मुगलकाल से शुरु हुई दुर्गा पूजा : देवघर के रोहिणी स्टेट द्वारा आज तक निभाई जा रही, प्रतिदिन मां को समर्पित होता बलि
देवघर : बाबानगरी देवघर एक विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. लगभग 4 दशक पहले से इसका तेज़ी से विकास हुआ है. तब यहाँ का मुख्य बाजार मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर रोहिणी हुआ करता था. जमींदारी प्रथा में रोहिणी स्टेट हुआ करता था. इसी स्टेट के द्वारा यहाँ पर दुर्गा मंदिर स्थापित किया गया था. लगभग 300 साल पहले जब मुगलकाल था तब से यहाँ दुर्गा पूजा का आयोजन हो रहा है जो अब तक इस स्टेट के वारिस निभा रहे हैं. यहाँ तांत्रिक विधान से माता की पूजा होती है.
मूर्ति की है खास महत्व,मुग़ल सैनिक भी हुए नतमस्तक
बात मुगलकाल के समय की है जब मुगल सैनिक दुर्गा पूजा के मौके पर मंदिर पहुंचे थे. तब मंदिर का भवन कच्चा हुआ करता था. मंदिर में मिट्टी से बनी प्रतिमा की पूजा वर्द्धमान के रहने वाले चक्रधर चक्रवर्ती द्वारा की जा रही थी. तभी मुगल सैनिकों ने पुजारी का ध्यान भटकाते हुए बोला कि क्यों मिट्टी की पूजा करते हो करना है तो मुगल सम्राट की करो. पुजारी ने बोला कि माँ की शक्ति का मजाक उड़ाते हो,इतना बोलने के बाद पुजारी ने सैनिकों को 10 मिनट बाहर रुकने को कहा और पट बंद कर तंत्र विद्या का प्रयोग किया. माता का ऐसा चमत्कार हुआ कि मुगल सैनिक नतमस्तक होकर माता की आराधना करने लगे. दरअसल माँ के चमत्कार से उनके दायीं ओर रहने वाले गणेश जी बायीं ओर आ गए और बायीं ओर रहने वाले कार्तिकेय जी दायीं ओर आ गए. तब से आज तक यहाँ तंत्र विद्या से और गणेश जी की मूर्ति बायीं ओर माँ के साथ स्थापित कर पूजा की जाती है.
स्टेट द्वारा मंदिर की देखभाल और बलि दी जाती है
रोहिणी स्टेट द्वारा पूजा की सारी व्यवस्था की जाती है. तांत्रिक विद्या से यहां पूजा होने के कारण यहां प्रतिदिन बकरे की बलि पड़ती है. अगर किसी दिन मन्नत पूरी होने के बाद भी कहीं से बलि नहीं चढ़ती है तो स्टेट के वंशज द्वारा बकरे की बलि दी जाती है.
रोहिणी स्टेट के वंशज प्रोफेसर सीके देव बताते हैं कि यह परंपरा 300 साल पहले से चलती आ रही है. वहीं इस मंदिर के मुख्य पुजारी जागेश्वर पांडेय बताते हैं कि इस मंदिर में कोई भी मन्नत मांगने पर बहुत जल्द पूरी हो जाती है. यही कारण है कि यहाँ मन्नत मांगने वालों का तांता लगा रहता है. पुजारी की मानें तो मन्नत पूरी होने पर उनके द्वारा बकरे की बलि दी जाती है. बलि में पहले नरबलि की जाती थी लेकिन समय के अनुसार यह प्रथा बदली और आज बकरे की दी जाती है.
यहाँ माँ के बायीं ओर गणेश और दायीं ओर कार्तिकेय का मूर्ति स्थापित होना शायद ही अन्य जगहों पर मिलेगा. तभी तो यहाँ का अखंड ज्योति भी अन्य की तरह अलग रहता है.