बिहार के अस्पताल बीमार है, सिर्फ 6 बेड पर 1 लाख लो : 13 हज़ार करोड़ का स्वास्थ्य बजट, फिर भी बदहाली क्यों?

Edited By:  |
Reported By:
13 hajar karor ka swastya bajat 13 hajar karor ka swastya bajat

सुमित झा

एक बार फिर बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सवाल बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का। सवाल बिहार के 13 करोड़ लोगों की सेहत से जुड़ा है। सवाल उठा है नीति आयोग की रिपोर्ट से, जिसमें बिहार सबसे निचले पायदान पर है।

नीति आयोग की रिपोर्ट में क्या है?

देश के जिला अस्पतालों के प्रदर्शन पर नीति आयोग ने रिपोर्ट जारी की है। देशभर के जिला अस्पतालों में एक लाख आबादी पर औसतन 24 बेड है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार देश में सबसे निचले पायदान पर है। 1 लाख की आबादी पर ज़िला अस्पतालों में सिर्फ 6 बेड हैं। बिहार से एक पायदान ऊपर झारखंड में 1 लाख आबादी पर 9 बेड हैं। आकलन के लिए देश के कुल 707 जिला अस्पतालों को शामिल किया गया। राज्यों में 20 बेड की संख्या के साथ एमपी और छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर हैं। 1 लाख की आबादी पर तेलंगाना में 10, यूपी में 13, हरियाणा में 13 बेड हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट पर सियासत भी तेज हो गई है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर नीतीश सरकार पर हमला बोला हैं। वहीं जब रिपोर्ट को लेकर सवाल पूछा गया तो स्वास्थ्य मंत्री सवालों से पीछा छुड़ाते नज़र आए। वहीं भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने नीति आयोग की रिपोर्ट पर ही सवाल खड़ा कर दिया औऱ नीति आयोग की रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया।

सियासत अपनी जगह हैं, लेकिन सवाल है कि क्या नीति आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर देने भर से खामियां दूर हो जाएंगी। क्या वाकई बिहार के अस्पतालों में आबादी के मुताबिक बेड, डॉक्टरों औऱ नर्सों की संख्या उपलब्ध हैं। सवाल का जवाब समझने के लिए पहले जान लीजिए स्वास्थ्य विभाग का बजट कितना है।

बजट 13 हजार करोड़ से ज्यादा, फिर भी बदहाली

बिहार के 13 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य के लिए 13 हज़ार करोड़ का बजट है। यानी एक करोड़ लोगों पर एक हज़ार करोड़ का बजट। फिर भी नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार स्वास्थ्य व्यवस्था में देश में निचले पायदान पर है। लेकिन बदहाली की तस्वीर यहीं खत्म नहीं होती है। WHO के मुताबिक प्रति 1 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। यानी 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बिहार में एक लाख से अधिक डॉक्टर होने चाहिए। लेकिन बिहार में ग्रामीण इलाकों में 20 हज़ार की आबादी सिर्फ एक डॉक्टर तैनात हैं। 13 मई 2021 तक बिहार में कुल सरकारी डॉक्टरों की संख्या 5081 थी। राज्य के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के 7677 पद खाली हैं। डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पद 12758 हैं, जिसमें 5081 कार्यरत हैं। PMCH में लगभग 40 फीसदी डॉक्टरों की कमी है। DMCH में लगभग 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है। स्टाफ नर्स के करीब 7 से 8 हजार पद खाली हैं। एएनएम नर्सों के भी करीब 10 हज़ार पद खाली हैं। 534 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से कई चालू हालत में नहीं है। 1183 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के भी हाल बेहाल हैं। रेफ़रल अस्पतालों और CHC की संख्या 466 है, लेकिन कार्यरत सिर्फ़ 67 हैं। राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों में से भी केवल 10 ही फंक्शनल हैं।

सवाल है कि आखिर मैनपावर और बुनियादी सुविधाओं को लेकर 13 हज़ार करोड़ के बजट के बावजूद क्यों काम नहीं हुए। दरअसल बजट का अधिकांश हिस्सा निर्माण पर और योजनाओं पर खर्च होता है। साल 2021-22 में स्वास्थ्य विभाग का बजट 13,264 करोड़ रुपए का है, लेकिन 6,900 करोड़ सिर्फ योजनाओं पर खर्च किए जाएंगे जबकि 6,300 करोड़ स्वास्थ्य संबंधी निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होगा। यानी डॉक्टरों की भर्ती, दवाईयों की आपूर्ति, बुनियादी सुविधाओं को लेकर बजट में अनदेखी की गई। जिसका नतीजा है कि आज नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार सबसे निचले पायदान पर है।


Copy