मैं सरकार हूं...फिर भी लाचार हूं ! : कल तक जो बिहार में अफसरशाही को नकारते थे, आज गाड़ी रोकने पर अफसरों पर ही तमतमा गए

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बिहार विधानसभा में एंट्री के दौरान रोके जाने पर श्रम संसाधन मंत्री जीवेश मिश्रा गजब तमतमा गए। तमतमा कर गाड़ी से उतरे और खुद को सरकार बताकर ट्रैफिक पुलिसकर्मी को चीख-चीख कर डांटने लगे। दरअसल विधानसभा में मंत्री जी आ रहे थे, तो ट्रैफिक पुलिसकर्मी ने रोक दिया। अब इतनी हिम्मत मंत्री जी की गाड़ी को रोक दिया। तमतमाते हुए मंत्री जी गाड़ी से उतरे और झाड़ लगा दी। वैसे यही जीवेश मिश्रा थे, जो 4 महीने पहले तक बिहार में अफसरशाही को नकारते थे। तब समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने अफसरों को बेलगाम बताकर मंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। जिसके बाद सियासी गलियारे में खलबली मच गई थी। यही जीवेश मिश्रा थे, जिन्होने तब मदन सहनी को अफसरों से तालमेल बिठाने की नसीहत दी थी और अफसरशाही को सिरे से नकार दिया था। यानी कल मदन सहनी सरकार होते हुए भी लाचार थे। आज खुद को सरकार बताते हुए भी अफसरों के सामने लाचार नज़र आ रहे थे जीवेश मिश्रा। आज चंद सेकेंड के लिए गाड़ी रोके जाने पर सदन में बवाल करते हुए सवाल पूछने लगे कि डीएम-एसपी बड़ा कि सरकार?

अफसरशाही को लेकर मंत्री जी तमतमाए तो मानो विपक्ष को भी मौका मिल गया। सो सरकार में मंत्री का साथ विपक्ष दे रहा था और सरकार बैकफुट पर आ गई। फिर सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी को जांच की बात कहनी पड़ी। वहीं विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा की अगुआई में कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में मामले पर चर्चा की गई। गृह सचिव और डीजीपी तलब किए गए। बाहर निकले तो गृह सचिव और डीजीपी ने साफ कहा भला मंत्री जी का अपमान हम क्यों करेंगे। वो तो जाने अनजाने में कुछ हुआ होगा। जांच की जाएगी।

बहरहाल सवाल है कि क्या वाकई बिहार में अफसरशाही हावी है। आखिर बार-बार सरकार के मंत्री से लेकर सत्ता पक्ष के विधायक ही अफसरों की मनमानी का सवाल क्यों उठाते हैं? क्योंकि पहली बार नहीं जब मंत्रियों ने अफसरशाही को लेकर सवाल उठाए हैं।

पहले भी मंत्री उठा चुके हैं अफसरशाही का मामला

शीतकालीन सत्र के दौरान ही बीजेपी विधायक संजय सरावगी ने बयान दिया कि बिहार में अफसरशाही हावी है। अफसर नहीं सुनते हैं। वहीं जीवेश मिश्रा से पहलेमंत्रियों ने अफसरशाही के आरोप लगा चुके हैं। इसी जुलाई में मंत्री मदन सहनी ने तो इस्तीफे की पेशकश की थी। मदन सहनी ने अफसरों को बेलगाम बताया था। वहीं इसी सितंबर में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार भी परेशान हुए थे, जब बेगूसराय डीआईजी को बार-बार फोन करने पर भी रिप्लाई नहीं मिली थी। दरअसल एक फरियादी की शिकायत पर मंत्री जी ने डीआईजी को फोन किया था। वहीं जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा था-अफसर नहीं सुनते हैं। सवाल है कि बार-बार सख्त निर्देशों के बाद भी जनप्रतिनिधियों का सम्मान नहीं होता है? क्योंकि सामान्य प्रशासन विभाग ने हाल ही में फिर चिट्ठी जारी कर सभी अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों को सम्मान देने का सख्त निर्देश दिया था। तो फिर भी सवाल है कि सरकार के मंत्री ही अधिकारियों पर बार-बार सवाल क्यों उठाते हैं?क्या वाकई बिहार में अफसर बेलगाम हो गए हैं?अगर मंत्री ही अफसरों के सामने लाचार हैं, तो फिर सोचिए आम जनता की क्या हालत होती होगी?


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