खास्ता मतलब गयाजी का तिलकुट : मकर संक्रान्ति के अवसर पर तिलकुट की खरीददारी के लिए गया के बाजारों में दिख रही है चहल पहल
GAYA:मकर संक्रान्ति के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी गयाजी में तिलकुट का बाजार सजा हुआ है.गया के तिलकुट की एक विशेष पहचान है जिसकी वजह से यहां के तिलकुट की मांग देश-विदेश तक होती है.
यहां आनेवाले विदेशी प्रर्यटक भी तिलकुट का स्वाद चखने के लिए बेताब रहते है।वैसे तो यहां सालों भर तिलकुट की ब्रिकी होती है। लेकिन सर्द मौसम आते ही इसकी मांग बढ़ जाती है। जनवरी माह में तिलकुट की मांग बढ़ते ही सन्नाटे को चिरती धम-धम की आवाज और सोंधी महक से शहर गुलजार हो जाता हैं। यह किसी फैक्ट्री या किसी अन्य मशीनों की आवाज नही होती है, बल्कि हाथ से तिलकुट कुटने की आवाज होती है। तिलकुट को गया का प्रमुख सांस्कृतिक मिष्ठान के रूप में जाना जाता है।
खास्ता तिलकुट
हलांकि कोरोना की तीसरी लहर व महंगाई के कारण तिलकुट व्यवसाय पर इसका प्रतिकूल असर भी देखने को मिल रहा है पर मकर संक्रांति को लेकर तिलकुट के बाजार में चहल-पहल देखी जा रही है.इस दिन तिलकुट खाने का धार्मिक प्रावधान होता है। इसे लेकर गया शहर का तिलकुट बिक्री के लिए माने जाने वाला मुख्य बाजार रामना रोड व टिकारी रोड गुलजार हो चुका है। लोग अभी से ही तिलकुट की खरीदारी कर रहे है।
स्थानीय दुकानदार मनीष कुमार प्रसाद गुप्ता बताते है कि भौगलिक दृष्टिकोण से गया की जलवायु, आबोहवा व पानी इस उद्योग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है।यहां का तिलकुट खास्ता होता है. मंकर संक्राति जैसे महापर्व पर तिल की बनी वस्तुओं के दान व खाने की धार्मिक परंपरा रही हैं। इसी महत्व को ध्यान में रखकर अरसे से तिलकुट का निर्माण किया जाता है।अब गया के तिलकुट के नाम से बिहार झारखंड के साथ कई अन्य राज्यों में दुकानें खुलने लगी हैं.
क्या है इतिहास
करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गया शहर के रमना रोड मुहल्ले में तिलकुट बनना शुरू हुआ था। तिलकुट के शुरूआत करने वाले लोगों के वंशज भी इसी मौसमी कुटीर उद्योग को आगे बढ़ा रहे है। अब तो शहर के रमना रोड, टिकारी रोड, कोयरीबारी, राजेन्द्र आश्रम, चांदचौरा, सरकारी बस स्टैड, स्टेशन रोड आदि में तिलकुट का निर्माण किया जा रहा हैं। वैसे तो तिलकुट देश के कई हिस्सों में बनाया जाता है। लेकिन गया में बने तिलकुट की खास बात होती है, यहां चीनी की अपेक्षा तिल को ज्यादा मात्रा में मिलाया जाता है। जिस कारण यह शरीर के लिए भी फायदेमंद होता है। तिलकुट खाने से का कब्जियत दूर होती है। इसे बनाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। गुड़ या चिनी की चासनी बनाकर उसे कुट-कुट कर तिलकुट तैयार किया जाता था। फिर तिल को बड़े पात्रों से भुनकर चासनी के ठंढे टुकडों के साथ मिलाकर उसे कुट-कुट कर तैयार किया जाता था। यहां निर्मित तिलकुट का देश भर में कोई शानी नही है।
दूसरे राज्यों में डिमांड
यहां के तिलकुट बिहार के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाण, महाराष्ट्र आदि राज्य के छोटे-बड़े शहरों में भेजे जाते है।जो लोग विदेशों में रहते हैं, वे अपने स्तर से तिलकुट खरीद कर ले जाते हैं।झारखंड के कोडरमा जिले के झुमरी तिलैया से तिलकुट खरीदने आए प्रीतम कुमार सिंह ने बताया कि गया का तिलकुट बहुत ही मशहूर है। इसके बनाने की विधि सबसे उत्तम है। यही वजह है कि प्रतिवर्ष अपने रिश्तेदारों के लिए तिलकुट खरीद कर ले जाते हैं।मकर संक्रांति पर तिलकुट खाने की परंपरा है, इसलिए यहां खरीदारी करने आए हैं। यहां के तिलकुट परिजनों के साथ अन्य रिश्तेदारों को भी भेजेंगे। तिलकुट की तासीर गर्म होती है। अभी ठंड का मौसम चल रहा है, ऐसे में तिलकुट खाने से शरीर में गर्माहट पैदा होती है और फायदा होता है।