बिहार विधानसभा उपचुनाव में परिवारवाद का बोलबाला : NDA और महागठबंधन को आयी बेटे-बहू की याद, मुंह ताकते रह गये झंडा ढोने वाले कार्यकर्ता
PATNA :जब-जब चुनाव होते हैं तो नेताओं को कार्यकर्ताओं की याद आती है। चुनावी सभा में कार्यकर्ताओं से भीड़ जुटाने की उम्मीद की जाती है। चुनाव प्रचार करने से लेकर पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान कराने का जिम्मा कार्यकर्ताओं का होता है लेकिन जब बारी टिकट बांटने की आती है, तब सिर्फ परिवार याद आता है।
जी हां, चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव में चार ऐसे उम्मीदवार हैं, जो बड़े नेता के परिवार से हैं। पहले I.N.D.I.A ब्लॉक की बात करें तो रामगढ़ से RJD उम्मीदवार अजीत सिंह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे हैं। साथ ही यहां के पूर्व विधायक और बक्सर से सांसद चुने गये सुधाकर सिंह के भाई हैं। इसके अलावा बेलागंज सीट, जो सुरेंद्र यादव के सांसद बनने के बाद खाली हुई, वहां उनके बेटे विश्वनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है यानी सीट ना सिर्फ पार्टी बल्कि परिवार के खाते में रखने की कोशिश है। हालांकि, RJD के नेता इसे परिवारवाद मानने से इनकार करते हैं।
अब बात NDA की कर लेते हैं तो परिवारवाद पर हमला करने वाली बीजेपी भी इससे नहीं बच सकी। तरारी सीट से बीजेपी ने विशाल प्रशांत को उम्मीदवार बनाया है, जो पूर्व विधायक सुनील पाण्डेय के बेटे हैं। वहीं, इमामगंज सीट से दीपा मांझी हिंदुस्तानी आवाम मोर्ची की उम्मीदवार हैं, जो केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू हैं और नीतीश सरकार में मंत्री संतोष कुमार सुमन की पत्नी भी हैं। NDA नेता परिवारवाद के मुद्दे पर ठोस जवाब नहीं दे पा रहे और RJD पर निशाना साधकर पल्ला झाड़ ले रहे हैं। बिहार विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के हिस्से कोई सीट नहीं आई है और पार्टी के नेता इसपर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
सवाल ये कि क्या परिवारवाद का मुद्दा सिर्फ दूसरे दलों को कठघरे में खडा करने का जरिया मात्र है। साफ है कि पार्टियां खुद को अलग दिखाने का दावा भले ही कर लें, जब भी मौका आता है तो नेता झंडा ढोने वाले कार्यकर्ताओं की जगह परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ाने में जुट जाते हैं।