'बस्तर जोगाने' की जीवंत मिसाल : सिधन राय और उनकी 40 साल पुरानी चादर, वक्त के साथ बुनी गई आत्मीयता की कहानी
BHOJPUR :वस्त्रों को संजोकर रखने के ग्रामीण रिवाज और उसके कारण बड़े दिलचस्प और मार्मिक होते हैं। कबीर कहते हैं..चदरिया झीनी रे झीनी और इसके पदों के माध्यम से वस्त्र संजोके रखने के रिवाज बातें देह,आत्मा-परमात्मा के संबंधों को व्यक्त करने के शब्द साधन के रुप मे देखते हैं चादर जैसी महत्वपूर्ण चीज से।
'बस्तर जोगाने' की जीवंत मिसाल
दास कबीर जतन से ओढ़े ज्यों की त्यों धरि दीन्ही चदरिया..कहकर चादर और देहात्मा के उदाहरण का एकीकरण कर डालते हैं तो ये हुई भारतीय ग्रामीण समाज मे बस्तर जोगाने के रिवाज पर बातें। भोजपुर के अंधारी गांव के शिवधन राय (बोलचाल में सिधन राय) हैं, जो अपनी चादर को 1985 से जोगाते और ओढ़ते चले आ रहे हैं। 1985 के बाद के हर ठंड को उनकी हाड़ में इस चादर ने घुसने नहीं दिया है।
सिधन राय और उनकी 40 साल पुरानी चादर
सिधन राय बताते हैं कि वे कई साल तो पूस की रात में गेहूं के पटवन में खुले आसमान के नीचे इसी चादर के सहारे रहे हैं। चैत माह में गेंहू का भूसा इसी चादर का भांगा बनाकर ढोने का काम भी किया है। 1985 के बाद से वे हर साल इसे ओढ़ते आ रहे हैं। इस तरह सिधन राय के चादर की कुल उम्र 40 साल हो गई है जबकि सिधन राय की कुल उम्र 80 साल है।
वक्त के साथ बुनी गई आत्मीयता की कहानी
कुछ ग्रामीण सिधन राय को छेड़ते हैं कि अब चद्दर आ तू साथे-साथे ही जइबा जा का? 80 साल के सिधन राय की चादर कमजोर और फीकी जरुर हो चुकी है लेकिन चादर से उनका लगाव और उसे संजोने की आत्मीयता में ग्रामीण भारत के बस्तर जोगाने की परंपरा का साक्षात हो जाता है।
सिधन राय की चादर से इंसान को उसके अपने कपड़ों की सुरक्षा, सम्मान और उनसे प्रेम करने की नसीहत और अपील जाती है। चाहे लोग इसे मानें या न मानें। अंधारी गांव के चालीस साला चद्दर जोगाकर ओढ़नेवाले सिधन राय की जीवन शैली भी तेते पांव पसारिये जेती चादर होय की तरह ही है।