गरीब बिहार में 80 हज़ार करोड़ का हिसाब नहीं ! : CAG रिपोर्ट से उठे सवाल, 10 सालों में 80 हज़ार करोड़ कहां गए?

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बिहार विधानसभा का शीतकालीन सत्र खत्म हो गया। 5 दिन के सत्र पर जनता की गाढ़ी कमाई के करीब 8 लाख रुपए से ज्यादा का खर्च हुआ। लेकिन इसके बदले जनहित से जुड़े मुद्दों पर सवाल उठाने के बजाए माननीय कभी गाली गलौज,तो कभी बोतल,तो कभी अपनी हनक को लेकर बवाल काटते रहे। रही सही कसर आखिरी दिन राष्ट्रगीत हुए वार-पलटवार ने पूरी कर दी। लेकिन इसी सत्र में ऐसे भी मुद्दे हैं,जिसे जोर शोर से उठाया जा सकता था। मुद्दा उस बिहार में सरकारी खजाने के पैसे का। जो बिहार नीति आयोग के मुताबिक गरीबी में नंबर वन है। करीब 52 फीसदी लोग बिहार में गरीब हैं। लेकिन इस गरीब राज्य में 80 हज़ार करोड़ रुपए का कोई अता पता नहीं है।

इसी सत्र में सदन में रखी गईCAGरिपोर्ट के मुताबिक 10 सालों में 80 हज़ार करोड़ रुपए का सरकार ने कोई हिसाब नहीं दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक बजट आकार बढ़ रहा है,लेकिन खर्च कम हो रही है।CAGरिपोर्ट ने बताया कि सरकार ने 80 हज़ार करोड़ का कोई हिसाब नहीं दिया। 2011 से 2020 के बीच 80 हज़ार करोड़ का हिसाब नहीं है। यानी सरकार ने 80 हज़ार करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं किया।CAGने 80 हज़ार करोड़ रुपए के गबन की भी संभावना जताई। 31 मार्च 2019 तक 58242 करोड़ का उपयोगिता प्रमाण पत्र बकाया था। 31 मार्च 2020 तक बढ़कर 79691 करोड़ रुपया बकाया हो गया। 2019-20 में 21449 करोड़ का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया।

हिसाब नहीं देने वाले टॉप 5 विभाग

आवंटित पैसे के बदले उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं देने में टॉप पांच विभाग हैं। पंचायती राज विभाग ने सबसे ज्यादा 16195 करोड़ का हिसाब नहीं दिया। शिक्षा विभाग ने 15158 करोड़ का हिसाब नहीं दिया। समाज कल्याण विभाग ने 12613 करोड़ का हिसाब नहीं दिया। ग्रामीण विकास विभाग ने 8808 करोड़ का हिसाब नहीं दिया। नगर विकास एवं आवास विभाग ने 8313 करोड़ का हिसाब नहीं दिया।

आवंटित राशि खर्च नहीं फिर अनुपूरक बजट क्यों?

वहीं अनावश्यक अनुपूरक प्रावधान पर भी सीएजी ने सवाल उठाया है। रिपोर्ट के मुताबिक बजट में आवंटित राशि खर्च नहीं होती है,फिर भी अनावश्यक अनुपूरक का प्रावधान किया जाता है। 51 मामलों में करीब 21,084 करोड़ के अनुपूरक प्रावधान अनुपयोगी साबित हुए। 2019-20 में छह विभागों के लिए 78,779 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया। फिर इन 6 विभागों के लिए 13 हजार करोड़ का अनुपूरक प्रावधान किया गया। लेकिन कुल खर्च लगभग 58 हजार करोड़ का ही हुआ। यानी बजट में आवंटित राशि में से भी 20 हजार करोड़ कम खर्च हुई

घाटे के बावजूद बेकार कंपनियों पर करोड़ों का खर्च

बिहार को पहली बार 1784 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ। 2019 के दौरान 2008-09 के बाद पहली बार 1784 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ है। 14724 करोड़ का राजकोषीय घाटा दर्ज किया। पिछले वर्ष की तुलना में 917 करोड़ यानी 6.64% बढ़ गया। लेकिन घाटे के बावजूद बेकार कंपनियों पर करोड़ों खर्च हो रही है। डिफॉल्टर सरकारी कंपनियों को सरकार करोड़ों रुपए बांट रही है। 2020 तक सरकारी कंपनियों को 18.872 करोड़ की बजटीय सहायता दी गई। इनमें 18 कार्यरत कंपनियां हैं, जबकि 16 कंपनियां काम नहीं कर रही हैं। बिहार राज्य फल-सब्जी विकास निगम लिमिटेड, बिहार राज्य निर्माण निगम लिमिटेड, बिहार राज्य वन विकास निगम लिमिटेड, बिहार राज्य मत्स्य विकास निगम लिमिटेड , बिहार हिल एरिया लिफ्ट सिंचाई निगम लिमिटेड जैसी कंपनियां काम नहीं कर रही हैं, फिर इन सरकारी कंपनियों को सरकार करोड़ों अनुदान दे रही हैं।



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