बिहार और झारखण्ड में निर्दलीय बिगाड़ेंगे खेल : बागियों ने चुनावी मैदान में उतर विरोधियों की उड़ायी नींद, जानिए कौन-कौन सी सीट है खास, पढ़ें SPECIAL REPORT

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Independents will spoil the game in Bihar and Jharkhand Independents will spoil the game in Bihar and Jharkhand

NEWS DESK : लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही सभी सियासी दलों के बागी उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर अपनी ही पार्टी के धुरंधरों को 'रन आउट' करने की जुगत में लग गये हैं। वे चुनावी अखाड़े में प्रतिद्वंद्वी को धोबी पछाड़ देने की मंशा के साथ-साथ इमोशनल कार्ड भी खेलने लगे हैं।

बिहार में ऐसी कई सीटें हैं, जहां निर्दलीय उम्मीदवारों ने खेल बिगाड़ने का मन बना लिया है। इनमें प्रमुख हैं पूर्णिया लोकसभा सीट, काराकाट, महाराजगंज, नवादा और झारखण्ड की राजमहल लोकसभा सीट।

पूर्णिया लोकसभा सीट

पूर्णिया लोकसभा सीट की बात करें तो हाल ही में अपनी पार्टी 'जाप' का कांग्रेस में विलय कर कांग्रेस के टिकट पर पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के सपने पाले पप्पू यादव को उस वक्त झटका लगा, जब महागठबंधन के दूसरे घटक दल आरजेडी ने वहां से बीमा भारती को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।

आरजेडी के इस स्टैंड से पप्पू यादव खासे खफा नज़र आए और वे निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर गये। पूर्णिया से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल करने और अपनी मां का आशीर्वाद लेने के बाद पप्पू यादव ने कहा कि "यह मेरी राजनीतिक हत्या की साजिश थी। सीमांचल की आजादी, जातीय विवाद, भ्रष्टाचार और नफरत का खात्मा करना मेरा प्राथमिक संकल्प है। हर परिवार की खुशी और गरीबी मिटाना ही मेरा संकल्प है। पूर्णिया की जनता ने हमेशा से पप्पू यादव को जात-पात से ऊपर रखा है। सबकी एक ही आवाज़ है पप्पू और पूर्णिया। मैं इंडिया गठबंधन को मजबूत करूंगा। मेरा संकल्प राहुल गांधी हैं।"

फिलहाल पप्पू यादव के इस कदम से महागठबंधन में ऑल इज नॉट वेल है। सियासी पंडितों की माने तो पूर्णिया के चुनाव मैदान में जेडीयू के मौजूदा सांसद संतोष कुशवाहा के साथ-साथ अब पप्पू यादव को आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती से दो-दो हाथ करना है।

बताया जा रहा है कि पप्पू यादव की वजह से बीमा भारती की उम्मीदवारी कमजोर पड़ सकती है। इसके आलावा पप्पू यादव बनाम आरजेडी की इस लड़ाई से सबसे ज्यादा फ़ायदा भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को मिल सकता है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि क्या कांग्रेस नेता के इस कार्य से क्या महागठबंधन में दरार पड़ेगी कि पूर्णिया में राजद और कांग्रेस के बीच फ्रेंडली मैच होगा।

काराकाट लोकसभा सीट

वहीं, काराकाट लोकसभा सीट की बात करें तो अभी तक सबकुछ NDA के मनमुताबिक चल रहा था लेकिन अब इस लड़ाई में भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह की एंट्री हो गयी है। आसनसोल से बीजेपी का टिकट कटने के बाद बेचैनी में पवन सिंह ने भाजपा का खेल बिगाड़ने की सोच ली है और उन्होंने भी निर्दलीय ही चुनावी अखाड़े में उतरने का ऐलान कर दिया है। पवन सिंह के इस ऐलान से NDA खेमे में बेचैनी बढ़ गयी है क्योंकि इस सीट से NDA के प्रत्याशी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ताल ठोक रहे हैं। वहीं, इस सीट पर I.N.D.I.A गठबंधन की तरफ से भाकपा माले के राजाराम सिंह चुनाव मैदान में हैं। यानी काराकाट में अब त्रिकोणीय मुकाबला होगा।

पवन सिंह के चुनाव मैदान में उतरने से काराकाट में चुनाव त्रिकोणीय हो गया है। जान लेते हैं कि पिछले दो चुनावों में आंकड़े क्या कहते हैं। 2019 में इस सीट पर मुकाबला JDU के महाबली सिंह और RLSP के उपेन्द्र कुशवाहा के बीच हुआ था। तब कुशवाहा महागठबंधन के साथ थे। जीत महाबली सिंह की हुई थी, जिन्हें 3 लाख 98 हजार वोट मिले थे। वहीं, उपेन्द्र कुशवाहा 3 लाख 13 हजार वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। इससे पहले 2014 में उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी NDA में शामिल थी और तब 3 लाख 38 हजार वोट लाकर कुशवाहा ने जीत दर्ज की थी जबकि RJD की कांति सिंह 2 लाख 33 हजार वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहीं थीं।

पवन सिंह के चुनाव मैदान में उतरने से पहले दोनों बड़े गठबंधनों के उम्मीदवार कोइरी जाति से ही हैं। जातीय समीकरण की बात करें तो माना जाता है कि काराकाट लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा यादव जाति के वोटर हैं, जिनकी संख्या करीब 3 लाख है। कुर्मी और कोइरी वोटर ढाई लाख के करीब हैं।

मुस्लिम वोटरों की संख्या डेढ़ लाख बतायी जाती है। पवन सिंह के स्वजातीय राजपूत वोटर करीब ढाई लाख माने जाते हैं। इसके अलावा वैश्य वोटरों की संख्या भी दो लाख के करीब बतायी जाती है। लड़ाई मुश्किल मानी जा रही है। देखना होगा अपने गानों से धूम मचा कर पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह का चुनाव में कितना पावर दिखता है।

नवादा लोकसभा सीट

बिहार की नवादा लोकसभा सीट राष्ट्रीय जनता दल के लिए चुनौती बनती जा रही है क्योंकि दो विधायकों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के फैसले के खिलाफ लोकसभा चुनाव में बिगुल फूंक दिया है। यह दोनों विधायकों ने आरजेडी प्रत्याशी श्रवण कुशवाहा की बजाए निर्दलीय उम्मीदवार विनोद यादव को समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं। न सिर्फ इन्होंने अपना समर्थन दिया है बल्कि दिन-रात एक कर उनको जिताने के लिए प्रचार भी कर रहे हैं।

निर्दलीय कैंडिडेट विनोद यादव को समर्थन करने वालों में पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी के अलावे रजौली से विधायक प्रकाशवीर शामिल हैं। इन दोनों को राजवल्लभ का करीबी माना जाता है। उनकी इच्छा से ही उन्हें 2020 के विधानसभा चुनाव में टिकट मिला था.

अब तक राजवल्लभ यादव की सहमति से ही नवादा में टिकट बंटवारा होता रहा है लेकिन इस बार लालू यादव और तेजस्वी यादव ने राजवल्लभ परिवार की बजाए कोइरी जाति से आने श्रवण कुशवाहा को मैदान में उतारा है। उनको विधान परिषद की स्थानीय निकाय के लिए टिकट दिया था लेकिन उनको मात मिली थी। उस समय भी राजवल्लभ के भतीजे अशोक यादव निर्दलीय लड़े और जीते भी थे।

विधायकों के बागी होने पर आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। नवादा की जनता श्रवण कुशवाहा के साथ हैं। नवादा में लालटेन जलेगी।

गौरतलब है कि नवादा लोकसभा सीट पर कुल 8 उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजेपी से विवेक ठाकुर और आरजेडी से श्रवण कुशवाहा को टिकट मिला है। वहीं, भोजपुरी स्टार गुंजन सिंह भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव के भाई विनोद यादव के निर्दलीय लड़ने के कारण राष्ट्रीय जनता दल को खामियाजा उठाना पड़ सकता है। प्रथम चरण के तहत यहां 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।

महाराजगंज लोकसभा सीट

बिहार की महाराजगंज सीट भी सियासी रूप से मायने रखती है। राजपूत बहुल ये इलाका कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक का गढ़ बना हुआ है। महाराजगंज सीट की खासियत ये है कि आजाद भारत में यहां से अब तक 14 से ज्यादा बार राजपूत जाति के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है।

बिहार की महाराजगंज लोकसभा सीट से बीजेपी की तरफ से जनार्दन सिंह सिग्रीवाल उम्मीदवार हैं। वे सीटिंग सांसद हैं। उन्होंने प्रभुनाथ सिंह और उनके पुत्र रणधीर कुमार सिंह को चुनाव में हराया है। हैट्रिक लगाने के लिए एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं लेकिन सिग्रीवाल के खेल को बिगाड़ने के लिए अब बीजेपी के उनके पुराने साथी सच्चिदानंद राय भी मैदान में कूद गये हैं और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।

सच्चिदानंद राय की इस घोषणा के बाद बीजेपी प्रत्याशी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल की राह मुश्किल दिख रही है। महाराजगंज के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर राजपूत की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजपूतों के जरिए ही हार जीत तय होती हो। महाराजगंज में भूमिहार और यादव वोट बैंक भी मायने रखता है। इसके अलावा मुस्लिम वोटों की भी निर्णायक संख्या है।

2019 के नतीजे की बात करें तो महाराजगंज सीट से बीजेपी के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने राजद के रणधीर सिंह को 2 लाख से ज्यादा वोटो से हरा दिया था। दूसरी तरफ तीसरे नंबर पर बीएसपी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अनिरुद्ध प्रसाद काफी पीछे छूट गए थे। बड़ी बात ये रही कि 2014 में भी बीजेपी के जनार्दन ने ही इस सीट से जीत दर्ज की थी।

राजमहल लोकसभा सीट

झारखण्ड में राजमहल लोकसभा सीट पर भी लड़ाई काफी दिलचस्प हो गयी है। JMM के बड़े नेता लोबिन हेंब्रम ने पार्टी से बगावत कर दी है और राजमहल लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। खुद के बागी होने से इनकार किया है और कई मुद्दे उठाए हैं, जो पार्टी के लिए चुभने वाले हैं।

राजमहल सीट से JMM के विजय हांसदा लगातार दो बार से सांसद चुने गये और तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। 2019 में विजय हांसदा को 5 लाख सात हजार वोट मिले थे। वहीं, BJP के हेमलाल मुर्मू 4 लाख 8 हजार वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। इससे पहले 2014 में भी विजय हांसदा ने हेमलाल मुर्मू को हराया था, तब विजय हांसदा को 3 लाख 79 हजार जबकि हेमलाल मुर्मू को 3 लाख 38 हजार वोट मिले थे लेकिन निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर लोबिन हेम्ब्रम ने मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है। लोबिन हेंब्रम ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है लेकिन खुद को बागी मानने से भी इनकार करते हैं। उल्टे पार्टी पर ही सिद्धातों से भटकने का आरोप लगा रहे हैं। इस सीट पर बीजेपी के ताला मरांडी और JMM के विजय हांसदा के साथ निर्दलीय लोबिन हेंब्रम चुनाव मैदान में होंगे।


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