बिहार में जातीय जनगणना : क्या राजनीतिक पार्टियों की जातीय आबादी पर नियंत्रण करने की है नूराकुश्ती?

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पटना। बिहार में इस समय जातीय जनगणना के सुर फिर से उभर आए हैं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने विधानमंडल के चलते सत्र में ठंडे पड रहे इस मुद्दे को फिर से गरमा दिया। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्षी प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की। बकौल तेजस्वी यादव, बहुत जल्द ही जातीय जनगणना पर सर्वदलीय बैठक होगी। अब यह बैठक कब होगी और उसपर राज्य स्तर पर जातीय जनगणना कराने पर क्या कुछ होगा, यह तो तभी पता चलेगा, जब बैठक होगी। लेकिन उससे पहले का सवाल य़ह है कि आखिर बिहार को जातीय जनगणना की इतनी जल्दी और जरुरत क्यों हैं।

बिहार में इस समय क्षेत्रीय पार्टियां अग्रणी भूमिका में है। जेडीयू के हाथ में सत्ता की कमान है और राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी सहयोगी है। विपक्ष की कमान आरजेडी के हाथ में है और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस सहयोगी है। ऐसे में एक दूसरे के विरोध में रहने के बाद भी जेडीयू और आरजेडी जातीय जनगणना के मुद्दे पर एकमत है। क्योंकि दोनों ही पार्टी पिछडों के वोटबैंक की राजनीति करती है। अभी तक जो भी राजनीति होती रही है या चुनाव होते रहे हैं, वह अदृश्य आंकडों पर आधारित है। ऐसे में दोनों ही पार्टियां चाहती है कि जातीय जनगणना कराकर अपने वोटबैंक के अदृश्य आंकडों का साक्षात आकार में लाया जा सके। इस पर बीजेपी को छोडकर लगभग सभी पार्टियां भी सहमत हैं।

आखिरी जातीय जनगणना

भारत में आखिरी बार 1931 में जातीय जनगणना करायी गयी थी। 1941 में आंकडों का संकलन नहीं हो पाया। उसके बाद से कभी भी फिर जातीय जनगणना नहीं हो पायी। 1951 में केन्द्र सरकार के पास इसका प्रस्ताव गया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने यह मानते हुए इसे खारिज किया था कि इससे सामाजिक समीकरण बिगड सकता है। 1951 के बाद से लेकर 2011 तक की जनगणना में केवल अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति से जुड़े आंकड़े ही आते रहे। 2011 की जनगणना में जातीय जनगणना तो हुई लेकिन सही आंकडें नहीं होने के हवाला देकर इसे कभी प्रकाशित ही नहीं किया गया। 1931 की जनगणना आंकडों के आधार पर ही मंडल कमीशन ने भी आधार बनाया था, जिसकी रिपोर्ट 1991 में लागू की गई थी।

बिहार में इसकी गूंज

बिहार विधानसभा में पहली बार 18 फरवरी, 2019 में तथा फिर 27 फरवरी, 2020 में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर मांग की गई कि 2021 में होने वाली जनगणना जाति आधारित हो। नीतीश कुमार ने खुद जातीय जनगणना होने का वकालत करते रहे हैं। इसपर आरजेडी ने पुरजोर साथ दिया। तेजस्वी यादव की पहल पर नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 23 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मिलकर जातीय जनगणना कराने का आग्रह किया था। लेकिन केन्द्र सरकार ने तकनीकी पहलू का हवाला देकर जातीय जनगणना कराने के इंकार कर दिया। जिसपर नीतीश कुमार ने राज्य स्तर पर ही जातीय जनगणना कराने की बात कही थी और कहा था कि इसपर सर्वदलीय बैठक पर फैसला करेंगे। लेकिन उसके बाद कोई पहल नहीं हुई. लेकिन अब तेजस्वी यादव ने फिर मुद्दे को उभार दिया है।

जीतीय जनगणना के पीछे की गणना

जातीय जनगणना होने के बाद सही आंकड़ा मिलने से क्षेत्रीय दलों को राजनीति का नया आधार मिल सकता है. क्षेत्रीय दल हमेशा से जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं. बिहार,झारखंड, यूपी व हरियाणा जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों का अधिक बोलबाला है। इन राज्यों में असल राजनीति जातिगत आधारित ही रहती है। हाल के समय में देश की राजनीति में पिछड़े वर्ग का दखल बढ़ा है। बिहार में ओबीसी की आबादी26 प्रतिशत है. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को अति पिछड़ी वर्ग की जातियों के अलावा ओबीसी में यादव को छोड़ अन्य जातियों का भी समर्थन मिलता रहा है। वहीं आरजेडी को2020में बंपर वोट मिले और वह सकेले सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी। सरकार भले न बन पाया हो, लेकिन जनता का साथ उसे मिला। ऐसे में चुनाव में उसे जो वोट मिले, उसे अपनी ओर मिलाकर रखने के लिए जातीय जनगणना की वकालत कर रही है। ताकि उसमें इजाफा ही कर सके।

बीजेपी का न हां और न ना

बीजेपी को कभी सवर्णों तथा वैश्यों की पार्टी समझा जाता था। लेकिन जब से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व बदला, तब से पार्टी ने महसूस किया कि लंबे समय की राजनीति करने और सत्ता में काबिज रहने के लिए हर वर्ग में अपनी पैठ बनाए रखनी होगी। इसके लिए उसने अन्य जातियों में अपना जनाधार बढ़ा रही है। वह अब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के साथ ओबीसी को लामबंद करना चाहती है। साथ ही बीजेपी गरीब सवर्णों को आरक्षण व जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून के सहारे हिंदु वोटबैंक को एकजुट करने की कोशिश में है।

हालांकि कुछ जानकार यह मानते है कि अगर जातियों के आंकडों में उलटफेर हुआ। ऐसे में आरक्षण के जो प्रावधान तय किये हुए हैं। उसमें भी फेरबदल करने की नौबत आ सकती है। ऐसे में क्या यह संभव होगा? इसका जबाव तो जातीय जनगणना कराने के फैसले के बाद ही मिल सकेगा।


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