सियासत की ‘बाढ़’ कब तक? : बाढ़ पर किसी भी दल ने गंभीरता नहीं दिखाई। बाढ़ पर सियासत की पोल खोलती रिपोर्ट पढ़िए।
सुमित झा
कभी लालू यादव ने बाढ़ को भाग्य का खेल बताया, तो पशुपति पारस ने बाढ़ को दैवीय आपदा बताया, तो जल संसाधन मंत्री बाढ़ के लिए चूहों को जिम्मेदार बताते रहे। तो किसी मंत्री ने कहा बाढ़ के लिए हथिया नक्षत्र जिम्मेदार है। बिहार में हर साल बाढ़ आती है, लोग मरते हैं औऱ नेताओं के बेतुके बोल आते है और सियासत होती है। और फिर बाढ़ का पानी उतरते ही सियासत भी सुस्त पड़ जाती है। इस साल भी वही कहानी है। बाढ़ पर ‘चिट्ठी’ वाली सियासत शुरु हो गई है। बाढ़ को लेकर सत्ता पक्ष औऱ विपक्ष के बीच बयानबाजी और चिट्ठीबाजी हो रही है। दरअसल, तेजस्वी यादव ने बाढ़ को लेकर सीएम नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा था..जिसमें उन्होंने मांग किया था कि बिहार का एक प्रतिनिधिमंडल पीएम मोदी से मुलाकात करे..जिसमें नुकसान को लेकर बातचीत की जाए...इन बीच मीडिया ने जब सीएम नीतीश कुमार से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि बिहार में बाढ़ पर काम किया जा रहा है..सीएम नीतीश कुमार ने तेजस्वी के पत्र पर ने चुटकी लेते हुए कहा कि उन्हें अभी तक कोई पत्र नहीं मिला है। तेजस्वी यादव का पत्र ज्यादातर मीडिया में ही आता है। जिसके बाद तेजस्वी यादव ने सचिवालय से प्राप्त रिसीविंग पत्र ट्वीट किया है। जिसमें कहा कि CM सचिवालय से दोपहर 12:15 बजे प्राप्त पत्र की रिसीविंग आपके सामने है...यानी बाढ़ की समस्या पर एक बार फिर सियासत हावी हो गई। सवाल है कि क्या वाकई बिहार में बाढ़ की समस्या के समाधान और बाढ़ राहत को लेकर नेता गंभीर हैं। सवाल का जवाब समझने के लिए पहले समझिए बाढ़ से हर साल कितनी तबाही होती है। साल 2000 से 2021 तक के आंकड़ों को देखते जाइए।
2021- 16 जिलों में असर। 60 लोगों की मौत। 4 लाख 66 हजार लोग प्रभावित
2019- 300 लोगों की मौत। 27 ज़िलों में असर। 1 करोड़ 50 लाख लोग प्रभावित
2018- 3 जिलों में असर। 28 लोगों की मौत। 1.50 लाख लोग प्रभावित
2017 - 19 जिलों में असर। 514 लोगों की मौत। एक करोड़ 71 लाख लोग प्रभावित।
2016 - 11 जिले चपेट में। 121 लोगों की मौत।
2013 - 20 जिलों में असर। 200 लोगों की मौत।
2011- 25 जिलों में असर। 249 लोगों की मौत।
2008 - 18 जिले चपेट में। 258 लोगों की मौत।
2007 - 22 जिलों में असर। 1287 की जान गई।
2004 - 20 जिलों में असर। 885 लोगों की मौत।
2002 - 25 जिलों में असर। 489 लोगों की मौत।
2000 - 33 जिलों में असर। 336 की जान गई।
स्त्रोत- आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार
एक अनुमान के मुताबिक बिहार के करीब 74 % इलाके और 76 % आबादी बाढ़ की जद में हमेशा रहती है। बिहार के 38 में 28 जिले हर साल बाढ़ की विभीषिका को झेलते हैं। बाढ़ से हर साल औसतन 200 इंसानों और 662 पशुओं की मौत होती है। बाढ़ के कारण बिहार को औसतन तीन अरब सालाना का नुकसान होता है। बाढ़ सुरक्षा के नाम पर हर साल औसतन 600 करोड़ रुपये खर्च करती है। बाढ़ राहत अभियान में औसतन 3 से 4 हज़ार करोड़ रुपए खर्च होती है। लेकिन इस बाढ़ के लिए जब राहत पैकेज देने की बारी आती है, तो केंद्र में कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए हो या बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए, सबने कंजूसी की है।
साल 2007 में बाढ़ राहत के लिए 17,059 करोड़ मांगे, एक रुपया नहीं मिला
साल 2008 में बाढ़ राहत के लिए 14,800 करोड़ मांगे, 1010 करोड़ ही मिले
2007, 2008 में यूपीए सरकार थी और लालू यादव केंद्रीय मंत्री थे
साल 2016 में बाढ़ राहत के लिए 4112.98 करोड़ मांगे, एक रुपया नहीं मिला
साल 2017 में बाढ़ राहत के लिए 7636.51 करोड़ मांगे, 1700 करोड़ मिले
साल 2019 में बाढ़ राहत के लिए 4300 करोड़ मांगे, 953 करोड़ मिले
साल 2020 में बाढ़ राहत के लिए 3634 करोड़ मांगे, 1255 करोड़ मिले
2016 से 2020 के बीच चार बार बिहार ने 19683 करोड़ की मांग की
4 सालों में बिहार को केंद्र से सिर्फ 3908 करोड़ रुपये मिले
2016-2020 के बीच जितनी मांग की गई, उसका 20 % पैसा मिला
साल 2021 में बाढ़ राहत के लिए 3781 करोड़ मांगे, अभी तक नहीं मिला
यानी कांग्रेस, आरजेडी, बीजेपी, जेडीयू सभी को केंद्र में रहने का मौका मिला, लेकिन बिहार को बाढ़ के दौरान मदद देने में कंजूसी ही बरती गई। अब सवाल है बाढ़ के स्थायी समाधान की दिशा में अब तक क्या किया गया। दरअसल समाधान के नाम पर सिर्फ तटबंध का निर्माण, मरमम्त और रखरखाव पर पैसे बहाते गए, जो उल्टे बाढ़ को और बढ़ाने का ही कारण बना।
1954 में तटबंधों को बाढ़ नियंत्रण का मुख्य जरिया मानकर प्लान शुरू किया गया
1954 में कुल 160 किलोमीटर इलाके में तटबंध बने थे
1954 में बाढ़ प्रभावित कुल इलाकों का आकलन था 25 लाख हेक्टेयर इलाका
अबतक राज्य में 13 नदियों पर 3790 किलोमीटर एरिया में तटबंध बनाए गए
तटबंधों के निर्माण, रखरखाव पर हर साल औसतन 156 करोड़ से अधिक का खर्च
तटबंधों के निर्माण के बावजूद बाढ़ का इलाका बढ़ता गया
बाढ़ के खतरे वाला इलाका बढ़कर 68 लाख हेक्टेयर हो गया है
विभिन्न नदियों पर बने तटबंधों में तीन दशकों में 400 से अधिक दरारें आईं
लगातार मरम्मत के काम और रखरखाव के खर्च के बावजूद तटबंध टूट जाते हैं और बाढ़ आती रहती है।
साफ है बाढ़ के स्थायी समाधान की दिशा में ना किसी राजनीतिक दलों ने कोई दिलचस्पी दिखाई और ना ही बाढ़ राहत के लिए पैसे देने में। सिर्फ बाढ़ से सुरक्षा के नाम पर करोड़ों बहाए जाते रहे और बाढ़ आती रही, लोग मरते रहे और सियासत होती रही। जो हर साल की कहानी बन चुकी है।