राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग : पूर्व सीएम रघुवर दास ने राज्यपाल को पत्र लिखकर राज्य में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा करने की मांग की

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रांची : पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने राज्यपाल को पत्र लिखकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है. राज्यपाल रमेश बैस को लिखे अपने पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ईडी के द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पूछताछ के लिए समन भेजने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बयानों को आधार बनाकर राज्य में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा करने की मांग की है.

अपने पत्र में रघुवर दास ने लिखा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संवैधानिक पद पर रहते हुए जांच एजेंसियों की जांच में मदद करने के बजाय अपने कार्यकर्ताओं को भड़का रहे हैं. ऐसे में धारा 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा का आग्रह किया है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा राज्यपाल रमेश बैस को लिखे गए पत्र का मजमून इस प्रकार है

महामहिम राज्यपाल,

झारखंड,रांची।

विषय : झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा झारखंड राज्य से संबंधित व्यापक भ्रष्टाचार के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा की जा रही जांच सहयोग करने के बजाय मजमा लगाकर झारखंड की जनता को गुमराह करते हुए उन्हें हिंसा की ओर भड़काने की साजिश करने और राज्य में संवैधानिक संकट पैदा करने के संबंध में।

महामहिम,

निवेदन पूर्वक कहना है कि हाल में केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा राज्य में हुए व्यापक भ्रष्टाचार के मामले में की जा रही जांच के संदर्भ में माननीय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को समन जारी की गयी है.

जाहिर है कि किसी भी जांच प्रक्रिया का मतलब जांच की विषय वस्तु से संबंधित तथ्यों की सत्यता का पता लगाना और संबंधित व्यक्ति की संलिप्तता के संबंध में ठोस साक्ष्य इकट्ठा करना होता है और यदि हेमंत सोरेन जी को प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा सम्मन भेजी गई है तो भारतीय विधान के मुताबिक एक भारतीय नागरिक के रूप में और संवैधानिक पद पर होते हुए एक जिम्मेदार लोक सेवक के रूप में उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह जांच एजेंसी को उसके द्वारा किए जा रहे अनुसंधान में पूर्ण सहयोग करें ताकि यदि संबंधित तथ्यों,घटनाओं तथा लोगों से उनकी कोई संलिप्तता नहीं है तो जांच एजेंसी के समक्ष यह स्पष्ट हो सके।

संवैधानिक व्यवस्था एवं कानून के शासन के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति बड़ा या छोटा नहीं होता और संवैधानिक पदों पर बैठे हुए नागरिकों की जिम्मेदारी और भी अहम होती है क्योंकि उनके द्वारा किया गया कृत्य आम नागरिक भी देखते हैं एवं पालन करते हैं।

श्री हेमंत सोरेन ने प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा जारी किए गए सम्मन का पालन करने के बजाए एक ओर तो प्रवर्तन निदेशालय से समय की मांग की है परंतु दूसरी ओर सम्मन के अनुसार निर्धारित तिथि से 1 दिन पहले अपने आवास के बाहर हजारों की संख्या में अपने कार्यकर्ताओं को बुलाकर प्रदर्शन में हिस्सा लिया और समुचित भीड़ को संबोधित करते हुए ललकारा। अपने आम भाषणों में जो उन्होंने सम्मन की प्राप्ति के बाद विभिन्न स्थानों पर दिए हैं,उन्होंने भीड़ को संबोधित करते हुए इस तरह के भी वक्तव्य दिए हैं कि प्रवर्तन निदेशालय उन्हें सम्मन देने के बजाय सीधा गिरफ्तार करें।

मुख्यमंत्री आवास क्षेत्र की विधि व्यवस्था काफी मुस्तैद होती है और हजारों की संख्या में लोगों का जुटान बगैर मुख्यमंत्री कार्यालय अथवा मुख्यमंत्री के सहमति के संभव नहीं है। अतः ऐसा कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन के द्वारा जानबूझकर ऐसा संवैधानिक संकट पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है कि उनके तथाकथित समर्थक हिंसक हो जाए और प्रवर्तन निदेशालय को दबाव में लेकर दिग्भ्रमित किया जा सके।

हेमंत सोरेन के द्वारा आए दिन भड़काऊ भाषण दिए जा रहे हैं जैसे कि उनके आदिवासी होने के कारण उनके साथ साजिश की जा रही है और यह कि प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा की जा रही जांच के विरोध में उनके पार्टी के लोग राज्य में सभी स्तरों पर प्रदर्शन इत्यादि करें। प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा श्री हेमंत सोरेन को जारी किए गए सम्मन की तिथि के बाद के सभी आयोजनों जिसमें श्री हेमंत सोरेन ने भाषण दिए हैं अथवा वक्तव्य दिए हैं उसके संबंध में विस्तृत जांच कराए जाने की आवश्यकता है जिससे यह साफ प्रतीत होगा कि श्री हेमंत सोरेन ने खुले तौर पर केंद्रीय जांच एजेंसी को चुनौती देने का काम किया है और वे राज्य की भोली-भाली आदिवासी जनता को भड़काने का काम कर रहे हैं ताकि उनको सहानुभूति का राजनीतिक लाभ मिल सके।

राज्य के मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा ऐसा कृत्य गैर कानूनी तथा असंवैधानिक है और ऐसा बिल्कुल स्पष्ट है कि श्री हेमंत सोरेन को भारतीय संविधान तथा भारतीय कानूनों के प्रति कोई आस्था नहीं है। हेमंत सोरेन जी के द्वारा हाल में दिए गए भाषणों तथा वक्तव्य से यह स्पष्ट है कि वे राज्य के मुखिया होकर राज्य सरकार को संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चला रहे हैं और वास्तव में वे राज्य में आतंक का शासन स्थापित करना चाहते हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि यदि महाशय को ऐसा प्रतीत हो कि राज्य सरकार,संविधान के प्रावधानों एवं कानूनों के अनुसार नहीं चल रही है और श्री हेमंत सोरेन के राज्य के मुखिया के पद पर होते हुए राज्य सरकार को संवैधानिक तरीके से नहीं चलाया जा सकता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की जा सकती है। उपरोक्त परिस्थितियों में आपसे श्रीमान से आग्रह है कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी सम्मन की प्राप्ति के उपरांत से श्री हेमंत सोरेन,उनकी पार्टी के अन्य नेताओं तथा सरकार के मंत्रियों के द्वारा दिए गए भाषणों तथा वक्तव्य के संबंध में जांच कराते हुए उचित निर्णय लेने की कृपा करेंगे ताकि राज्य में कानून का राज स्थापित हो सके और केंद्रीय एजेंसी निष्पक्ष तरीके से अपनी जांच पूरी कर सके।

आपका विश्वासी,

(रघुवर दास)


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