नये साल की शुरूआत के साथ ही जद यू के बदले तेवर : एक तरफ अल्पसंख्यक और अति पिछड़ो को मनाने में जुटी पार्टी तो दूसरी तरफ विशेष राज्य का दर्जा और जातीय जनगणना की मांग के बहाने बीजेपी पर बढाया दबाब

Edited By:  |
Reported By:
new year me  new agenda per  nitish aur jdu new year me  new agenda per  nitish aur jdu

Patna:-नये साल की शुरूआत के साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जद यू के तेवर बदले - बदले से नजर आ रहे हैं. हालांकि इसके संकेत बीते वर्ष 2021 के 30 दिसंबर को ही मिलने शुरू हो गये थे जब बिहार सरकार के मुख्य सचिव के पद पर 1987 बैच के आई ए एस अधिकारी आमिर सुबहानी को बिठाये जाने की अधिसूचना जारी हुई थी . इससे साफ झलक रहा था कि 2022 कुछ ना कुछ खास होने वाला है. लेकिन 2022 की शुरूआत होते ही जद यू नेताओं के बोल से साफ झलक रहा है कि उनके तेवर बदले - बदले से है. यानि बिहार की सत्ता का नेतृत्व करने वाली पार्टी के तेवर उनके सहयोगी दलो ही नही विपक्ष को भी अचंभित करने वाली है.

बिहार प्रदेश बीजेपी नेताओं के आंखों की किरकिरी माने जाने वाले आमिर सुबहानी को मुख्य सचिव पद पर बिठा कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जहां अपने अल्पसंख्यक प्रेम को एक बार फिर उजागर कर दिया वही बीजेपी को उसकी हैसियत बता दी. ये अलग बात है कि बिहार में अल्पसंख्यको के लिये अनेक योजनाये चलाने वाले और सूबे में भाई चारा और सदभाव का माहौल होने का दावा करने के बाबजूद नीतीश के बदले अल्पसंख्यको का मोह लोलू की पार्टी से कम नही हुआ और जद यू को उन्होनें कभी सीने से नही लगाया . यही वजह रही कि2020 के विधान सभा चुनाव में जद यू के करीब डेढ दर्जन मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरने के बाबजूद एक भी सीट नही जीत पाये. यानि नीतीश के कैबिनेट में कोई अल्पसंख्यक चेहरा नही मिलने पर बसपा के चुनाव चिन्ह पर जीते जमा खांन को जद यू में शामिल कराकर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनाया गया. लेकिन इसके बाबजूद आमिर सुबहानो को राज्य के सर्वोच्च पद पर बिठाकर नीतीश अल्प संख्यको को यह मैसेज देना चाहते है कि भले ही आप बेरहम हो लेकिन हम है रहमदिल.

दूसरी तरफ जद यू ने आगमी 24 जनवरी को बिहार को पूर्व मुख्यमंत्री स्व कर्पूरी ठाकुर की जयंती के अवसर पर बिहार के नव निर्वाचित अति पिछड़े और पिछड़े पंचायत जन प्रतिनिधियो को सम्मानित करने का फैसला लिया है. कभी बिहार में लालू का जिन्न रहे अति पिछडे वोटरो को नीतीश ने काफी मशक्कत के बाद अपने पाले में किया था लेकिन 2015 के विधान सभा चुनाव में लालू के साथ जाने और बीजेपी द्वारा 152 उम्मीदवारो में 65 पिछडे और अति पिछड़े उ्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारे जाने के बाद नीतीश के वोट बैंक में सेंध मारी की कोशिश की गयी थी . साथ ही 2020 में जद यूके 115 उम्मीदवारो में केवल 19 सीटे अति पिछड़े को दिये जाने का भी खामियाजा नीतीश को भुगतना पड़ा ऐसे में जद यू बिछुड़े अपने वोट बैेक को फिर से वापस लाने की कवायद नये साल में करने के फिराक में है.

इसके अलावे नये साल की शुरूआत के साथ ही जद यू ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने और जातीय जनगणना कराये जाने की मांग को लेकर नयी रणनीति बनाने और संघर्ष का एलान कर दिया है. पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह हो या फिर संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा दोनो इस मुद्दे को लेकर केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. जबकि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी पहले ही जद यू की इस मांग को सिरे से खारिज कर चुकी है. ऐसे में बीजेपी के साथ केन्द्र और राज्य दोनो सरकार में शामिल जद यू कैसे मान रही है कि विशेष राज्य का दर्जा हमें मिल जायेगा. यानि बीजेपी पर दबाब की राजनीति की शुरूआत साल के पहले दिन से ही.

लगे हाथ जद यू के इन सभी रणनीतियो के मुख्य रणनीतिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने हर बूथ पर 10 जद यू कार्यकर्ताओं की तैनाती का निर्देश देकर अपनी पूरी मंशा जाहिर कर दी है.

जद यू के इन तेवरो से जहां नीतीश के साथ बिहार में सत्ता का सुख भोग रही बीजेपी के नेता की कौन कहे कैबिनेट के सदस्य भी नीतीश के साथ खड़े नही दिख रहे जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी राजद जद यू की मांग के साथ पूरी तरह से खड़ी दिख रही है. चाहे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग हो या फिर जातीय जनगणना कराये जाने की मांग . खुद तेजस्वी और उनकी टीम इस फिराक में है कि कब इस मामले को लेकर बीजेपी और जद यू के बीच जारी खटास तकरार में बदले और बिल्ली के भाग्य से राजद का छींका टूटे. लेकिन उपरी तौर पर भले कुछ नही दिख रहा हो लेकिन जद यू के बदले तेवर से यह संकेंत तो मिल ही रहा है कि बदले - बदले से यार नजर आने लगे है.

अशोक मिश्रा , कशिश न्यूज .


Copy