धक्कामार एंबुलेंस पर है सिस्टम को नाज ! : स्टाफ हुए हलकान फिर भी नहीं स्टार्ट हुई गाड़ी, पढ़िए पूरी कहानी...

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RANCHI : कहने और दिखाने को तो तमाम प्रशासनिक तामझाम..लोगों की जान बचाने के लिए हर एक सुविधाओं की घोषणा और वादे...लेकिन जमीन पर हकीकत क्या है..बस आप जान लीजिए कि सच्चाई ठीक इसके बिल्कुल उलट है...सरकार कहती है हमने तो मरीजों की जान बचाने के लिए सभी सरकारी अस्पतालों में एंबुलेंस दी है...

हाईटेक एंबुलेंस..तमाम सुरक्षा उपकरणों से लैस...लेकिन तस्वीरें देखिए...यहां तो मरीजों की जान बचाने वाला एंबुलेंस खुद मरा पड़ा है...दूर दराज का मरीज इलाज के अभाव में मर जाए...छटपटाता रहे...लेकिन भैया ये जान लीजीए कि आपकी जान ही आखिर क्यों न चली जाए ये एंबुलेंस आपके यहां तो नहीं ही पहुंच पाएगा...

इस ऐंबुलेंस में जान फूंकने के लिए स्टाफ पसीने से तड़बतड़ है...कभी आगे से धक्का..तो को कभी पीछे से धक्का..पसीने से तड़बतड़ स्टाफ इश्वर को भी याद कर रहे हैं और गुजारिश कर रहें कि.. भगवान इसे किसी तरह स्टार्ट कर दो....लेकिन यहां इस एंबुलेंस को भी तो ठंढ मार गया है...स्टाफ पसीने पसीने हो जाएं...लेकिन यह टस से मस नहीं हुआ...

कहानी जब आप पढ़ेंगे तो आप भी हैरान हुए नहीं रह पाएंगे...स्टोरी झारखंड के बेड़ो की है...जहां सरकार मरीजों को अस्पताल तक लाने के लिए मुफ्त में 108 ऐंबुलेंस सेवा देने का दावा कर रही है...लेकिन सच्चाई भी है कि आखिर मुफ्त सेवा तो आखिर मुफ्त ही रहेगी...सो बेड़ो के सरकारी अस्पताल में दम तोड़ रही यह एंबुलेंस मरीजों की जिंदगी बचाएगी..

ऐसा दावा तो बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता...अब बेड़ो के लापुंग से रांची की दूरी करीब साठ किलोमीटर की है...तो जरा सोचिए...कि अगर यह ऐंबुलेंस बीच में ही खराब हो जाए...तो इसे आखिर कौन धक्का लगाएगा...और कौन स्टार्ट करेगा...


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