बेरमो में मकर संक्रांति : मुर्गा उड़ाने की प्रथा और पारंपरिक मेले का अद्भुत उत्सव
BERMO : भारत भर में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर जगह-जगह मेले आयोजित किए जाते हैं, जिनकी खासियतें और ऐतिहासिक महत्व भी अद्वितीय होते हैं। बेरमो क्षेत्र के फुसरो नगर परिषद अंतर्गत घुटियांटांड़ बस्ती में भी मकर संक्रांति का त्योहार सदियों से एक विशिष्ट और अनूठे तरीके से मनाया जाता है। यहां की परंपराओं और रिवाजों की पहचान आज भी वैसी ही बनी हुई है, जैसी वर्षों पहले थी। बदलते समय के बावजूद इस क्षेत्र में मकर संक्रांति की परंपरा को बड़े श्रद्धा और संजीदगी से निभाया जा रहा है।
मुर्गा उड़ाने की प्रथा: एक सदियों पुरानी परंपरा
इस मेले की सबसे बड़ी विशेषता और आकर्षण का केंद्र मुर्गा उड़ाने की प्रथा है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है और इसे विशेष रूप से उन भक्तों द्वारा निभाया जाता है जिनकी मन्नतें देवी माता द्वारा स्वीकार की जाती हैं। जब किसी भक्त की मुराद पूरी हो जाती है, तो वह मुर्गा उड़ाने की प्रक्रिया का हिस्सा बनता है। यह परंपरा मन्नत पूरी होने का प्रतीक मानी जाती है, और इसके साथ ही बकरे और मुर्गे की बलि भी दी जाती है।
पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान
मेले की शुरुआत विधिवत पूजा-पाठ से होती है। इस दौरान ग्रामीणों द्वारा ग्राम देवता की पूजा की जाती है और उनसे सुख-समृद्धि एवं शांति की कामना की जाती है। पूजा के बाद, खेत में मुर्गा उड़ाया जाता है, जिसे लूटने की होड़ देखने लायक होती है। मुर्गे को पकड़ने के लिए लोगों में उत्साह और प्रतिस्पर्धा का माहौल रहता है, और दूर-दूर से लोग इस दृश्य का आनंद लेने के लिए आते हैं। इस मेले की लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी है कि लोग नये साल की छुट्टियों के दौरान पहले ही यहां पहुंच जाते हैं।
देवताओं की पूजा और बलि का महत्व
रिवाज के अनुसार, पके हुए धान को काटने की खुशी में ग्राम देवता की पूजा की जाती है। इस पूजा में कपसा बाबा, लुगु बाबा, मां दुर्गा, मां काली और खिदुर मुड़िया देवता की विशेष पूजा होती है। इसके साथ ही भक्त मन्नतें मांगते हैं, और जिनकी मन्नतें पूरी होती हैं, वे बकरे और मुर्गे की बलि देते हैं। इस दौरान सैकड़ों बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती है, और पूजा के बाद मुर्गों को उड़ाने की प्रक्रिया शुरू होती है।
मुर्गा उड़ाने की रोमांचक कशमकश
मुर्गा उड़ाने के बाद, यह परंपरा एक रोमांचक दृश्य पेश करती है। गांव के लोग और आसपास के क्षेत्र के लोग इस उत्सव का हिस्सा बनते हैं, और मुर्गे को पकड़ने के लिए एक कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। इस दौरान कई बार लोग घायल भी हो जाते हैं, लेकिन इसे धार्मिक दृष्टि से खून देवी को चढ़ाया गया माना जाता है। इस मेले की धूमधाम और उत्साह का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां हर साल सैकड़ों लोग हिस्सा लेने के लिए जुटते हैं।
समाज के योगदान से सफल हुआ मेला
इस साल के मेले के आयोजन में भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष बिनोद महतो, आजसू के केंद्रीय सचिव संतोष कुमार महतो, निवर्तमान वार्ड पार्षद रामचंद्र महतो, सीसीएल ढोरी के क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभारी उमाशंकर महतो सहित कई प्रमुख व्यक्तियों और ग्रामीणों का योगदान रहा। उनके समर्थन और सहयोग से यह मेला बड़े धूमधाम से मनाया गया और सभी पारंपरिक रिवाजों का पालन किया गया। मकर संक्रांति का यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है। यहां की अनूठी रिवायतें और उत्सवों का इतिहास इसे विशेष बनाते हैं और लोगों के बीच एकता और भाईचारे की भावना को प्रगाढ़ करते हैं।