JHARKHAND NEWS : गढ़वा जिले में मिलर की लापरवाही से धान खराब होने का खतरा, पैक्स के बाहर पड़ा है अनफिट धान

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In Garhwa district, there is danger of paddy getting spoiled due to negligence of miller, unfit paddy lying outside the packs. In Garhwa district, there is danger of paddy getting spoiled due to negligence of miller, unfit paddy lying outside the packs.

गढ़वा :गढ़वा जिले में धान अधिप्राप्ति के बाद अब मिलरों की लापरवाही से धान का उठाव नहीं हो पा रहा है। इससे कई पैक्स (प्रारंभिक कृषि सहकारी समितियों) के बाहर धान पड़ा हुआ है, जिससे यह डर सताने लगा है कि यह धान खराब हो सकता है। इस स्थिति को लेकर पैक्स अध्यक्ष और अधिकारी भी चिंतित हैं।

धान की अधिप्राप्ति का लक्ष्य और उसकी वर्तमान स्थिति
गढ़वा जिले के 47 पैक्स और 5 एफपीओ (कृषक उत्पादक संगठन) केंद्रों पर धान क्रय केंद्र खोले गए हैं। जिले के कुल 1245 किसानों से धान क्रय करना है और सरकार ने इस जिले से दो लाख क्विंटल धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य रखा है। अब तक विभाग ने एक लाख छह हजार 428 क्विंटल धान खरीदी है। हालांकि, मिलरों की लापरवाही के कारण उठाव नहीं हो रहा है, जिससे धान के खराब होने का खतरा बढ़ गया है।

मिलर की लापरवाही से धान उठाव में देरी
विभाग ने जिले में धान उठाव के लिए तीन मिलरों का चयन किया है, जिनमें से दो मिलर पलामू से हैं और एक मिलर रांची से है। नियम के अनुसार, मिलर को पैक्स से धान उठाने से पहले सीएमआर (कस्टम मिलिंग राइस) चावल जमा करना होता है, लेकिन चावल जमा करने की प्रक्रिया धीमी होने के कारण धान का उठाव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में, मिलरों की लापरवाही से पैक्स में पड़ा धान खराब हो सकता है।

पैक्स अध्यक्ष की चिंता
पैक्स के अध्यक्षों का कहना है कि अगर मिलर समय पर धान का उठाव नहीं करेंगे, तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। उनके मुताबिक, मिलरों की लापरवाही से सहकारी समितियों का कार्य प्रभावित हो रहा है।

सहकारिता विभाग की चिंता
सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जितना ज्यादा समय लगेगा, धान का वजन घटेगा और वह खराब हो जाएगा। विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि मिलर न तो सीएमआर जमा कर रहे हैं और न ही समय पर धान का उठाव कर रहे हैं, जिससे किसानों और पैक्स को भारी नुकसान हो सकता है। इस स्थिति में यदि मिलरों की लापरवाही नहीं सुधरी, तो यह न केवल गढ़वा जिले के किसानों के लिए, बल्कि सहकारी समितियों के लिए भी एक बड़ी मुश्किल बन सकती है।