हो गया क्रोध अग्नि से शरीर महाविकराल दिखाई देने लगा उनके बिखरे केस , गले में मुंडन , बाहर निकले हुए लाल जीभा को देख भोले शिवशंकर भी विचलित हो गए और भागने लगे । इसी दौरान शिव को माता ने अपने 10 रूप धारण कर दसों दिशाओं से घेर लिया उनमें से एक रूप में मां छिन्नमस्ता का था जिस कारण इस स्थल की और अहमियत बढ़ जाती है इतना ही नहीं इससे जुड़ी आई कई और पौराणिक कथाएं भी है छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा यहां महाकाली , सूर्य , दस महाविद्या मंदिर, हनुमान और शंकर भगवान के मंदिर भी हैं। दक्षिण दिशा से बहती भैरवी नदी के ऊपर पश्चिम दिशा से आते दामोदर नद का संगम भी आस्था की अनूठी कहानी गढ़ता है। इस अलौकिक स्थान के कण-कण में चमत्कार के कई किस्से मौजूद हैं।