फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी पद्मश्री पुरस्‍कार से सम्मानित, जानें कैसे पहुंचे इस मुकाम तक

Edited By:  |
2039 2039

पटनाःराष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में भारत सरकार की तरफ से राष्ट्रपति ने उन्‍हें पद्मश्री पुरस्‍कार से सम्मानित किया । मनोज वाजपेयी को सम्‍मान मिलते ही उनके फैंस सहित तमाम सितारों ने उन्‍हें शुभकामनाएं दी। मनोज वाजपेयी ने अबतक अपने अभिनय से कई सुपरहिट फिल्में बॉलीवुड को दी है। सम्मान मिलने का बाद उन्होंने कहा कि मेरे लिए पद्मश्री मिलना मेरे अब तक का सफर और भरोसे को सम्मानित करने जैसा है। वाजपेयी ने कहा कि यह किसी भी पेशेवर के लिए बहुत बड़ा सम्मान है। क्योंकि यह सम्मान मात्र किसी एक खास फिल्म या प्रदर्शन के लिए नहीं है यह मेरे अब तक के सफर को सम्मान के लिए है।

सरकार ने लगाए काम पर मुहर

पद्मश्री पुरस्‍कार मिलने के बाद बॉलीवुड एक्टर मनोज वाजपेयी ने कहा कि वो बहुत खुश है कि उनके काम पर सरकार द्वारा मुहर लगाई गई। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से यह सम्मान एक तरह से सिनेमा के लिए किए गए योगदान पर मुहर लगाना है। इसलिए मैं इसे लेकर बहुत खुश महसूस कर रहा हूं कि मेरा परिवार, दोस्त और प्रशंसक मुझे संदेश भेज रहे हैं। मुझे खुशी हो रही है कि मेरे काम को सरकार द्वारा मान्यता दी गई है।

बिहार के रहने वाले है मनोज वाजपेयी

मनोज वाजपेयी का जन्म बिहार के पश्चिमी चंपारण के एक छोटे से गांव बेलवा में 23 अप्रैल 1969 को हुआ था। मनोज बाजपेयी अपने 6 भाई बहनों में दूसरे नंबर पर है। इनके पिता एक किसान थे जबकि मां घर की देखभाल करती थी। मनोज वाजपेयी बचपन से ही फिल्म अभिनेता बनना चाहते थे। लेकिन इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने से बहुत मुश्किल से इनकी पढ़ाई लिखाई पूरी हो पाई।

कैसे पूरी की वाजपेयी ने पढ़ाई

मनोज बाजपेयी ने स्कूली पढाई बेतिया जिले के राजा हाई स्कूल से किया। इन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई महारानी जानकी कॉलेज बेतिया से पूरा किया, वहीं स्नातक की पढ़ाई के लिए दिल्ली विश्व विद्यालय के रामजस कॉलेज में दाखिला करा लिए। उनका नामांकन नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से चार बार रद्द कर दिया गया था। आपको बता दें कि मनोज बाजपेयी मनोज एनएसडी के बाद दिल्ली में काम के लिए लगातार स्ट्रगल कर रहे थे और जब वो और उनकी बहन सुबह घर से निकलते, तो बहन के हाथ में दो रुपए का सिक्का देकर बस में बिठा देते थे और खुद पैदल चलकर अपने थिएटर ग्रुप तक जाते थे। उन्होंने एनएसडी की पढाई के दौरान एक रुपया भी घर से नहीं लिया।

मन बना लिया था इंडस्ट्री छोड़ने का

मनोज वाजपेयी के कैरियर की शुरुआत दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक ‘स्वाभिमान’ के साथ हुई। इनकी पहली फिल्म ‘द्रोहकाल’ साल 1994 में रिलीज हुई थी जिसमे इन्हें सिर्फ 1 मिनट का रोल मिला था। उसके बाद ‘बैंडिट क्वीन’ 1994 में डाकू मान सिंह की एक छोटी सी भूमिका अदा की जिसमे इनको काफी लोकप्रियता हासिल हुई। इसके बाद मनोज बाजपेयी ने कुछ छोटे छोटे रोल किये पर उन्हे कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई तब उन्होंने मुम्बई छोड़ने का मन बना लिया था। 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'सत्या' में काम करने के बाद मनोज ने कभी वापस मुड़ कर नहीं देखा। इस फिल्म मे उनके द्वारा निभाये गये भीखू म्हात्रे के किरदार के लिये उन्हें कई पुरस्कार मिले जिसमे सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्मफेयर का सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ हैं।

कई पुरस्कार मिले

1999 में फिल्म 'शूल' में मनोज वाजपेयी द्वारा निभाए गए किरदार समर प्रताप सिंह के लिये उन्हें फिल्मफेयर का सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार मिला। अमृता प्रीतम के मशहूर उपन्यास ‘पिंजर’ पर आधारित फ़िल्म पिंजर के लिये उन्हे एक बार फिर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उसके बाद तो चारो तरफ मनोज वाजपेयी की एक्टिंग की चर्चा होने लगी, चाहे वो 2010 में आयी प्रकाश झा की निर्देशित फिल्म राजनीति मे उनके द्वारा निभाये वीरू भैया का किरदार हो या 2012 मे आयी फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर मे मनोज के सरदार खान का किरदार। इसके अलावा स्पेशल 26 में इनके द्वारा निभाए किरदार को भी लोगो ने काफी पसंद किया।


Copy