कल्याण विभाग में बड़ा खेल : स्कूल चलाने के लिये NGO चयन में भारी गड़बड़ी, सरकार ने नहीं किया MOU

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Huge irregularities in NGO selection for running schools Huge irregularities in NGO selection for running schools

रांची. झारखंड सरकार के कल्याण विभाग के 41 आवासीय विद्यालयों के संचालन में एक बड़ी अनियमितता सामने आयी है. पिछले चार महीने से इन स्कूलों का संचालन भगवान भरोसे ही हो रहा है, क्योंकि सरकार ने चयनित एनजीओ के साथ किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया है. जनजातीय कल्याण आयुक्त कार्यालय की तरफ से इसके लिए आवश्यक कार्रवाई की जानी है. इस संबंध में जनजातीय कल्याण आयुक्त से संपर्क करने की कोशिश भी की गयी, पर उनकी तरफ से किसी तरह का रिप्लाई नहीं दिया गया. बताया जाता है कि एनजीओ के सेलेक्शन में घोर वित्तीय अनियमितताएं हुई है. जिसकी धमक पीएमओ से लेकर सीएमओ तक पहुंच चुकी है.

41 विद्यालयों के संचलान के लिये NGO का हुआ है सेलेक्शन

राज्य में कल्याण विभाग की तरफ से आश्रम विद्यालय, एकलव्य विद्यालय, अनुसूचित जाति प्राथमिक आवासीय विद्यालय, अनुसूचित जनजाति प्राथमिक आवासीय विद्यालय और पीभीटीजी प्राथमिक आवासीय विद्यालय चलाये जा रहे हैं. सरकार के जनजातीय आयुक्त कार्यालय की ओर से 41 विद्यालयों के संचालन के लिए एनजीओ का सेलेक्शन किया गया है. कई नामी गिरामी एजेंसियों को सरकार ने हटा दिया है, जिसमें विद्या विकास समिति जैसी प्रतिष्ठित संस्था भी है. इसके अलावा आसरा संस्था, सिंहभूम लीगल एंड डेवलपमेंट सोसाइटी सरीखी एनजीओ शामिल है. सरकार की लेट लतीफी की वजह से कल्याण विभाग के आवासीय विद्यालयों में पठन-पाठन ठप सा हो गया है. राज्य भर में कल्याण विभाग के स्कूलों में छह हजार से अधिक बच्चे पढ़ते हैं. सरकार ने पूर्व में चयनित एक दर्जन से अधिक एनजीओ का करार 31 मार्च 2023 की तिथि से ही समाप्त कर दिया है.

नियमों की अनदेखी कर NGO का हुआ सेलेक्शन

जनजातीय आयुक्त कार्यालय की तरफ से एनजीओ के सेलेक्शन के लिए जो निविदा निकाली गयी थी. उसमें भी काफी विवाद हुआ है. इसमें सबसे बड़ी स्वंयसेवी संस्था विद्या विकास समिति, जिसके पास 13 विद्यालय थे. उन्हें नजर अंदाज कर दिया गया है. सरकार ने कंप्यूटर बेचनेवाली संस्था एक्सेल डाटा सर्विसेज रांची का चयन किया है, जो नियमों के इतर है. वहीं सौगात फाउंडेशन, एकमे एजुकेशन सोल्यूशन चतरा, साउथ बिहार वेलफेयर सोसाइटी फोर ट्राइबल संस्था रांची, युवा विकास केंद्र जैसे नये एनजीओ का चयन भी सवालों के घेरे में है. इनके द्वारा जमा कराये गये दस्तावेजों पर सवाल उठने लगे हैं. यह कहा जा रहा है कि इनमें से अधिकतर के पास स्कूल, कालेज, नर्सिंग कालेज, आइटीआइ चलाने की योग्यता नहीं है और न ही ये किसी रिकोगनाइज्ड विश्वविद्यालय से संबद्ध (एफलीएटेड) हैं. सरकार ने नाम के लिए विकास भारती विशुनपुर, केरला पब्लिक ट्रस्ट और बुद्धा एजुकेशनल शैक्षणिक संस्थान का चयन किया है.

एक-एक स्कूल के लिये हर साल NGO को 5 करोड़ रुपेय का भुगतान

कल्याण विभाग की तरफ से चयनित एनजीओ को हाइ स्कूल के लिए 42 हजार प्रति छात्र की दर से भुगतान किया जाता है. वहीं प्राथमिक स्कूल के लिए 32 हजार रुपये प्रति छात्र की दर से भुगतान किया जाता है. सरकार एक-एक स्कूल के लिए प्रत्येक वर्ष पांच करोड़ रुपये एक एनजीओ को भुगतान करती है. वहीं हाई स्कूल में एक कक्षा में 200 स्टूडेंट पढ़ते हैं. वहीं प्राथमिक विद्यालयों में 60 से 100 बच्चे पढ़ते हैं. चयनित एनजीओ को ट्यूटर भी रखना पड़ता है. इसके लिए एक तय मापदंड भी है. इतना ही नहीं सरकार के कई आला अधिकारियों, मुख्यमंत्री, कल्याण मंत्री से भी निविदा में की गयी गड़बड़ी की शिकायत भी की गयी, पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गयी.

मुख्य सचिव ने गड़बड़ी की जांच का दिया भरोसा

मुख्य सचिव एल खियांग्ते ने कल्याण विभाग की ओर से संचालित आवासीय विद्यालयों के लिए चयनित स्वंयसेवी संस्थाओं की अनियमितता को लेकर जांच के आदेश दे दिये हैं. जनजातीय कल्याण आयुक्त कार्यालय से 44 आश्रम, एकलव्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और प्रीमिटिव ट्राइब्स के लिए चलाये जानेवाले आवासीय विद्यालयों के लिए सरकार की तरफ से एनजीओ के चयन से संबंधित ये मामला है. तत्कालीन जनजातीय कल्याण आयुक्त रहे लोकेश मिश्रा के कार्यकाल में एनजीओ के चयन में निविदा समिति गठित की गयी थी. इसमें रांची के उपायुक्त राहुल सिन्हा, बीआइटी मेसरा और विकास विद्यालय के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था. इस समिति की ओर से कुछ ऐसे एनजीओ का चयन किया गया है, जिनके पास हाई स्कूल के संचालन का कोई अनुभव नहीं है.