शारदीय नवरात्र का आज सप्तमी तिथि : देवघर में प्राचीनकाल से चल रही परंपरा आज भी कायम, जानिए खास बातें
देवघर : पुराने जमाने में ऋषि-मुनियों द्वारा की जाने वाली पूजा की याद देवघर में आज भी ताजा है. ऋषि मुनियों द्वारा जिस परंपरा से पूजा-अर्चना की जाती थी. आज उसी तरह देवघर के देवसंघ में स्थित मां नवदुर्गा की प्रतिमा की पूजा देखने को मिली है.
आज शारदीय नवरात्र का सप्तमी तिथि है और आज के दिन मां दुर्गा के दर्शन के लिए पट खोल दिये जाते हैं. देवसंघ में आज महास्नान की परंपरा प्राचीन काल से चलती आ रही है. इस स्नान के तहत मां को कई स्थानों से लाये गये जल से स्नान कराने की परंपरा आज भी बरकरार है.
बड़ी संख्या में भक्त हुए शामिल
देवघर के देवसंघ में आज मां नवदुर्गा को महा स्नान कराया गया. खास बात यह रही कि आज मां को उसी विधि विधान से स्नान कराया गया जैसे ऋषि-मुनियों द्वारा कराया जाता था. देवसंघ के शिष्यों द्वारा देश-विदेश से लाये गये जल से मां का स्नान कराया जाता है. यह परंपरा यहां वर्षो पुराना है जो आज तक चली आ रही है. इतना ही नहीं यहां मां की विशेष पूजा की जाती है जो कई स्थानों से लाई गयी मिट्टी से होती है. बंगाली संस्कृति के अनुसार यहां मां का विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. फिर महा स्नान कराया जाता है फिर मां की प्रतिमा को विभिन्न भक्तों द्वारा समुद्र और नदी इत्यादि जगहों से लाये जल से स्नान कराया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस तरह से पूजा करने से मां सभी भक्तों को अपनी कृपा का पात्र मनाते हैं.
मिट्टी की प्रतिमा है खास,पानी से भी नहीं होता है प्रतिमा की क्षति
देवसंघ में रखी मां की प्रतिमा की खास बात यह है कि यहां मां की प्रतिमा को मिट्टी से प्रत्येक साल बनाया जाता है और मां की ही यह शक्ति है कि यहां मां की मिट्टी की प्रतिमा पर जिस प्रकार जल से स्नान कराया जाता है उससे प्रतिमा को किसी प्रकार का क्षति नहीं होता है. यहां के भक्त इसे मां का शक्ति मानते हुए वैदिक मंत्रोच्चारण से पूजा करते हैं और मनवांछित फल को प्राप्त करते हैं.
प्रत्येक वर्ष महासप्तमी के अवसर पर मां के महास्नान में सरीक होने का भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है. यही कारण है कि देश के कई राज्यों से इस दृश्य को देखने श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. भक्तों की मानें तो महास्नान का रस्म सिर्फ यहीं होती है और इसमें सरीक होकर सभी अभिलाषाएं पूरी हो जाती है.
बंगाली समाज द्वारा जिस प्रकार यह पूजा का आयोजन किया जाता है उसे देखकर कोलकाता की दुर्गा पूजा को छोड़ कर बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस अनूठे आयोजन में सरीक होने यहां पहुंचते हैं.